मोहर्रम-उल-हराम - 1446 हिजरी
हदीस-ए-नबवी ﷺ
'अल्लाह ताअला जिसके साथ खैर व भलाई करना चाहता है, उसे बीमारी की तकलीफ और दीगर मुसीबतों में मुब्तिला कर देता है। '
- सहीह बुख़ारी
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✅ इलाहाबाद : आईएनएस, इंडिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक अर्ज़ी दायर की गई है जिसमें दावा किया गया है कि आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर कृष्ण की मूर्ती के निशान हैं। अर्ज़ी में एएसआई (आरक्योलोजीकल सर्वे आफ इंडिया) के ज़रीया जामा मस्जिद का सर्वे कराने और एडवोकेट कमिशनर के ज़रीया जांच कराने का मुतालिबा किया गया है।
आगरा के वकील महेंद्र कुमार सिंह की दरख़ास्त पर जुमेरात को जस्टिस मयंक कुमार जैन की बेंच में समाअत हुई। समाअत के दौरान ईदगाह कमेटी ने भी इस केस में फ़रीक़ (पक्षकार) बनने के लिए अदालत में दरख़ास्त दे दी है। दरख़ास्त गुज़ार महेंद्र प्रताप सिंह ने वीडीयो कान्फ्रेसिंग के ज़रीये अदालत में अपना केस पेश किया। अदालत ने आइन्दा समाअत के लिए 5 अगस्त की तारीख़ मुक़र्रर की है। इबतिदाई तौर पर ये दरख़ास्त हाईकोर्ट की जानिब से समाअत के लिए कलब की उन 18 दरख़ास्तों में शामिल थी, जिनकी अदालत ने एक साथ समाअत की है। लेकिन चूँकि इस अर्ज़ी (मुक़द्दमा नंबर तीन) का मुआमला दीगर दरख़ास्तों से मुख़्तलिफ़ था, इसलिए हाईकोर्ट ने उसे समाअत से अलग कर दिया था।
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दरख़ास्त में कहा गया है कि 1670 में औरंगज़ेब ने यहां एक मंदिर को गिराया था। मंदिर के मर्कज़ी हिस्से में वाके कृष्ण की मूर्ती को आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर चुनवा दिया था। औरंगज़ेब ने हिंदू अक़ीदे को ठेस पहुंचाने की नीयत से ऐसा किया। दरख़ास्त में मुतालिबा किया गया है कि इसकी तहक़ीक़ात के लिए एडवोकेट कमिशनर का तक़र्रुर किया जाए और एएसआई सर्वे कराया जाए। मूर्ती को जामा मस्जिद से हटा कर कृष्ण की जाए पैदाइश मथुरा में दुबारा नसब किया जाए। इस मुआमले में एएसआई के वकील ने जवाब दाख़िल करने के लिए वक़्त मांगा है।
दरख़ास्त गुज़ार महिन्द्र प्रताप सिंह ने अपने दावे की हिमायत में कई मोअर्रखीन की किताबों का हवाला दिया है।
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