- एमडब्ल्यू अंसारी, (आईपीएस, रिटा. डीजीपी)
उर्दू जबान-ओ-अदब के फरोग और नई नसल तक जबान की तरसील को लेकर मध्य प्रदेश बिलखसूस भोपाल के सहाफियों, उदबा ने जो कदम उठाया है, वो एहमीयत का हामिल है। हम सभी जानते हैं कि उर्दू एक जिंदा-ओ-तवाना जबान है। भारत में पैदा होने वाली ये जबान अब सिर्फ भारत की सरहद तक कैद नहीं है, बल्कि दुनिया की मजबूत और ताकतवर जबान के तौर पर इसका नाम लिया जाता है। भारत, पाकिस्तान, बंगला देश, सभी मुस्लिम ममालिक बिल खुसूस गल्फ (खलीजी ममालिक) समेत यूरोपियन ममालिक रशिया, अमरीका वगैरह में भी इस जबान के चर्चे आम हैं। उर्दू दुनिया की सातवीं मकबूल जबान बन गई है। हाल ही में यूएनओ ने भी अरेबिक, चाइनीज, इंग्लिश, फ्रेंच, रशियन, स्पेनिश की तरह उर्दू, हिन्दी और बंगाली को भी इंटरनेशनल जबान करार देते हुए इसे अपनी दफ़्तरी जबान में शामिल किया है।
मुल्क की तहजीब-ओ-सकाफ़्त, जमहूरी इकदार की बहाली, गंगा जमुनी तहजीब को फरोग देने में इस जबान ने कलीदी किरदार अदा किया है। उर्दू जबान, शेअर-ओ-अदब के शाना बह शाना उर्दू सहाफत ने मुल्क की यकजहती, सलामती, अवामी बेदारी और तहिरीक-ए-आजादी में जो किरदार पेश किया है, वो ना सिर्फ बेमिसल है, बल्कि अगर ये कहा जाए कि उर्दू सहाफत की रोशन तारीख के जिÞक्र के बगैर भारत की तहरीक-ए-आजादी की तारीख ना-मुकम्मल है, तो गलत नहीं होगा। जिस तरह मुल्क की आजादी हमारी साझी विरासत का हिस्सा है, उसी तरह उर्दू सहाफत की रोशन तारीख भी हमारी साझी विरासत का हिस्सा है।
साल 2022 उर्दू सहाफत के हवाले से एक संग-ए-मील का साल है। 27 मार्च 2022 में उर्दू सहाफत के दो सौ साल मुकम्मल हो गए। उर्दू सहाफत ने अपने दो सौ साला सफर में मुल्क में संग-ए-मील का किरदार अदा किया है। उर्दू सहाफत कल भी एहमीयत की हामिल थी और आज भी अपनी बामकसद सहाफत के लिए आलमी सतह पर जानी-पहचानी जाती है।
उर्दू का पहला अखबार (जाम जहांनुमा) 1822 में कलकत्ता से शाइआ किया गया था। जाम जहांनुमा के नाशिर (प्रकाशक) हरीहर दत्त और एडीटर सदासुख लाल थे। उसके बाद कई उर्दू अखबार 1849 में इंदौर से ''मालवा अखबार' धरम नारायण जैसे अहम अखबार जारी हुए। जाम जहांनुमा और मालवा अखबार की इशाअत के बाद कलकत्ता, दिल्ली, आगरा, ग्वालियार और दूसरे शहरों से बड़ी तादाद में उर्दू अखबारात शाइआ हुए और उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतवासियों में जोश-ओ-वलवला भरने में अहम किरदार अदा किया। 1857 की तहरीक-ए-आजादी जिसे अंग्रेजों ने गदर का नाम दिया था, और हम जद्द-ओ-जहद आजादी की पहली जंग के नाम से जानते हैं और दुनिया के तमाम तारीखदां भारत की पहली जंग-ए-आजादी मानती हैं, उसके खिलाफ उर्दू अखबार बिलखसूस मौलवी मुहम्मद बाकिर के (दिल्ली अखबार) में अंग्रेजों के जुलम-ओ-सितम के खिलाफ जो तहरीरें शाइआ होती थीं, उसने अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला कर रख दी थीं जिसके नतीजा में मौलवी मुहम्मद बाकिर को 16 सितंबर 1857 को तोप के गोले से शहीद कर दिया गया। इस तरह उर्दू के पहले सहाफी ने जाम-ए-शहादत नोश किया। गालिब, मोमिन, जौक विशेफ़्ता भी इस अखबार के कदर दानों में थे
अमृत महोत्सव के मौके पर एक अपील
फिलहाल मुल्क में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाया जा रहा है। इस सिलसिले में बेनजीर अंसार एजूकेशनल एंड सोशल वेल्फेयर सोसाइटी की अवाम से अपील है कि स्कूलों, कॉलिजों, यूनीवर्सिटियों में इस मौका पर तकारीब का इनइकाद कर बच्चों को मुजाहिदीन आजादी बिलखसूस उर्दू सहाफी की खिदमात और वतन पर मर मिटने के उनके जजबात को याद किया जाए। इसके साथ ही उनकी हयात (जीवनी) पर भी रोशनी डाली जाए। आजादी के 75 साल मुकम्मल होने के मौका पर अपने इदारे के जेरे एहतिमाम सेमीनार, जलसा, सिंपोजियम का एहतिमाम करें और मुजाहिदीन आजादी के बारे में मुख़्तसर रिसाले ,पाम्फलेट छपवाकर बच्चों में तकसीम करें, मुजाहिदीन आजादी की हयात व खिदमात के मौजू पर इनामी मुकाबलों का इनइकाद करें ताकि बच्चों के दिलों में आजादी की एहमीयत, वतन से मुहब्बत और मुजाहिदीन आजादी की इकदार को पहचानने और जंग-ए-आजादी की रोशन तारीख से नई नसल को वाकिफ कराया जा सके।
बेनजीर अंसार एजूकेशनल एंड सोशल वेल्फेयर सोसाइटी, भोपाल