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मौलाना उस्मान मिस्बाही |
अल्लाह की कुदरत कि उनकी मंशा के बरअक्स उन्हें बेटी पैदा हुई जिसका नाम मरियम रखा गया। मगर वे इससे फिक्रमंद नहीं हुई। बल्कि बेटी की परवरिश की। बेटी जब समझदारी की उम्र को पहुंची तो वे मरियम को मस्जिद-ए-अक्सा ले गईं यहां मरियम की रेखदेख अल्लाह के नबी हजरत जकरिय्या अलैहिस्सलाम के जिम्में आई जो हजरत मरियम के खालू थे। हजरत जकरिय्या ने मरियम के रहने के लिए एक अलग कमरा बना दिया जिसमें वो इबादत व रियाजत करतीं और मस्जिद की खिदमत करती थीं।
इसी तरह दिन गुजर रहे थे कि एक दिन हजरत जिब्रील अलैहिस्सलाम इंसानी शक्ल में उनके पास हाजिर हुए, हजरत मरियम उन्हें देखकर खौफजदा हो गईं। उन्होंने कहा, मैं तुमसे खुदा की पनाह मांगती हूं। हजरत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने फरमाया, डरो नहीं, मैं अल्लाह का •ोजा हुआ (फरिश्ता) हूं और तुम्हें बेटा देने के लिए आया हूं। हजरत मरियम यह सुनकर और हैरान रह गईं और बोलीं मुझे बेटा कैसे हो सकता है जबकि किसी मर्द ने मुझे इस इरादे से हाथ तक नहीं लगाया है। हजरत जिब्रील बोले, तुम्हारे रब ने फरमाया है :
"यह मेरे लिए बिल्कुल आसान है और हम इसलिए ऐसा कर रहे हैं ताकि लोगों के लिए अपनी कुदरत की निशानी बनाएं और यह फैसला हो चुका है।"
फिर हजरत जिब्रील ने आपकी आस्तीन या गिरेबान या मुंह में फूंका जिससे आप हामिला हो गर्इं। अब हकीकत में तो आप मुत्मईन थीं लेकिन लोगों का बातों डर था; क्योंकि हकीकत तो कोई जानता नहीं था, इसलिए आप जंगल की तरफ चली गईं और एक सूखे खजूर के पेड़ के नीचे बैठ गई जहां हजरत ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाईश हुई। अल्लाह पाक ने उस सूखे पेड़ को हरा •ारा, खजूरों से लदा हुआ बना दिया, पानी का चश्मा जारी कर दिया और हुक्म दिया कि खजूर खाओ पानी पियो और (बेटे को देख कर) अपनी आंखें ठंडी करो। फिर जब वापस बस्ती में जाओ और किसी को कुछ कहते सुनो तो बोलना, मैंने अल्लाह पाक के लिए रोजा रखा है। (इसलिए किसी से बात नहीं करूंगी)। उनकी शरियत में किसी से बात ना करना और खामोश रहना ही रोजा हुआ करता था।
अब हजरत मरियम, ईसा अलैहिस्सलाम को लेकर बस्ती में आईं तो हड़कंप सा मच गया, लोग तरह-तरह से तंज करने लगे और कहने लगे, ऐ मरियम! यह तुमने क्या किया? कैसा अजीब कारनामा किया है? तुम्हारे बाप तो बुरे इंसान नहीं थे और न ही तुम्हारी मां बुरी थीं तो तुमने यह कैसे किया।
हजरत मरियम ने अल्लाह के हुकुम के मुताबिक किसी को जवाब न दिया और इशारे से कहा, इसी बच्चों से पूछ लो, लोग और गुस्सा हुए कि यह कि यह क्या मजाक कर रही हो, गोद के बच्चे से कैसे बात करें, वह बोल पाएगा •ाला? इतने में हजरत ईसा अलैहिस्सलाम गोद से ही बोलने लगे:
"मैं अल्लाह का बंदा हूं। अल्लाह ने मुझे किताब दी और नबी बनाया है। उसने मुझे मुबारक (बरकत वाला) बनाया है ,चाहे मैं कहीं •ाी हूं, मुझे जिंदगी •ार नमाज और जकात पर जोर दिया है। अपनी मां से अच्छा सुलूक करने वाला बनाया, घमंडी और बदनसीब नहीं बनाया। मुझ पर सलामती हो, जिस दिन मैं पैदा हुआ, जिस दिन मरूंगा और जिस दिन जिंदा उठाया जाऊंगा।"
जब लोगों ने गोद में बच्चे की बात करने का मोजिजह देखा तो उनकी मुखालफत खत्म हो गए और लोगों को समझ आ गया कि मरियम गलत नहीं हैं।
यहां यह बात •ाी याद रखने की है कि ईसवी तारीख (अंग्रेजी कैलेंडर) की शुरूआत •ाी हजरत ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाईश से हुई है। आपकी पैदाईश से पहले महीने और साल उल्टे गिने जाते थे, जैसे किसी इंसान की उम्र 80 वर्ष बताना होती थी तो इस तरह बताया जाता था, वह 92 ईसा कब्ल पैदा हुआ और 12 ईसा कब्ल उसका इंतेकाल हो गया।
हजरत ईसा अलैहिस्सलाम की परवरिश हुई। बड़े होकर अल्लाह का पैगाम लोगों को सुनाना शुरू किया मगर बनी इसराईल (वह कौम जिसकी तरफ आप •ोजे गए) बहुत सरकश (विद्रोही) थी। अल्लाह का पैगाम सुनने और उस पर अमल करने की बजाय वो कौम आपकी दुश्मन बन गई। और हद यह हुई कि आपको जान से करने के लिए एक झोपड़ी में आपको चारों तरफ से घेर लिया। मगर अल्लाह ने उन लोगों की हर चाल और जुल्म से आपको महफूज रखा और आप को इसी हालत में सलामती के साथ आसमान पर उठा लिया। आप अ•ाी •ाी चौथे आसमान पर मौजूद हैं।
हुआ यह था कि अल्लाह तआला ने आपको आसमान पर उठाकर उन दुश्मनों में से एक को आपकी शक्ल का बना दिया। उन लोगों ने उसी को पकड़ कर सूली (फांसी) पर लटका कर कत्ल कर दिया। और दिल में यह सोचकर खुश हो गए कि हमने हजरत ईसा अलैहिस्सलाम का काम तमाम कर दिया, हालांकि हजरत ईसा अलैहिस्सलाम उस सबसे बिल्कुल महफूज रहे और आज •ाी हैं।
कयामत से कुछ पहले हजरत ईसा अलैहिस्सलाम दोबारा दुनिया में तशरीफ लाएंगे। फजर की नमाज के वक्त दमिश्क की जामा मस्जिद के पूर्वी मीनार पर उतरेंगे। दुनिया में आकर जुल्म व सितम का खात्मा करेंगे, सलीब तोड़ेंगेञ आपका जमाना बहुत खैर व बरकत वाला होगा। आप शादी करेंगे और बच्चे •ाी पैदा होंगे। वफात के बाद गुंबद-ए-खजरा (हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रोजे) में दफन होंगे।
आसमान पर उठाए जाने के वक्त हजरत ईसा अलैहिस्सलाम की उम्र 33 साल थी और यह वाकिया मुल्क-ए-शाम पर सिकंदर के कब्जा करने के 336 साल बाद पेश आया।