रमजान उल मुबारक-1445 हिजरी
मस्जिद की तरफ कदम बढ़ाने का सवाब
'' हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रदि अल्लाहु अन्हु से रवायत है कि रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया, जो शख्स जमात के लिए मस्जिद की तरफ चले तो उसका एक कदम एक गुनाह मिटाता है और दूसरा कदम उसके लिए एक नेकी लिखता है। जाने में भी और वापस लौटने में भी। ''- अहमद तबरानी
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✅ इंदौर : आईएनएस, इंडिया
उतर प्रदेश में काशी और मथुरा के बाद अब मध्य प्रदेश में भोज शाला का साईंसी सर्वे होगा। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने अपने हुक्म में वाजेह तौर पर कहा कि एएसआई को भोज शाला का साईंसी और तकनीकी सर्वे करना चाहिए। आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया (एएसआई) को धार ज़िला में वाके 11वीं सदी की मुतनाज़ा (विवादित) भोज शाला यादगार और कमाल मौला मस्जिद का सर्वे करने का हुक्म दिया गया है। पिछले साल हिंदू फ्रंट फ़ार जस्टिस नामी एक तंज़ीम ने हाईकोर्ट में एक अर्ज़ी दायर कर भोज शाला को मंदिर होने का दावा किया है। अर्ज़ी में 2003 के आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया के हुक्म को चैलेंज किया गया है, जिसमें हिंदूओं को रोज़ाना भोज शाला में पूजा करने पर पाबंदी थी। उसके बाद इंडोर बेंच ने एएसआई, मर्कज़ और मध्य प्रदेश हुकूमत को नोटिस जारी करके इस मुआमले पर उनसे जवाब तलब किया गया।
भोज शाला एक महफ़ूज़ यादगार है जिसके बारे में हिंदू दावा करते हैं कि वो वाग्देवी (सरस्वती) का मंदिर है, जबकि मुस्लिम कम्यूनिटी उसे कमाल मौला मस्जिद के तौर पर मानते है। ।7 अप्रैल 2003 को एसएसआई की तरफ़ से किए गए इंतिज़ामात के मुताबिक़, हिंदू हर मंगल को अहाते में पूजा करते हैं, जबकि मुस्लमान जुमा के दिन अहाते में नमाज़ अदा करते हैं। पिटीशन में दावा किया गया कि आईन हिंद की आर्टीकल 25 के तहत सिर्फ हिंदू बिरादरी के अरकान को सरस्वती सदन के अहाते में देवी वॉग की पूजा और रसूमात अदा करने का बुनियादी हक़ हासिल है। इसमें मज़ीद कहा गया कि मुस्लिम कम्यूनिटी के अरकान को मज़कूरा जायदाद के किसी भी हिस्से को किसी मज़हबी मक़ासिद के लिए इस्तिमाल करने का कोई हक़ नहीं है।
अर्ज गुज़ार ने अदालत से ये भी इस्तिदा की कि मर्कज़ को हिदायत दी जाये कि सरस्वती देवी की मूर्ती को लंदन के म्यूज़ीयम से वापस लाया जाये और उसे भोज शाला काम्पलेक्स में दुबारा क़ायम किया जाए। दरख़ास्त में कहा गया है कि धार के उस वक़्त के हुकमरानों ने 1034 ईसवी में भोज शाला में मुक़द्दस मुजस्समा नसब किया था और उसे 1857 मैं अंग्रेज़ अपने साथ लंदन ले गए थे। अर्ज गुज़ारूँ में से एक आशीष गोविल ने कहा कि अब हमने अपने मज़हबी मुक़ाम पर दुबारा दावा करने के लिए क़ानूनी लड़ाई शुरू कर दी है। अदालत ने हमारी दरख़ास्त को जामा पाया और नोटिस जारी किया है।
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