शअबान उल मोअज्जम-1445 हिजरी
हदीसे नबवी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम
तकदीर का लिखा टलता नहीं
'' हजरत अबु हुरैरह रदि अल्लाहो अन्हुमा ने फरमाया-अपने नफे की चीज को कोशिश से हासिल कर और अल्लाह ताअला से मदद चाह, और हिम्मत मत हार और अगर तुझ पर कोई वक्त पड़ जाए तो यूं मत कह कि अगर मैं यूं करता तो ऐसा हो जाता, ऐसे वक्त में यूं कह कि अल्लाह ताअला ने यही मुकद्दर फरमाया था और जो उसके मंजूर हुआ, उसने वहीं किया। ''
- मुस्लिम शरीफ
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सुनहरी बाग मस्जिद का रिश्ता हिंदूस्तान को "इंकिलाब जिंदाबाद" का नारा देकर अंग्रेजों से लड़ने का हौसला देने वाले हसरत मोहानी से भी है। कहा जाता है जंगे आजादी के दौरान हसरत मोहानी अक्सर इस मस्जिद में रुकते थे। जंग-ए-आज़ादी के पहले सूरमा हसरत मोहानी के सिर यह एजाज भी है कि उन्होंने मुकम्मल आज़ादी की करारदाद (प्रस्ताव) कॉंग्रेस इजलास में पेश किया था। उन्होंने बरसों जेल के मजालिम सहे। वहां उनसे चक्की चलवाई गई, एक-एक दिन में मनों आटा पिसवाया गया। महात्मा गांधी ने कानपुर में उनके स्वदेशी स्टोर की इफ्तेताह की थी। भारत में कम्युनिस्ट पार्टी के कयाम में उन्होंने अहम किरदार अदा किया था। कानपुर में ही उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के पहले अधिवेशन की सदारत की थी और अपने ही स्वदेशी स्टोर में पार्टी का पहला दफ्तर क़ायम किया था।
महफूज मुकाम
सनअत (उद्योग) इमारत के सामने का यह इलाका सिक्योरिटी के नुक्ता-ए-नजर से काफी अहम है। इसके आसपास मर्कजी हुकूमत के दफातिर के साथ ही दिफाई दस्तों (रक्षा बलों) और आला अहलकारों के दफातिर भी मौजूद हैं। मस्जिद में पंजगाना नमाज के अलावा ईदैन भी अदा की जाती है। रफी रोड से उद्योग भवन और रेल भवन के रास्ते साउथ दिल्ली की तरफ जाने वाले रास्ते पर मौजूद यह मस्जिद गोल चक्कर, मौलाना आजाद रोड, मोतीलाल नेहरू रोड और कामराज रोड को आपस में जोड़ती है। यही नहीं, सुनहरी बाग मस्जिद तीसरे जुमरे (श्रेणी) के हेरीटेज साइट की फेहरिश्त में भी शामिल है।
किसने, कब बनवाई
सुनहरी बाग मस्जिद, पुरानी दिल्ली, चांदनी चौक में गुरुद्वारा सीस गंज साहिब के पास है। यह रास्ता कभी लाल किले की ओर जाने वाला शाही रास्ता था। मस्जिद की ताअमीर 18वीं सदी में मुगल सम्राट मुहम्मद शाह के दौरे हुकूमत के दौरान मुगल रईस रोशन-उद-दौला ने करवाई थी। सुनहरी बाग मस्जिद सड़क के बीचों-बीच गोल चक्कर पर है। किसी जमाने में इस गोल चक्कर को हकीम जी का बाग नाम से भी जाना जाता था। एनडीएमसी ट्रैफिक को मुनज्जम करने का हवाला देकर अब इसे ढहाना चाहती है।
मस्जिद के करीब था सुनहरा गांव
मुअर्रिखों (इतिहासकारों) के मुताबिक 1912 में जब दिल्ली को कौमी दारुल हुकूमत बनाया गया था, सुनहरी बाग मस्जिद तब भी उसी जगह पर थी। मस्जिद को लेकर दिल्ली के कई मोअर्रिक और आर्किटेक्ट्स का मानना है कि मस्जिद को हेरिटेज इमारत होने के सबब नहीं हटाया जाना चाहिए। जानकारों के मुताबिक मस्जिद की जगह एक गांव था जिसे सुनहरा गांव कहा जाता था। गांव के लोग हकीम जी का बाग में नमाज पढ़ने आया करते थे। गांव की सरहद मौजूदा संसद मार्ग थाने तक जाती थी। ब्रिटिश सरकार ने जब नई दिल्ली में सरकारी इमारतों की ताअमीर शुरु करवाई, तब सुनहरा गांव को पूरी तरह जमीदोश कर दिया लेकिन सुनहरी मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया।
दिल्ली में है कुल तीन सुनहरी मस्जिद
दारुल हुकूमत दिल्ली में सुनहरी बाग मस्जिद के अलावा दो और सुनहरी मस्जिद हैं। एक चांदनी चौक में गुरुद्वारा सीसगंज के करीब जिसके तीनों गुंबदों पर तांबे के साथ सोने का पानी चढ़ा है, इसलिए इसे सुनहरी मस्जिद कहा जाता और दूसरी सुनहरी मस्जिद लाल किले के नजदीक है जिसकी ताअमीर कुदेसिया बेगम ने करवाई थी। इसमें दो मीनारें और तीन गुंबद हैं। इसके गुंबदों पर पहले तांबे का रंग चढ़ा था।
चुपके-चुपके रात दिन आंसू बहाना.....
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Hasrat Mohani |
हसरत मोहानी आज़ादी का सिपाही होने के साथ-साथ शायर भी थे। उनकी गजल '' चुपके-चुपके रात-दिन, आँसू बहाना याद है" लोग आज भी गुनगुनाते हैं।
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