'' बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ '' का अमली नमूना पेश करने वाले शेर-ए-मैसूर टीपू सुल्तान की यौम-ए-शहादत आज

शव्वाल -1445 हिजरी

हदीस-ए-नबवी ﷺ

'' जब तुम अपने घर वालों के पास जाओ तो उन्हें सलाम करो। इससे तुम पर और तुम्हारे घर वालों पर बरकतें नाजिल होंगी। ''

- तिरमिजी शरीफ

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शेर-ए-मैसूर टीपू सुल्तान की यौम-ए-शहादत आज
 Sher-e-masoor Tipu Sultan


एमडब्ल्यू अंसारी : भोपाल
शेर-ए-मैसूर टीपू सुल्तान की यौम-ए-शहादत आज
शहीद-ए-आज़म, शेर-ए-हिंद, शेर-ए-मैसूर, आदिल-ओ-रियाया परवर, मज़हबी रवादारी के अलमबरदार और अज़ीम मुजाहिद-ए-आज़ादी टीपू सुलतान की 4 मई को यौम-ए-शहादत है। इस मौक़ा पर अंसार एजूकेशन सोसायटी, भोपाल ने उन्हें याद करते हुए तमाम बाशिंदगान-ए-हिंद से उन्हें ख़राज-ए-अक़ीदत पेश करने का एहतेमाम करने की अपील की है।

👉 सुरैय्या तैय्यब जी, जिन्होंने हिंदूस्तान के नेशनल फ्लैग को डिजाईन किया
     अंसार एजूकेशन सोसायटी के सरबराह, आईपीएस (रिटायर्ड डीआईजी, छत्तीसगढ़) एमडब्ल्यू अंसारी ने शेर-ए-मैसूर टीपू सुल्तान को याद करते हुए कहा कि दलित और ग़रीब-ग़ुरबा, जिन्हें अपना तन ढंकने की इजाज़त भी नहीं थी, खुसूसन दलित खवातीन के साथ हो रहे जुल्मों-ज्यादती को लेकर सबसे पहले टीपू सुल्तान ने आवाज उठाई और उन्हें मआशरे में बराबरी का हक दिलाया। इस तरह आज के जुमले ह्यबेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओह्ण का अमली नमूना पेश कर टीपू सुल्तान ने उस ज़माने में बेटियों की इज़्ज़त-ओ-आबरू की हिफ़ाज़त कर मिसाल पेश की।

👉 बिस्मिल अजीमाबादी, जिन्होंने लिखा : तर फरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है
 मुल्क के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले शहीद-ए-आज़म टीपू सुलतान ने मुल्क में अंग्रेज़ों को कदम न जमाने देने को जैसे अपना नस्बुलऐन बना रखा था। मुल्क के हरेक बाशिंदगान चाहे वो किसी भी मजहब के मानने वाले थे, अच्छा बरताव कर हुस्न-ए-अख़लाक़ का आला नमूना पेश किया। टीपू सुल्तान की फौज में न सिर्फ हिंदू कसीर तादाद में थे बल्कि अहम हुकूमती ओहदों पर भी फ़ाइज़ थे।

👉 सैयद आबिद हुसैन सफरानी, जिन्होंने  जय हिंद’  नारा दिया

    टीपू सुलतान अपने वालिद के बरअक्स इंतिहाई नरम मिज़ाजी के हामिल थे। हालांकि यही रहम दिल्ली उनकी सल्तनत के ख़ात्मे की वजह भी बनी। उनके क़रीबियों मीर सादिक़, मीर ग़ुलाम अली लंगड़ा, राजा ख़ान और पण्डित पूर्णिया के बारे में उनके वालिद ने भी उन्हें आगाह करते हुए उनसे होशियार रहने की ताकीद की थी। बाद में बाबा-ए-कौम महात्मा गांधी ने पूर्णिया की ग़द्दारी को लेकर अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहा था- अज़ीम सुलतान का वज़ीर-ए-आज़म रहते हुए पूर्णिया ने उनके साथ गद्दारी की। 
👉 पड़ोसी मुल्क की पेशकश ठुकरा कर अपने मुल्क की खिदमत करने वाले थे ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान
    आज हालांकि उस अज़ीम शख़्सियत, जिन्होंने मुल्क के लिए अपने लख़्त-ए-जिगर अपने बेटों की भी परवाह नहीं की, उनकी शबिया (छवि) ख़राब करने की कोशिश की जा रही है। टीपू सुलतान पर मबनी अस्बाक़ को दर्सी किताबों से हटाने की कोशिशें जारी हैं, उनकी तारीख़ को मसख़ किया जा रहा है। गरज ये कि तारीख के अवराक से उन्हें मिटाने की भरपूर कोशिशें की जा रही है। 
👉 यूसुफ जफर मेहर अली : साइमन कमीशन के बायकाट का लिया फैसला
    मिजाईल और राकेट की ईजाद के लिए जाने जाने वाले शहीद-ए-आज़म टीपू सुलतान मुल्क के पहले हुक्मराँ थे, जिन्होंने अंग्रेज़ों को मुल्क से निकालने का अज्म लिया। इसके लिए उन्हें अंग्रेजों से छोटी-बड़ी कई लड़ाईयां लड़ी। अंग्रेजी हुकूमत पर उनके खौफ का ये आलम था कि उनकी शहादत की खबर मिलने के बाद भी अंग्रेजी सिपाही उनकी लाश के करीब जाने से डर रहे थे। और जब अंग्रेजों को यकीन हो गया कि टीपू सुल्तान वफात पा चुके हैं, अंग्रेजी हुकूमत ने जश्न मनाया था। अंग्रेज जनरल ने उनकी छाती पर अपने पैर रखकर खुशी से ऐलान किया था कि आज से इंडिया हमारा हुआ। इसमें कोई शक नहीं कि टीपू सुल्तान के आसपास पलने वाले कुछ गद्दारों ने उनके साथ गददारी नहीं की होती तो अंग्रेज हिंदूस्तान में अपने पैर पसारने को तरस जाते और हिंदूस्तान की तारीख आज कुछ और होती। 
👉 अल्लामा इकबाल : सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
    इन्साफ़ की बात तो ये है कि टीपू सुलतान की अज़मत को तारीख़ कभी फ़रामोश ना कर सकेगी। मज़हब-ओ-मिल्लत और आज़ादी के लिए आख़िरी दम तक लड़ने वाले टीपू सुल्तान ने 4 मई 1799 को मैदान-ए-जंग में बहादुरी के साथ लड़ते हुए जाम-ए-शहादत नोश फ़रमाया। हिंदूस्तान को लेकर उनकी मोहब्बत का तकाजा है कि बाशिंदगान-ए-हिंद उस अज़ीम सुलतान की तारीख़ लोगों के सामने लाए ताकि नौजवान नसल और आने वाली नसलों को उनके बारे में सही मालूमात हो सके। इसके लिए जरूरी है कि उनकी यौम-ए-शहादत और यौम-ए-पैदाईश के मौके पर उन्हें याद किया जाए।
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