26 मुहर्रम-उल-हराम 1445 हिजरी
पीर, 14 अगस्त, 2023
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अकवाले जरीं
‘मेरी उम्मत में से सबसे पहले मेरे पास हौजे कौसर पर आने वाले वो होंगे जो मु्रासे और मेरे अहले बैत से मोहब्बत करने वाले हैं।’
उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ के बीबी पुर कस्बा में पैदा हुए ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान भारती फौज आफिसरान के उस शुरूआती बैच में शामिल थे, जिनकी ट्रेनिंग बर्तानिया में हुई। दूसरी आलमी जंग में अपनी कियादत के लिए काबिल-ए-तारीफ कारकर्दगी अंजाम देने और कई बार तरक़्की हासिल करने वाले ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान 1947 में भारत-पाक जंग के वक़्त उस पच्चास पैरा ब्रिगेड के कमांडर थे, जिन्होंने नौशेरा में तारीखी जीत हासिल की थी। इसी वजह से उन्हें ‘नौशेरा का शेर’ लकब मिला।
‘मेरी उम्मत में से सबसे पहले मेरे पास हौजे कौसर पर आने वाले वो होंगे जो मु्रासे और मेरे अहले बैत से मोहब्बत करने वाले हैं।’
- जामाह उल हदीस
भारती फौज की शानदार रिवायत की बेहद मजबूत कडियों में एक, नौशेरा का शेर, अजीम देश भगत ब्रिर्गडियर मुहम्मद उसमान की गुजिश्ता 15 जुलाई को यौम-ए-पैदाइश मनाई गई। ये और बात है कि हिंदूस्तान और खुद उनकी कौम के लोग उनकी कुर्बानियों को तकरीबन भूल चुके हैं। हाल ही में 3 जुलाई को उनका यौम शहादत खामोशी के साथ गुजर गया। हमारे अपने लोगों ने उन्हें याद तक नहीं किया। ब्रिगेडीयर मुहम्मद उसमान वो हैं, जिनके बारे में फौजी मोअर्रिख कहते हैं कि अगर वो जिंदा रहते तो भारत के पहले मुस्लिम आर्मी चीफ भी होते। हकूमत-ए-पाकिस्तान ने उन्हें मुल्की फौज का सरबराह बनने की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने अपनी जान मादर-ए-वतन भारत पर ही निछावर करने को तर्जीह दी और पाकिस्तान के आफर को ठुकरा कर अपने वतन-ए-अजीज की बेलौस खिदमत की खातिर वापस आ गए।उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ के बीबी पुर कस्बा में पैदा हुए ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान भारती फौज आफिसरान के उस शुरूआती बैच में शामिल थे, जिनकी ट्रेनिंग बर्तानिया में हुई। दूसरी आलमी जंग में अपनी कियादत के लिए काबिल-ए-तारीफ कारकर्दगी अंजाम देने और कई बार तरक़्की हासिल करने वाले ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान 1947 में भारत-पाक जंग के वक़्त उस पच्चास पैरा ब्रिगेड के कमांडर थे, जिन्होंने नौशेरा में तारीखी जीत हासिल की थी। इसी वजह से उन्हें ‘नौशेरा का शेर’ लकब मिला।
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ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान 1948 की हिंद-पाक जंग के दौरान मैदान-ए-जंग में शहीद हुए। मुहम्मद उसमान उस वक़्त भारती फौज के आला तरीन अफ़्सर थे। उन्हें भारत में सेक्यूलारिज्म की जिंदा मिसाल करार दिया गया था जो अपने आप में बहुत बड़ी मिसाल है, जिसकी नजीर कहीं नहीं मिलती। वो जम्मू-कश्मीर में जंग के दौरान 3 जुलाई 1948 को झांग्र के मुकाम पर पाकिस्तान के खिलाफ जंग में शहीद हो गए थे। उन्हें बाद अज मौत मुल्क के दूसरे आला तरीन फौजी एजाज ‘महावीर चक्र’ से भी नवाजा गया है।
शहादत के बाद जब उनकी मय्यत कश्मीर से दिल्ली लाई गई थी, उस वक़्त के वजीर-ए-आजम जवाहर लाल नेहरू ने हर किस्म के प्रोटोकोल को नजरअंदाज करते हुए खुद उनका ताबूत वसूल किया था। उनकी नमाजे जनाजा के वक़्त गवर्नर जनरल सी राज गोपाल आचार्य, पहले सदर जमहूरीया डाक्टर राजिंदर प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू, मुल्की काबीना के मुतअद्दिद वुजरा और आर्मी चीफ भी जाती तौर पर मौजूद थे। उनकी नमाज जनाजा मुल्क के पहले वजीर-ए-तालीम मौलाना अबुल-कलाम आजाद ने पढ़ाई थी। ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान झांग्र पर दुबारा कंट्रोल हासिल करने के दौरान पाकिस्तानी फौज की एक तोप के गोले का निशाना बने थे। उस वक़्त उनकी उम्र 36 बरस से भी कम थी। शहादत के बाद सरकारी एजाज के साथ ब्रिगेडियर उसमान को जामिआ मिलिया इस्लामीया नई दिल्ली में दफनाया गया।
अपनी फौजी जिंदगी में बेहद सख़्त माने जाने वाले ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान अपनी निजी जिंदगी में भी बेहद इन्सान दोस्त और खैरखाह थे। उन्होंने शादी नहीं की थी और अपनी तनख़्वाह का बेशतर हिस्सा गरीब बच्चों की पढ़ाई और जरूरतमंदों पर खर्च करते थे। वो नौशेरा में यतीम पाए गए 158 बच्चों की अपनी औलादों की तरह देख-भाल करते और उनको पढ़ाते लिखाया करतये थे।
गुजिश्ता दिन उनके यौम-ए-पैदाइश के मौका पर उन्हें खराज-ए-अकीदत पेश करते हुए हकूमत-ए-हिन्द, हुकूमत उत्तरप्रदेश और आम अवाम से ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान की पैदाईश 15 जुलाई 1912 और शहादत की तारीख 3 जुलाई 1948 पर उन्हें याद किए जाने की अपील की गई। साथ ही और उनके नाम से यादगार कायम करने की अपील की गई ताकि अवाम में हुब्ब-उल-वतनी का जजबा पैदा हो और मुल्क के लिए ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान की खिदमात और कुर्बानी से मुतास्सिर होकर आज के नौजवान भी मुल्क के लिए मर मिटने के लिए तैयार रहें।
शहादत के बाद जब उनकी मय्यत कश्मीर से दिल्ली लाई गई थी, उस वक़्त के वजीर-ए-आजम जवाहर लाल नेहरू ने हर किस्म के प्रोटोकोल को नजरअंदाज करते हुए खुद उनका ताबूत वसूल किया था। उनकी नमाजे जनाजा के वक़्त गवर्नर जनरल सी राज गोपाल आचार्य, पहले सदर जमहूरीया डाक्टर राजिंदर प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू, मुल्की काबीना के मुतअद्दिद वुजरा और आर्मी चीफ भी जाती तौर पर मौजूद थे। उनकी नमाज जनाजा मुल्क के पहले वजीर-ए-तालीम मौलाना अबुल-कलाम आजाद ने पढ़ाई थी। ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान झांग्र पर दुबारा कंट्रोल हासिल करने के दौरान पाकिस्तानी फौज की एक तोप के गोले का निशाना बने थे। उस वक़्त उनकी उम्र 36 बरस से भी कम थी। शहादत के बाद सरकारी एजाज के साथ ब्रिगेडियर उसमान को जामिआ मिलिया इस्लामीया नई दिल्ली में दफनाया गया।
अपनी फौजी जिंदगी में बेहद सख़्त माने जाने वाले ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान अपनी निजी जिंदगी में भी बेहद इन्सान दोस्त और खैरखाह थे। उन्होंने शादी नहीं की थी और अपनी तनख़्वाह का बेशतर हिस्सा गरीब बच्चों की पढ़ाई और जरूरतमंदों पर खर्च करते थे। वो नौशेरा में यतीम पाए गए 158 बच्चों की अपनी औलादों की तरह देख-भाल करते और उनको पढ़ाते लिखाया करतये थे।
गुजिश्ता दिन उनके यौम-ए-पैदाइश के मौका पर उन्हें खराज-ए-अकीदत पेश करते हुए हकूमत-ए-हिन्द, हुकूमत उत्तरप्रदेश और आम अवाम से ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान की पैदाईश 15 जुलाई 1912 और शहादत की तारीख 3 जुलाई 1948 पर उन्हें याद किए जाने की अपील की गई। साथ ही और उनके नाम से यादगार कायम करने की अपील की गई ताकि अवाम में हुब्ब-उल-वतनी का जजबा पैदा हो और मुल्क के लिए ब्रिगेडियर मुहम्मद उसमान की खिदमात और कुर्बानी से मुतास्सिर होकर आज के नौजवान भी मुल्क के लिए मर मिटने के लिए तैयार रहें।
- बेनजीर अंसार एजुकेशनल एंड सोशल वेलफेयर सोसायटी
भोपाल
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