यूसुफ जफर मेहर अली : साइमन कमीशन के बायकाट का लिया फैसला

27 मुहर्रम-उल-हराम 1445 हिजरी
मंगल, 15 अगस्त, 2023
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अकवाले जरीं
‘अल्लाह के जिक्र के बिना ज्यादा बातें न किया करो, ज्यादा बातें करना दिल की कसादत (सख्ती) का सबब बनता है और सख्त दिल शख्स अल्लाह को पसंद नहीं।’
- मिश्कवात
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यूसुफ जफर मेहर अली : साइमन कमीशन के बायकाट का लिया फैसला
यूसुफ जफर मेहर अली
नई तहरीक : रायपुर 
यूसुफ जफर मेहर अली की पैदाईश 3 दिसंबर 1903 को बाम्बे के एक कारोबारी घराने में हुई। वकालत की तालीम पूरी कर उन्होंने मुल्क की आजादी के लिए खुद को वक्फ कर दिया। वकालत में पढ़ाई के दौरान ही मेहर अली ने एक आर्टिकल लिखा, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के अमानवीय व्यवहार पर कड़ा प्रहार किया था। उन्होंने लिखा कि ‘ब्रिटिश शासन कुत्ते के समान है, अगर आप उन्हें लात मारेंगे तो वे आपके तलवे चाटेंगे लेकिन जब आप उनके तलवे चाटेंगे तो वे आपको लात मारेंगे।’ इसके लिए अखबारों ने बड़ी नाराजगी जाहिर की। 

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    मेहर अली ने सन् 1925 में 22 साल की उम्र में यंग इंडिया सोसायटी नाम से नौजवानों की एक टीम बनाकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उन्हें मुल्क की आजादी के लिए टेÑंनिंग दी। 21 जनवरी को सोसायटी की मीटिंग में एक प्रस्ताव के जरिये टोटल इंडीपेंटेंस और सायमन कमीशन के बाईकाट का फैसला लिया गया। कांग्रेस के बड़े नेताओं ने इसे बचकाना हरकत बताया। युसूफ मेहर अली ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि मुल्क की आजादी के लिए वक्त पर बच्चे को भी बाप बनना पड़ता है। 
    जब साइमन कमीशन की शिप बाम्बे के मोले शिपिंग यार्ड स्टेशन पर पहुंची, साईमन ने जैसे ही पैर नीचे उतारा, युसूफ मेहर अली ने छापा मारकर अपनी नौजवान सेना के साथ पुलिस को धक्का देते हुए साइमन गो बैक का नारा बुलंद किया। अंगे्रज नौकरशाहों ने सबकी बहुत पिटाई की और उन्हें गिरफतार कर लिया। मेहर अली की सजा के साथ-साथ उन्हे लीगल प्रेक्टिस से भी डी-बार कर दिया गया। जेल से आने के बाद उन्होंने वीकली मैगजीन वैनगार्ड शुरू की, जिसने नौजवानों में लड़ाई के लिए जोश पैदा करने का काम किया। उनके द्वारा यूथ इंडिया के नौजवानों को ट्रेनिंग देने के काम की जानकारी मिलने पर अंग्रेज अफसर बहुत परेशान और नाराज हुए। नौजवानों में उनकी बढ़ती मकबूलियत और लीडरशिप को तोड़ने के लिए उन्हें कई बार गिरफतार किया गया और यातनाएं दी गई। उन्होंने शाप एंड इस्टेब्लििसमेंट एक्ट के जरिये दुकानों पर काम करने वाले मुलाजिमों का शोषण बंद कराया। मेहर युसूफ अली ने सत्याग्रह मूवमेंट में भी नुमाया किरदार अदा किया। उन्होंने सभी आंदोलनों में बढ़कर हिस्सा लिया और पुलिस का जुल्म और ज्यादतियां भी सहीं।
    उन्हें सन् 1942 के क्विट इंडिया आंदोलन का हीरो भी कहा जाता था। मेहर ने सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से मार्च 1948 में बाम्बे लेजिसलेटिव एसेंबली का चुनाव भी जीता। आजादी के लिए दी गई उनकी कुर्बानी और सादगी मुल्क के नौजवानों के लिए रोल माडल है। यरवदा जेल में मेहर पर अंगे्रज अफसरों ने इतना जुल्म किया कि उस वक्त की अंदरूनी चोट की वजह से जून सन् 1950 में वे बहुत सख्त बीमार पड्े और अस्पताल में ही 2 जुलाई सन् 1950 को जंगे आजादी के इस बहादुर सिपाही का इंतेकाल हो गया। 

ब शुक्रिया
सैय्यद शहनवाज अहमद कादरी
कृष्ण कल्कि
लहू बोलता भी है’
(जंग-ए-आजादी के मुस्लिम मतवालों की दास्तां)
प्रकाशक : लोकबंधु राजनारायण के लोग
कंधारी लेन, 36 कैंट रोड, लखनऊ


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