सैयद आबिद हुसैन सफरानी, जिन्होंने ‘जय हिंद’ नारा दिया

26 मुहर्रम-उल-हराम 1445 हिजरी
पीर, 14 अगस्त, 2023
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अकवाले जरीं
‘मेरी उम्मत में से सबसे पहले मेरे पास हौजे कौसर पर आने वाले वो होंगे जो मु्र­ासे और मेरे अहले बैत से मोहब्बत करने वाले हैं।’
- जामाह उल हदीस
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नई तहरीक : रायपुर 

आबिद हुसैन की पैदाईश 11 अपै्रल सन् 1911 को हैदराबाद में हुई थी। आपके वालिद का नाम अमीर हसन और वालिदा का नाम फखरुल हाजिया बेगम था जो खुद मुजाहिदीने आजादी में से थीं, इसलिए बचपन से ही सैयद आबिद हुसैन के खून में मुल्क की आजादी के लिए लड़ने का जज्बा और हौसला था। 
Syed Abid Hussain Safrani, who gave the slogan 'Jai Hind'
    आबिद हुसैन के तालीमी दौर में ही सिविल नाफरमानी आंदोलन का ऐलान हुआ जिसके बाद आपने पढ़ाई छोड़कर जंगे आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया। कुछ दिनों बाद आप साबरमती आश्रम चले गए, जहां सन् 1931 से महात्मा गांधी के साथ आंदोलन में आपने खुसूसी किरदार अदा किया। 
    कुछ दिनों के बाद आप ने सोचा कि इस तरह के आंदोलनों से ब्रिटिश हुकूमत आसानी से मुल्क छोड़कर नहीं जाएगी। इस ख्याल के बाद आप आश्रम छोडकर नौजवानों की टीम रिवोलूशनरी एसोसिएशन के मेंबर बनकर काम करने लगे। नौजवान एसोसिएशन ने नासिक की आयल रिफायनरी को उड़ाने की स्कीम बनाई  जिसका आपको हेड बनाया गया। पूरी तैयारी के साथ आप रिफायनरी पर पहुंचे लेकिन ऐन वक्त पर किसी ने अंगे्रज अफसरों को खबर कर दी थी, इसलिए यह मुहिम कामयाब नहीं हो सकी और आपको इसी जुर्म में गिरफ्तार कर नासिक जेल भेज दिया गया। 

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    एक साल बाद ही गांधी जी की इर्विन पैक्ट के तहत आपकी सजा कम कर दी गई। जेल से रिहा होने के बाद आप कांग्रेस के तंजीमी और आंदोलन की तैयारी के कामों में लग गए। लेकिन अहिंसक आंदोलनों में आपका मन नहीं लगा। जिसके बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई के नाम पर आप जर्मनी चले गए। बाद में आप ने इरादा बदला और सुभाषचंद्रा बोस की इंडियन नेशनल आर्मी में शामिल होकर अंग्रेजों से लड़ने का मन बना लिया। आप वहां जब सुभाषचंद्र बोस से मिले तो नेताजी ने आपकी जहानत देखकर कहा कि जब तक टेंÑनिंग हो, तब तक सेके्रटरी की जिम्मेदारी निभाओ। 
    नेताजी के साथ आपने सन् 1940 से लगभग पूरी दुनिया का सफर किया और नेताजी ने जो जिम्मेदारी दी थी, उसे निभाया। 9 फरवरी सन् 1943 को एक समुद्री सफर के दौरान आबिद हुसैन ने पहली बार ‘जय हिंद’ का नारा बुलंद किया जो सभी साथियों के साथ नेताजी को भी खासा पंसद आया। उसके बाद तो यह नारा इतना मशहूर हुआ कि इसके बिना कोई भी आंदोलन शुरू या खत्म नहीं होता था। 
    आबिद हुसैन नेताजी के आजाद हिंद फौज की गांधी ब्रिगेड के कमांडर बनाए गए। भारतीय सेना के कमांडरों के साथ आपको भी अंग्रेजों ने गिरफ्तार करके जेल भेज दिया, जहां से 1947 में मुल्क आजाद होने के बाद ही आप रिहा हुए। पंडित जवाहर लाल नेहरु की कोशिशों से उन्हें फर्स्ट सेक्रेटरी के पोस्ट पर और बाद में काउंसिल जनरल के पोस्ट पर फाइज हुए और डेनमार्क के बाद हैदराबाद आ गए और वही सन् 1984 में आपका इंतकाल हो गया। 

ब शुक्रिया
सैय्यद शहनवाज अहमद कादरी
कृष्ण कल्कि
‘लहू बोलता भी है’
(जंग-ए-आजादी के मुस्लिम मतवालों की दास्तां)
प्रकाशक : लोकबंधु राजनारायण के लोग
कंधारी लेन, 36 कैंट रोड, लखनऊ


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