26 मुहर्रम-उल-हराम 1445 हिजरी
पीर, 14 अगस्त, 2023
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अकवाले जरीं‘मेरी उम्मत में से सबसे पहले मेरे पास हौजे कौसर पर आने वाले वो होंगे जो मु्रासे और मेरे अहले बैत से मोहब्बत करने वाले हैं।’
- जामाह उल हदीस
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नई तहरीक : रायपुर
पटना (बिहार) के रहने वाले बिस्मिल अजीमाबादी अजीमाबाद घराने के काफी करीबी थे। बिस्मिल वहां नई-नई नज्में और गजले मुजाहिदीने आजादी की हिम्मत अफजाई के लिए लिखा व सुनाया करते थे। उनकी गजलों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ शोला निकलता था। आहिस्ता-आहिस्ता बिस्मिल खुद भी जंगे आजादी में हिस्सा लेने लगे।बिस्मिल अजीमाबादी, |
बिस्मिल अजीमाबादी की एक मशहूर गजल का शेर है :
सरफरोशी की तमन्ना अब हामरे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है। इसे बिस्मिल ने सन 1921 में पटना में कांग्रेस के सूबाई कान्फें्रस में सुनाया था। उस वक्त इस गजल को आजादी के दीवानों ने बार-बार फरमाईश करके चार बार पढ़ावाया। जब चौथी बार बिस्मिल अजीमाबादी ने इसे सुनाना शुरू किया, पूरा पंडाल उनके सुर में सुर मिलाने लगा। इसकी मकबूलियत का आलम यह था कि आजादी के नौजवानों की टीम ने इसे अपना गीत बना लिया था जिसके बाद, जब भी कोई इंकलाबी कमेटी की मीटिंग होती, उसकी शुरुआत इस गीत से ही होती। इंकलाी कमेटी का नाम बाद में हिंदूस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया गया।
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इस गजल को रामप्रसाद बिस्मिल हर वक्त गुनगुनाया करते थे, चूंकि वे खुद भी गीत व कविता लिखते थे और उन्होंने 35 गजले लिखी थी, इसलिए बाद में कुछ लोगों ने इसे रामप्रसाद के नाम से जोड़ दिया था। हालांकि आगे चलकर जो सच् था, वह सामने आ ही गया। ‘बिस्मिल’ नाम और टाईटिल ने लोगों को थोड़े दिनों के लिए भ्रम में डाल दिया था। रामप्रसाद में ‘बिस्मिल’ टाईटिल (तखल्लुस) है और बिस्मिल अजीमाबादी में ‘बिस्मिल’ नाम है।
बिस्मिल अजीमाबादी के बेटे की अपील पर यह मामला बाद में हाईकोर्ट तक जा पहुंचा और कोर्ट ने फैसला बिस्मिल अजीमाबादी के हक में दिया। तब उर्दू के जरिये दिल्ली सरकार ने इस पूरी गजल को छपवाया और साथ ही बिस्मिल का जीवन परिचय भी छापा। तब जाकर यह विवाद खत्म हुआ।
बिस्मिल अजीमाबादी के बेटे की अपील पर यह मामला बाद में हाईकोर्ट तक जा पहुंचा और कोर्ट ने फैसला बिस्मिल अजीमाबादी के हक में दिया। तब उर्दू के जरिये दिल्ली सरकार ने इस पूरी गजल को छपवाया और साथ ही बिस्मिल का जीवन परिचय भी छापा। तब जाकर यह विवाद खत्म हुआ।
ब शुक्रिया
सैय्यद शहनवाज अहमद कादरी
कृष्ण कल्कि
‘लहू बोलता भी है’
(जंग-ए-आजादी के मुस्लिम मतवालों की दास्तां)
प्रकाशक : लोकबंधु राजनारायण के लोग
कंधारी लेन, 36 कैंट रोड, लखनऊ
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