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सहरी का वक्त खत्म हो गया, रोजे की नीयत कर लें, कहते-कहते परवाज कर गई मोअज्जन की रूह

रोजादार का हर अमल इबादत

'' नबी-ए-करीम ﷺ का इरशाद है कि रोजेदार का सोना भी इबादत है, उसकी खामोशी तस्बीह, उसके अमल का सवाब दो गुना है, उसकी दुआ कुबूल की जाती है और उसके गुनाह बख्श दिए जाते हैं। '' 

- कंजुल इमान 

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बड़े भाई ने भी इसी तरह जुमा के रोज मस्जिद की सफाई के दौरान इस दारे फानी को कहा था अलविदा
मस्जिद का संग-ए-बुनियाद शाह फ़वाद अव्वल ने 1920 मैं रखा था
मिस्त्र की तारीखी मस्जिद, रमजान में बढ़ जाती है रौनक, लोग दूर-दूर से आते हैं नमाज-ए-तरावीह अदा करने

सहरी का वक्त खत्म हो गया, रोजे की नीयत कर लें, कहते-कहते परवाज कर गई मोअज्जन की रूह


नई तहरीक : उर्दू अदब और इस्लामी तारीख का पहला और वाहिद न्यूज पोर्टल… 

✅ क़ाहिरा : आईएनएस, इंडिया 

मिस्री बहीरा गवर्नरी के शहर दमनहूर में वाके तारीख़ी अल हबशी मस्जिद के मशहूर-ओ-मारूफ़ मोअज़्ज़िन ने काबिल-ए-रश्क हालत में जान दे दी। वे आसारे-ए-क़दीमा की तारीख़ी अलहबशी मस्जिद के मोअज्जन के तौर पर फ़ज्र की अज़ान के लिए खड़े हुए और फ़ौत हो गए। 
    उन्होंने नमाज़ियों को ऐलान किया कि सहरी का वक़्त ख़त्म हो गया है। उन्होंने कहा कि 'पानी छोड़ दो और रोज़े की नीयत कर लो और ख़ामोशी छा गई। वे बेहोश बेहोश हो गए थे। नमाज़ियों ने देखा तो मालूम हुआ कि उनका इंतिक़ाल हो गया है। 

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    उनके अहले खाना और शनासा अफ़राद ने फ़ज्र की अज़ान के दौरान मस्जिद में उनकी मौत को एक अच्छे अंजाम की अलामत क़रार दिया। उनकी मौत का ऐलान किया गया तो दामनहूर शहर की फ़िज़ा सोगवार हो गई। अलहबशी मस्जिद के इमाम शेख़ रमज़ान अबदुलहफ़ीज़ ने उनकी मौत पर इज़हार-ए-अफ़सोस किया और बताया कि वे 50 साल से तारीख़ी अलहबशी मस्जिद के मोअज़्ज़िन थे। उन्होंने ऐलान किया कि सहरी का वक़्त ख़त्म हो गया और जान दे दी। इससे कब्ल उनके बड़े भाई चचा इस्माईल भी इसी मस्जिद में जुमा की नमाज़ के लिए मस्जिद की सफ़ाई करते और नमाज़ की तैयारी के काम करने के दौरान चल बसे थे। 

    अलहबशी मस्जिद के इमाम ने मज़ीद कहा कि उनकी नमाज़ जनाज़ा दोपहर को अलहबशी मस्जिद में ही अदा की गई। बहीरा गवर्नमेंट के शहर दमनहूर में वाके अलहबशी मस्जिद को शहर के वस्त में वाके एक तारीख़ी मस्जिद समझा जाता है। मस्जिद का डिज़ाइन ममलूक अंदाज़ में बनाया गया था। मस्जिद का संग-ए-बुनियाद शाह फ़वाद अव्वल ने 1920 मैं रखा था। वज़ारत नवादिरात ने 2017 मैं दमनहूर की अलहबशी मस्जिद को उसकी क़दीम तारीख़ की वजह से एक क़दीम मस्जिद के तौर पर मंज़ूर किया था। 
    अलहबशी मस्जिद अपनी मुख़्तलिफ़ आसारे-ए-क़दीमा और तामीराती एहमीयत की वजह से दमनहूर शहर और पूरी बहीरा गवर्नरी की मुख़्तलिफ़ मसाजिद में ख़ास एहमीयत की हामिल है। अलहबशी मस्जिद की रौनक माह-ए-मुबारक रमज़ान की आमद के साथ बढ़ जाती है। मुक़द्दस महीने के दौरान सैंकड़ों शहरी मस्जिद में नमाज़ तरावीह अदा करने के लिए आते हैं।

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