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काम की जगह पर तहफ़्फ़ुज़, एक आलमी तक़ाज़ा, इस्लामी कल्चर सबसे महफ़ूज़ : एमडब्ल्यू अंसारी (आईपीएस)

 शव्वाल उल मुकर्रम, 1446 हिजरी 

   फरमाने रसूल     

"सिर्फ तीन जगह पर झूठ जाएज़ और हलाल है, एक ये के आदमी अपनी बीवी से बात करें ताकि उसको राज़ी कर ले, दूसरा जंग में झूठ बोलना और तीसरा लोगों के दरमियान सुलह कराने के लिए झूठ बोलना।"

- अबू दाऊद 



वर्ल्ड डे फ़ार सेफ़्टी एंड हेल्थ ऐट वर्क
इस्लाम एक ऐसा दीन है, जो इन्सान की हुर्मत और हुक़ूक़ की हिफ़ाज़त करता है।
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया, मज़दूर की मज़दूरी उसका पसीना ख़ुशक होने से पहले अदा करो।

✅ नई तहरीक : भोपाल 
दुनियाभर में हर साल डे फ़ार सेफ़्टी एंड हेल्थ 28 अप्रैल को वर्ल्ड एट वर्क मनाया जाता है ताकि मुलाज़मीन के लिए महफ़ूज़, सेहतमंद और काम के माहौल की बाइज़्ज़त एहमीयत को उजागर किया जा सके। ये दिन ना सिर्फ सनअती तरक़्क़ी में इन्सानी जानों की हिफ़ाज़त पर ज़ोर देता है बल्कि काम की जगह पर मुहज़्ज़ब रवैय्ये, एहतियाती तदाबीर और सेहतमंद पालीसियों की तशकील की एहमीयत भी याद दिलाता है।
    बैन-उल-अक़वामी मेहनत तंज़ीम (आईएलओ) की जानिब से 2003 में इस दिन की बुनियाद रखी गई थी, जिसका मक़सद था, आलमी सतह पर हुकूमतों, इदारों और कारकुनों को इस बात पर मुतवज्जा किया जाए कि वो काम की जगहों पर हादिसात और बीमारियों से बचाओ के लिए मूसिर इक़दामात करें।
    ये दिन मज़दूरों के आलमी यौम यादगार के तौर पर भी मनाया जाता है, जहां उन तमाम मेहनतकशों को ख़राज-ए-तहसीन पेश किया जाता है जो काम के दौरान ज़ख़मी हुए या अपनी जानों से हाथ धो बैठे।
    आज की तेज़-रफ़्तार सनअती दुनिया में काम की जगहें बाज़-औक़ात इंतिहाई ख़तरनाक हालात की अक्कासी करती हैं। केमिकल, नाक़िस वेंटीलेशन या हिफ़ाज़ती तदाबीर का ना होना, मुतअद्दिद जानलेवा हादिसात का बाइस बनता है। इसीलिए इदारों पर लाज़िम है कि वो अपने मुलाज़मीन को ना सिर्फ तकनीकी तर्बीयत फ़राहम करें बल्कि उनकी सेहत को भी अव्वलीन तर्जीह दे।
    इस्लाम एक ऐसा दीन है, जो इन्सान की हुर्मत और हुक़ूक़ की हिफ़ाज़त करता है। अल्लाह के आख़िरी पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया तुम्हारे मुलाज़मीन तुम्हारे भाई हैं, जिन्हें अल्लाह ने तुम्हारे मातहत किया है। पस जिसका भाई उसके मातहत हो, वो उसे वही खिलाए जो वो ख़ुद खाता है, और वही पहनाए जो वो ख़ुद पहनता है, और उनसे उनकी ताक़त से बढ़कर काम ना ले। अगर कोई सख़्त काम हो, तो उसमें उनकी मदद करे। इससे पता चलता है कि काम की जगह पर कारकुनों को भाईयों की तरह समझा जाए, उन पर जुल्म ना किया जाए, और उनकी ज़रूरीयात का ख़्याल रखा जाए।
    एक और मौक़ा पर नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया, मज़दूर की मज़दूरी उसका पसीना ख़ुशक होने से पहले अदा करो। ये इस्लामी उसूल इस बात की ताकीद करते हैं कि कारकुन के साथ अदल, मेहरबानी और इज़्ज़त का बरताव किया जाए।
    कारकुनों की हिफ़ाज़त सिर्फ अख़लाक़ी या मज़हबी ज़िम्मेदारी नहीं, क़ानूनी तक़ाज़ा भी है। हर इदारे को चाहिए कि तमाम मुलाज़मीन को हिफ़ाज़ती तर्बीयत दे, उनके लिए हिफ़ाज़ती लिबास, आलात और फ्रर्स्ट एड दस्तयाब रखे, हंगामी हालात के लिए एग्ज़िट प्लान और फ़ायर अलार्म नसब करे, कारकुनों की जिस्मानी और ज़हनी सेहत की बाक़ायदा जांच करवाए, मुलाज़मीन से मुसलसल फीडबैक लेता रहे कि मसाइल की बरवक़्त निशानदेही हो।
    वर्ल्ड डे फ़ार सेफ़्टी एंड हेल्थ ऐट वर्क हमें याद दिलाता है कि एक महफ़ूज़ और सेहतमंद काम का माहौल हर इन्सान का बुनियादी हक़ है। जब हम दुनियावी क़वानीन और इस्लामी तालीमात को यकजा करते हैं तो एक ऐसा मुआशरा जन्म लेता है, जहां हर मेहनतकश को तहफ़्फ़ुज़, इज़्ज़त और फ़लाह के साथ काम करने का मौक़ा मिलता है। इस दिन का पैग़ाम सिर्फ एक दिन के लिए नहीं, बल्कि हर दिन के लिए है और यही तरक़्क़ी की असल बुनियाद है।

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