✅ नुज़हत सुहेल पाशा : रायपुर
रायपुर के पंडरी इलाके में हाल ही में सामने आया मामला पूरे शहर को झकझोर कर रख देने वाला है। तीन साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म के मामले में आरोपी खुद नाबालिग है, जिसकी उम्र लगभग 14-15 वर्ष बताई जा रही है। यह घटना केवल एक अपराध नहीं बल्कि हमारे सामाजिक ताने-बाने, परवरिश, इंटरनेट के असुरक्षित इस्तेमाल और बाल मनोविज्ञान के पतन का स्पष्ट संकेत है।
कौन अपराधी, कौन पीड़ित ?
यह सवाल हर व्यक्ति के मन में उठ रहा है। एक तरफ तीन साल की मासूम बच्ची है, जिसकी ज़िंदगी अभी शुरू ही हुई थी, और दूसरी तरफ एक नाबालिग लड़का है जो खुद अभी किशोरावस्था की दहलीज पर है। क्या वह केवल अपराधी है या किसी गहरे, ज़हरीले तंत्र का शिकार भी है ? इस सवाल का जवाब केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से ढूंढ़ना ज़रूरी है।
चाइल्ड साइकोलॉजी : मानसिक परिपक्वता और नैतिक शिक्षा
14-15 वर्ष की उम्र मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से बेहद नाजुक होती है। इस उम्र में बच्चे शारीरिक बदलावों से गुज़र रहे होते हैं, उनके भीतर नई इच्छाएं जन्म ले रही होती हैं, लेकिन उनकी मानसिक और नैतिक परिपक्वता अभी पूरी नहीं हुई होती है। यदि इस उम्र में सही मार्गदर्शन न मिले, तो उनका मन किसी भी दिशा में भटक सकता है।
इस उम्र के बच्चों में अत्यधिक होती है जिज्ञासा : मनोविज्ञान विशेषज्ञ
- सीमाओं का बोध कम होता है
- सही और गलत में फर्क स्पष्ट नहीं होता
- मीडिया और सोशल प्रभाव बहुत जल्दी असर डालते हैं
- इंटरनेट, पोर्न साइट्स और सोशल मीडिया का ज़हर
- अनुसंधानों के अनुसार :
- लगभग 70-80 % किशोर कभी न कभी पोर्न साइट्स देखते हैं
- दुनिया भर में रोज़ाना 10 करोड़ से अधिक विज़िट्स पोर्न साइट्स पर होते हैं
- कोविड-19 के बाद ऑनलाइन पढ़ाई के चलते बच्चों की इंटरनेट तक पहुँच बढ़ी है, जिससे असुरक्षित कंटेंट तक पहुँच भी आसान हो गया है।
सोशल मीडिया, खासकर इंस्टाग्राम, यूट्यूब शॉर्ट्स और टिक-टॉक जैसे प्लेटफार्मों पर फैल रही अश्लीलता बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर सीधा असर डालती है। जब उनके भीतर जन्म ले रही इच्छाओं को समझाने वाला, संभालने वाला कोई नहीं होता, तो वे आसानी से किसी भी गलत राह पर जा सकते हैं।
कानूनी पहलू
भारतीय कानून के अनुसार :
पास्को एक्ट के तहत बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को गंभीर श्रेणी में रखा गया है, चाहे अपराधी नाबालिग ही क्यों न हो।
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (खखअ) के तहत नाबालिग अपराधियों को अलग ढंग से हैंडल किया जाता है, लेकिन यदि अपराध अत्यंत गंभीर हो तो उन्हें वयस्कों की तरह ट्रायल भी दिया जा सकता है।
इस केस में भी न्यायालय को यह तय करना होगा कि आरोपी की मानसिक स्थिति, उसकी उम्र और अपराध की प्रकृति के आधार पर कौन-सी कानूनी प्रक्रिया अपनाई जाए।
समाधान और सुझाव
- घरेलू निगरानी : बच्चों के इंटरनेट उपयोग पर माता-पिता की निगरानी अनिवार्य हो।
- स्कूलों में चाइल्ड साइकोलॉजी और सेक्स एजुकेशन : बच्चों को सही उम्र में उचित जानकारी दी जाए।
- डिजिटल फिल्टर्स और ब्लॉकिंग सिस्टम : पोर्न साइट्स की पहुँच को रोकने के लिए तकनीकी उपाय है।
- सामाजिक जागरूकता : सोशल मीडिया और अश्लीलता के खिलाफ जन-जागरूकता अभियान।
- कानूनी सख्ती : ऐसी साइट्स और ऐप्स को नियंत्रित करने के लिए कड़े कानून बनाए जाएं।
यह घटना केवल एक अपराध की दास्तान नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि यदि हम अब भी जागे नहीं, तो हमारी आने वाली पीढ़ियाँ नैतिक रूप से खोखली हो जाएंगी। हमें एक अभिभावक, शिक्षक, नीति-निर्माता और समाज के सदस्य के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी। मासूम दिमागों को दरिंदा बनने से बचाना अब हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
Media incharge
JIH women's wing chhatisgarh