रमजान उल मुबारक-1445 हिजरी
विसाल (3 रमज़ान)
खातूने जन्नत हज़रत फातिमा ज़ुहरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा
हज़रत ख्वाजा सिरी सकती रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
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कर्ज की जल्द से जल्द करें अदायगी
'' हजरत अबू मूसा अश्अरी रदिअल्लाहू अन्हु से रिवायत है कि जनाब नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया- कबाईर (बड़े) गुनाहों के बाद सबसे बड़ा गुनाह यह है कि कोई शख्स मर जाए और उस पर देन यानी किसी का भी हक हो और उसके अदा करने के लिए वह कुछ न छोड कर जाए।''- अबु दाउद
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✅ जददा, रियाद : आईएनएस, इंडिया
सऊदी महकमा पासपोर्ट ने जद्दा के किंग अब्दुल अज़ीज़ एयरपोर्ट पर रमज़ान में पहली परवाज़ों से आने वाले उमरा ज़ाइरीन का खैरमक़दम किया। सरकारी न्यूज एजेंसी एसपीए के मुताबिक़ ज़ाइरीन की ममलकत आमद के अमल को आसानी और रवानी के साथ मुकम्मल किया गया।याद रहे कि महकमा पासपोर्ट ने इससे कब्ल बयान में कहा था कि रमज़ान के दौरान ज़ाइरीन के खैरमक़दम के लिए अपनी तैयारीयां मुकम्मल कर लीं गई हैं। ममलकत के तमाम बैन-उल-अक़वामी पोर्टस पर अपने तमाम हाल् में क्वालीफाईड अमला और जदीद तकनीकी डिवाईसेज जैसे दो ज़बानों में तर्जुमा करने वाली डिवाईस और एक मोबाइल काउंटर क़ायम किया गया है। महिकमा पासपोर्ट ने उमरे के लिए ममलकत आमद और रवानगी तक क़वाइद-ओ-ज़वाबत और हिदायात पर अमल करने की एहमीयत पर ज़ोर दिया था।
क़ौमी काउंसिल बराए फ़रोग़ उर्दू ज़बान का जिम्मा डाक्टर शम्स इक़बाल के कांधे पर
नई दिल्ली : क़ौमी काउंसिल बराए फ़रोग़ उर्दू ज़बान (एनसीपीयूएल) को डाक्टर शमस इक़बाल की शक्ल में नया डायरेक्टर मिल गया है। वे नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) के जवाइंट डायरेक्टर (उर्दू) भी रहे हैं। मर्कज़ी वज़ीर-ए-तालीम (हायर एजूकेशन) धर्मेन्द्र प्रधान ने शम्स इक़बाल के नाम को मंज़ूरी दी। वे जल्द ही अपना ओहदा सम्भालेंगे।शम्स इक़बाल को आइन्दा तीन सालों के लिए डायरेक्टर की ज़िम्मेदारी दी गई है। इससे कब्ल वो काउंसिल में प्रिंसिपल पब्लीकेशन्ज़् ऑफीसर की ख़िदमात अंजाम दे चुके हैं। गुजिश्ता कई माह से क़ौमी काउंसिल बराए फ़रोग़ उर्दू ज़बान का कोई मुस्तक़िल डायरेक्टर नहीं था। साबिक़ डायरेक्टर प्रोफेसर शेख़ अक़ील अहमद सितंबर में अपनी मुद्दत पूरी करने के बाद सबकदोश (रिटायर) हो गए थे। हालाँकि उन्होंने आइन्दा मुद्दत के लिए भी कोशिशें की थीं, लेकिन उन्हें तौसीअ (एक्सटेंशन) नहीं मिल सका था। तक़रीबन 6 माह से प्रोफेसर धनंजय सिंह कारगुज़ार डायरेक्टर की ज़िम्मेदारी सँभाल रहे थे।
डाक्टर शम्ल इक़बाल के लिए ये ओहदा एक तरफ़ ख़ुशी और मुसर्रत की बात है तो दूसरी तरफ़ उनके लिए काफ़ी बड़ा चैलेंज भी है। डाक्टर शमस इक़बाल ने नेशनल बुक ट्रस्ट में उर्दू एडीटर के तौर पर अहम ख़िदमात अंजाम दी हैं। लेकिन गुजिश्ता मुद्दत से अब तक क़ौमी उर्दू काउंसिल की हालत ठीक नहीं है बल्कि कई स्कीमें ऐसी हैं, जो बंद हो गई हैं, उसे दुबारा शुरू करना और आगे बढ़ाना उनके लिए किसी चैलेंज से कम नहीं होगा। काबिल ज़िक्र है कि क़ौमी काउंसिल बराए फ़रोग़ उर्दू ज़बान के डायरेक्टर के तौर पर डाक्टर हमीदुल्लाह भट्ट, डाक्टर अली जावेद, प्रोफेसर ख़्वाजा मुहम्मद इकराम उद्दीन, प्रोफेसर इर्तिज़ा करीम और प्रोफेसर शेख़ अक़ील अहमद जैसी शख़्सियात ख़िदमात अंजाम दे चुकी हैं। किसी ने ओहदा सँभालने के बाद उर्दू ज़बान के फ़रोग़ में अहम किरदार अदा किया तो किसी ने सिर्फ ज़बानी जमा ख़र्च से काम लिया। लेकिन अब नए डायरेक्टर को इन तमाम चैलेंजिज़ से निमटना होगा।