24 मुहर्रम-उल-हराम 1445 हिजरी
सनीचर, 12 अगस्त, 2023
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अकवाले जरीं
‘अल्लाह के जिक्र के बिना ज्यादा बातें न किया करो, ज्यादा बातें करना दिल की कसादत (सख्ती) का सबब बनता है और सख्त दिल शख्स अल्लाह को पसंद नहीं।’
‘अल्लाह के जिक्र के बिना ज्यादा बातें न किया करो, ज्यादा बातें करना दिल की कसादत (सख्ती) का सबब बनता है और सख्त दिल शख्स अल्लाह को पसंद नहीं।’
- मिश्कवात
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कर्ब का गीत तुझे आज सुनाएंगे जरूर,
जिंदगी नाम है क्या, तुझको बताएंगे जरूर।
जिंदगी नाम है क्या, तुझको बताएंगे जरूर।
इस जमाने की सभी कुलफतें हर्फ़न-हर्फ़न,
अपनी गजलों के तवस्सुत से जताएंगे जरूर।
अपनी गजलों के तवस्सुत से जताएंगे जरूर।
तल्खी-ए-जीस्त, हमें तुझसे कोई शिकवा नहीं,
हम तिरा साथ बहर-तौर निभाएंगे जरूर।
हम तिरा साथ बहर-तौर निभाएंगे जरूर।
तिरा हर रंज नुमायां है, हमारे दिल पर,
खू गर-ए-रंज हैं, हर रंज भुलाएंगे जरूर।
खू गर-ए-रंज हैं, हर रंज भुलाएंगे जरूर।
हमने माना कि तू लाहक है, मुकद्दर बन कर,
अपनी आँखों पे तुझे फिर तो बिठाएँगे जरूर।
अपनी आँखों पे तुझे फिर तो बिठाएँगे जरूर।
तू मेरे दर्द का दरमाँ तो नहीं है, लेकिन,
फिर भी हम अपने गले तुझको लगाएँगे जरूर।
फिर भी हम अपने गले तुझको लगाएँगे जरूर।
इबतिला से तेरी, हमको कोई शिकवा तो नहीं,
बन के कुन्दन तुझे इक रोज दिखाएँगे जरूर।
बन के कुन्दन तुझे इक रोज दिखाएँगे जरूर।
अपनी फितरत पे सरापा है अगर तू नाजाँ,
हम ब-सद अज तेरा नाज उठाएँगे जरूर।
हम ब-सद अज तेरा नाज उठाएँगे जरूर।
जखम गहरे हैं, बहुत दिल पे हमारे, ‘फाखिर’
अपने दिल से, उन्हें हम फिर भी मिटाएँगे जरूर।
अपने दिल से, उन्हें हम फिर भी मिटाएँगे जरूर।
कुलफतें-मुसीबतें, हर्फन-हर्फन-शब्द दर शब्द, तवस्सुत-जरिये
तल्खी-ए-जीस्त-कड़वा जीवन, दरमां-दवा, इब्तिला-यातना
तल्खी-ए-जीस्त-कड़वा जीवन, दरमां-दवा, इब्तिला-यातना
- लुबना हाउस, जामिआ नगर, ओखला, नई दिल्ली
रूहानी इलाज
घर में लड़ाई-झगड़ा, रुपए-पैसों की तंगी, बे-बरकती, नुहूसत और जिन्नाती असरात दूर करने के लिए ‘सूरह जिन्न’ और ‘सूरह मुजम्मिल’ 3-3 बार (अव्वल-आखिर 3-3 बार दुरूदे पाक के साथ) पढ़कर आजवाइन और लोबान पर दम करें और 7 या 11 दिन धूनी लगाएं और दुआ कर लें। इन्शा अल्लाह घर में लड़ाई-झगड़ा खत्म होकर तंगदस्ती, बे-बरकती, नुहूसत और जिन्नाती असरात दूर हो जाएंगे।