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पंजाब में गुजिश्ता चंद सालों में बहाल हो गई 165 मसाजिद

28 जिल हज्ज, 1444 हिजरी
पीर, 17 जुलाई, 2023
अकवाले जरीं
‘जो कोई नजूमी (ज्योतिष) के पास जाए और उससे कुछ मुस्तकबिल के बारे में सवाल करे तो उसकी चालीस रातों की इबादत कबूल नहीं होती।’  
- मुस्लिम
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चंडीगढ़ : आईएनएस, इंडिया 
पंजाबभर के देहातों में फिरकावाराना हम-आहंगी को परवान चढ़ाने की कोशिशें जारी है। एक ऐसी रियासत, जिसने देखा कि आजादी के वक्त मुस्लमानों की आबादी 40 फीसद से कम होकर अब 1.93 फीसद हो गई है, गांव के लोग और गुरुद्वारे तर्क कर दी गई मसाजिद को बहाल करने में मदद कर रहे हैं। 
165 mosques restored in last few years in Punjab
    जमात-ए-इस्लामी हिंद की पंजाब शाख का कहना है कि गुजिश्ता चंद सालों में 165 से ज्यादा मसाजिद को बहाल किया गया है जबकि एक जानकारी के मुताबिक ये नंबर 160 है। बरनाला जिÞला के बख़्तगढ़ गांव में मस्जिद की बहाली के लिए एक किसान अमनदीप सिंह ने पहल की और उसने दिसंबर 2022 में मस्जिद की तामीर के लिए 250 मुरब्बा गज जमीन का अतीया दिया। जल्द ही, साथी गांव वालों से पैसे आने लगे। 2 लाख रुपय इकट्ठे होने के बाद, पड़ोसी देहातों ने सीमेंट और ईंटों से ढेर लगा दिया। एक मुकामी मुस्लमान खानदान ने मस्जिद के लिए सब मर्सिबल पंप लगा दिया। 
    अंग्रेजी रोजनामा इंडियन एक्सप्रेस में शाइआ खबर के मुताबिक मोती खान ने बताया कि उतर प्रदेश के रहने वाले मुस्लिम खानदान ने छ: लाख रुपय का अतीया दिया। अमन दीप ने याद किया कि कैसे मस्जिद की संग-ए-बुनियाद के वक़्त पंद्रह मुस्लिम खानदान के अलावा पूरे गांव के लिए लंगर का इंतिजाम किया गया था और सब ने मिलकर लंगर खाया था। 80 साला खोकर खान ने बताया कि जब हिन्दोस्तान की तकसीम हुई तो वो भटिंडा के बल्लू गांव में रहते थे और हमारे गैर मुस्लिम बहन-भाईयों ने हमें पाकिस्तान नहीं जाने दिया था और हम जाना भी नहीं चाहते थे। उस वक्त हमारे गांव वाले बल्व से बख़्त गढ़ गांव ले आए थे जो 20 किलोमीटर दूर था। उन्होंने ये यकीन दिलाया कि हम वहां महफूज हैं। अमन दीप को उम्मीद है कि अगली ईद से पहले मस्जिद तैयार हो जाएगी और वहां के मुस्लमान इस मस्जिद में नमाज पढ़ सकेंगे। 
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    माअरूफ पंजाबी गुलूकार गुरभजन सिंह कहते हैं कि वैसे तो इस कदम के पीछे उन मुस्लिम मजदूरों को नमाज अदा करने में मदद करना है, जो पंजाब में मजदूरी के लिए आते हैं, लेकिन इस कदम से इस एहमीयत को कम नहीं किया जा सकता कि तकसीम से पहले पंजाब में जो मसाजिद थीं, उनमें से 50 फीसद में अब गुरूद्वारे हैं, और उन मसाजिद की बहाली में पंजाब के लोगों का अहम किरदार है। शालिनी शर्मा, जो पंजाब एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी में सोशियोलाजी की प्रोफेसर हैं, वो इस कदम के लिए सिक्ख ग्रुपों के नजरियात को जिÞम्मेदार मानती हैं जो लोगों को हम-आहंगी और भाईचारे के साथ रहना सिखाते हैं। उनका कहना था कि अगर हम पाकिस्तान के पंजाब में भी जाएं तो वहां की मेहमान-नवाजी और एहतिराम काबिल-ए-तारीफ है।


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