जमादी उल ऊला 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
जो आदमी इस हाल में फौत हुआ के वह अल्लाह ताअला और आख़ेरत पर इमान रखता हो तो उससे कहा जाएगा, जन्नत के आठ दरवाज़ों में से जिस दरवाज़े से दाखिल होना चाहता है, दाखिल हो जा।
- मसनद अहमद
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मुल्क-ओ-मिल्लत की तामीर व तरक्की में उल्मा किराम अदा करें ख़ुसूसी किरदार : इमाम मस्जिद नबवी ﷺ
✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
मैं हरमैन शहर रसूल अल्लाह ﷺ से इस्लाम का पैग़ाम अमन व इंसानियत लेकर हिंदूस्तान आया हूं। मैं दुआ करता हूँ कि अल्लाह ताअला इस मुल्क को अमन व शांति का गहवारा बनाए। इन ख़्यालात का इज़हार मस्जिद-ए-नबवी ﷺ के इमाम डाक्टर अदा लिल्लाह बिन अबदुर्रहमान अलबईजान ने किया। इमाम मस्जिद नबवी ﷺ मर्कज़ी जमईयत अहल-ए-हदीस हिंद के रामलीला मैदान में मुनाकिद इफ़्तिताही इजलास से ख़िताब कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उल्मा की बड़ी ज़िम्मेदारी है कि मुल़्क व मआशरे की तामीर व तरक्की में उल्मा अपना किरदार अदा करें, ये वक़्त की बड़ी ज़रूरत है। उन्होंने मज़ीद कहा कि मर्कज़ी जमईयत अहल-ए-हदीस हिंद हिन्दुस्तानी मुस्लमानों की सबसे बड़ी और क़दीम जमात है, जिसकी असास अक़ीदा, तौहीद और किताब व सुन्नत पर है। उन्होंने एहतिराम इन्सानियत व मज़ाहिब आलम के उनवान पर इस अज़ीमुश्शान कान्फ्रेंस के इनइक़ाद पर मर्कज़ी जमईयत अहल-ए-हदीस हिंद के ज़िम्मादारान को मुबारकबाद पेश की।
उन्होंने कहा, कान्फ्रेंस मुनाक़िद कर जमईयत अहले हदीस ने इन्सानियत का भूला हुआ सबक़, उखुवत व इंसानियत याद दिलाने की कोशिश की है। सदर कान्फ्रेंस मौलाना असग़र अली इमाम मह्दी सलफ़ी ने अपने सदारती ख़िताब में कहा कि आज इन्सानियत मुख़्तलिफ़ तरह की चुनौतियों का सामना कर रही है। इन्सान माद्दियत, दुनियादारी की तरफ़ माइल और आख़िरत की जवाबदेही से बे-ख़ौफ़ होता जा रहा है जबकि इस्लाम ने इन्सान को अपनी ज़िंदगी को पुरसुकून बनाने के लिए अज़ीम नुस्ख़ा अता किया है और बिला तफ़रीक़ किसी मज़हब या मज़हबी किताब की बे-हुरमती से बचने की तालीम दी है और समाजी रवादारी का हुक्म दिया है।
उन्होंने कहा कि बैन उल मज़ाहिब मुकालमा (विभिन्न धर्मों के बीच संवाद) एक दीनी व समाजी ज़रूरत है। नबी ﷺ ने ख़ुद हलफ़ अलफ़ज़ूल में शिरकत और नजरान के ईसाईयों से मुकालमा कर हमें ये पैग़ाम दिया है कि हम एक दूसरे को समझने, अपनी बात दूसरों के सामने रखने की कोशिश करें, इससे मज़हब का तआरुफ़ और ग़लतफ़हमी का अज़ाला होगा। उन्होंने क़ौमी यकजहती, आपसी भाईचारा के फ़रोग़, मसलकी नाचाक़ी को ख़त्म करने, मुनाफ़िरत को हवा ना देने और तशद्दुद से बचने और नरमी बरतने की अपील करते हुए कहा कि भाई-भाई बन कर एक-दूसरे के दुख-सुख में काम आएं, जंग व जदाल इन्सानियत के लिए सबसे मनहूस और मोहलिक (जानलेवा) है।
उन्होंने कहा, क़ुरआन व हदीस में में जगह-जगह मुख़्तलिफ़ अंदाज़ और मुख़्तलिफ़ मज़ाहिब में नाचाक़ी, झगड़े फ़साद से बचने की तलक़ीन की गई है। उन्होंने कहा, मुस्लिम पर्सनल ला की हिफ़ाज़त, मदारिस व मदारिस की सयानत और औरतों के हुक़ूक़ के तहफ़्फ़ुज़ की ज़िम्मेदारी सबसे पहले मुस्लमानों की है। इसी तरह आईन की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी हुकूमत की है।
गजा पटटी की बर्बादी पर की बात
उन्होंने फ़लस्तीन के ग़ज़ा की तबाही व बर्बादी का तज़किरा करते हुए कहा कि पूरी दुनिया से जंग के खात्मे के लिए अक़्वाम आलम को संजीदा कोशिश और इक़दाम करने की ज़रूरत है। मीसाक़ मदीना (मदीना शरीफ का प्रतिज्ञापत्र) की रोशनी में उन्होंने कहा कि इसमें मुस्लिम शहरियों के साथ अक़लीयतों के मुख़्तलिफ़ हुक़ूक़ को तहफ़्फ़ुज़ दिया गया है और इस मुआहिदा के मुताबिक़ तमाम शुरका पर ये शर्त आइद की गई है कि वो दीगर शहरियों के हुक़ूक़ वि वाजबात का भी ख़्याल रखें। इसके अलावा इस मीसाक़ में कहा गया है कि अक़लीयतों को अपने मज़हब के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारने, हक़ इज़हार राय और अमन-ओ-अमान की सहूलत हासिल होगी। रवादारी की इससे आला मिसाल और क्या हो सकती है।राबिता आलिम इस्लामी के अस्सिटेंट जनरल सेक्रेटरी डाक्टर अबदुर्रहमान बिन अबदुल्लाह अलज़ीद ने कहा कि राबिता आलिम इस्लामी के जनरल सेक्रेटरी डाक्टर मुहम्मद ईसा ने आप सब के नाम अमन व शांति और मुहब्बत भरा पैग़ाम भेजा है। उन्होंने आगे कहा कि एहतिराम इन्सानियत और मज़ाहिब आलम के उनवान पर इस काबिल मुबारकबाद कान्फ्रेंस से तवक़्क़ो है कि मुल्की व आलमी सतह पर इसके दूर रस असरात मुरत्तिब होंगे और इन्सानियत को तक़वियत (ताकत) मिलेगी। इससे क़बल ख़ुतबा इस्तिक़बालिया पेश करते हुए मजलिस इस्तिक़बालिया के सदर डाक्टर अबद उल अज़ीज़ रहमानी मुबारकपुरी ने कहा कि इस्लाम एक आलमगीर मज़हब है, इसकी तालीमात और उसूल व जवाबत (शर्तें) आफ़ाक़ी (सार्वभौमिक) हैं, इसकी दावत किसी ख़ित्ता और इलाक़ा तक महिदूद नहीं है। इस्लाम और इसके मुतबईन (अनुयायी) में एहतिराम इन्सानियत, मुहब्बत और उखुवत दाख़िल है।
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उन्होंने कहा कि इस्लाम की इन सच्ची तालीमात, अख़लाक़ी इक़दार व बुलंद पाया व पाकीज़ा हिदायात को पूरी दुनिया तक पहुंचाने की ज़रूरत है, उन्होंने मज़ीद कहा कि इस्लाम ने इन्सानी ताल्लुक़ात की उस्तवारी का मुकम्मल पास व लिहाज़ किया है, समाज के ज़रूरतमंदों, ग़रीबों की मदद करने और बीमारों की इयादत करने और मिज़ाजपुर्सी का सबक़ दिया है। इस्लाम की ये तालीमात किसी तबक़ा तक महिदूद नहीं है, इसमें सभी फ़िरक़े के लोग शामिल हैं। हर तबक़ा के ज़रूरतमंद लोग तआवुन व मदद के मुस्तहिक़ हैं।
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जमई उल्मा हिंद के सदर मौलाना अरशद मदनी ने इस अहम कान्फ्रेंस के मौज़ू 'एहतिराम इन्सानियत और आलिम' के इंतिख़ाब पर मर्कज़ी जमईयत अहल-ए-हदीस हिंद के अमीर मौलाना असग़र अली इमाम मह्दी सलफ़ी की सताइश की और कहा कि इबराहीम अलैहिससलाम ने अपनी ज़िंदगी से हमें ईसार (त्याग) व कुरबानी की तालीम दी है। हमारे रसूल 000 ने हमें अमन की दुआ करने की तलक़ीन की है। उन्होंने कहा कि मुस्लमान जहां भी रहें, उन्हें अपना अमली नमूना पेश करते रहना चाहिए।
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सुबाई जमईयत अहल-ए-हदीस आंध्र प्रदेश के अमीर मौलाना फ़ज़ल अल रहमान उमरी ने कहा कि मौजूदा आलमी हालात के मुताबिक़ मर्कज़ी जमईयत अहल-ए-हदीस हिंद ने कान्फ्रेंस का जो मौज़ू तै किया है, वो काफ़ी अहम है। मुआशरा में इन्सान के जान व माल, इज़्ज़त व आबरु की हिफ़ाज़त की तलक़ीन हर मज़हब में की गई है, इन तालीमात को सभी लोगों को अपनाने की ज़रूरत है।
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मर्कज़ी जमईयत अहल-ए-हदीस हिंद के सरपरस्त मौलाना सलाह उद्दीन मक़बूल ने कहा कि इस्लाम ने एहतिराम इन्सानियत पर बहुत ज़ोर दिया है। इस्लाम में एहतिराम इन्सानियत की क़द्रो क़ीमत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुत्ते की भी तौहीन करने से रोका गया है। जब जानवर के साथ अच्छा बर्ताव की तलक़ीन की गई है तो इन्सान तो अशरफ उल मख़लूकात है, वो तो एहतिराम का मज़ीद मुस्तहिक़ है।
डाक्टर अबदुर्रहमान फ़रीवाई सरपरस्त मर्कज़ी जमईयत अहल-ए-हदीस हिंद ने कहा कि इस्लाम ने तकरीम इन्सानियत की तालीम दी है। उन्होंने करानी आयात का हवाला देते हुए कहा कि इस्लाम के मुतबईन ने एहतिराम इन्सानियत की उम्दा मिसाल पेश की है। इस्लाम की इन ख़बियों को उजागर और ज़्यादा से ज़्यादा आम किया जाए।
सुबाई जमईयत अहल-ए-हदीस मशरिक़ी यूपी के अमीर मौलाना अतीक़ अल रहमान ने मर्कज़ी जमईयत अहल-ए-हदीस हिंद के ज़िम्मादारान ख़ास तौर से अमीर जमात मौलाना असग़र अली इमाम मह्दी सलफ़ी को मुबारकबाद देते हुए कहा कि पूरे मुल्क की जमईयतों ने इस कान्फ्रेंस में हिस्सा लिया है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से हमारे इस्लाफ़ ने ईसार से काम लिया है, उसी तरह हमें भी ईसार का मुज़ाहरा करने की ज़रूरत है। सूरा हजरात की एक आयत का हवाला पेश करते हुए कहा कि अगर हम इस आयत पर अमल पैरा हो जाएं, तो एक-दूसरे के बीच दूरी नहीं होगी।