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घर के बड़ों के साथ रोजा रख इबादत में मशगूल छोटे बच्चे

रमजान में जारी है रोजा रखने का सिलसिला 

✅ नई तहरीक : भिलाई

रमज़ान मुबारक के तीन अशरे (दस दिन) होते हैं, जिसमें पूरा रमजान 30 दिन का मुकम्मल होता है। होली के बाद स्कूली स्तर पर ज्यादातर स्कूलों के सालाना इम्तेहान हो चुके हैं। ऐसे में माहे रमजान के दौरान नन्हें बच्चे भी इबादत की राह पर हैं।  




मरकजी मस्जिद पावर हाउस, कैंप 2 के मौलाना हाफिज इनामुल हक बताते हैं, अल्लाह के आखिरी नबी हजरत मोहम्मद 000 ने इंसानों को अल्लाह के अहकाम पहुंचा कर उन्हें पूरा करने का तरीका भी बताया दिया है। रमजान में पहला अशरा रहमत का होता है, दूसरा मगफिरत ओर तीसरा जहन्नुम से आजादी का होता है।



    इस्लाम में हर इबादत बालिगों पर फ़र्ज़ होती है। 10 साज की उम्र में माहे रमजान मुबारक में छोटे छोटे बच्चे भी रोजा रखते हैं। इन बच्चों पर अभी रोज़ा फ़र्ज़ नहीं है फिर भी घर के बड़ों को देखकर इनके अंदर अल्लाह के इस हुक्म को पूरा करने का जज्बा देखने को मिल रहा है। कोई 5 साल, कोई 6 साल और 7 साल की उम्र में है लेकिन उनके अंदर भी रोज़ा रखने का शौक पैदा हुआ है। मौलाना इनामुल हक कहते हैं कि रोज़ा अल्लाह की बेहतरीन इबादत है, जो बुराइयों से रोकतीं है। ऐसी असरदार इबादत कि इसके शुरू करने से शरीर और मन अल्लाह की मोहब्बत में आ आता है। रोजा रखते ही रोजदार अपने ख्द को झूठ बोलने, दगा देने, फरेब करने और हर किस्म की बुराई से रोक लेता है। मौलाना इनामुल हक कहते हैं, इसलिए इंसान में नेकी और अच्छाई की पैदाइश करने बच्चों को बचपन से रोज़ा रखने की आदत डालें जिससे वे सच्चे ओर ईमानदार और इंसानियत के हमदर्द बने। 
    खुर्सीपार की रहने वाली मायरा जैनब कहकशां ने छह साल की उम्र में पहली बार रोजा रखा है। इसी तरह कैम्प-1 की मायरा निजामुद्दीन ने भी पहली बार रोजा रखा है। खुर्सीपार जोन-2 निवासी मोहम्मद आबिद के 5 साल के बेटे मोहम्मद एहतेशाम ने भी इस साल पहली बार रोजा रखा है। शहर की मस्जिदों में भी कई छोटे बच्चे अपने बड़ों के साथ इफ्तार के वक्त पहुंचते हैं। इन बच्चों में रोजा रखने का जज्बा देखकर हर कोई तारीफ कर रहा है।

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