नए हिज्री साल के आग़ाज़ के साथ ही गिलाफ़-ए-काअबा तबदील

नए हिज्री साल के आग़ाज़ के साथ ही गिलाफ़-ए-काअबा तबदील
 मोहर्रम-उल-हराम - 1446 हिजरी

  हदीस-ए-नबवी ﷺ  

जिसने अस्तग़फ़ार को अपने ऊपर लाज़िम कर लिया अल्लाह ताअला उसकी हर परेशानी दूर फरमाएगा और हर तंगी से उसे राहत अता फरमाएगा और ऐसी जगह से रिज़्क़ अता फरमाएगा जहाँ से उसे गुमान भी ना होगा।

- इब्ने माजाह

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नए हिज्री साल के आग़ाज़ के साथ ही गिलाफ़-ए-काअबा तबदील

✅ रियाद : आईएनएस, इंडिया 

हरमैन शरीफ़ैन के उमूर की जनरल अथार्टी की जानिब से नए साल के आग़ाज़ के साथ ही गिलाफ़-ए-काअबा तबदील कर दिया। गिलाफ़-ए-काअबा की तबदीली का अमल रातभर जारी रहा। 

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    किसवा फैक्ट्री से नया गिलाफ़-ए-काअबा 13 किलोमीटर लंबे ट्रेलर के ज़रीये मस्जिद उल हराम, मक्का मुकर्रमा मुंतक़िल किया गया। याद रहे कि गिलाफ़-ए-काअबा की तबदीली की सालाना तक़रीब नए इस्लामी साल के पहले दिन की जाती है। इससे कब्ल कई दहाईयों से गिलाफ़-ए-काअबा (किसवा) हर साल हज के दौरान 9 जिल हज्ज की सुबह हुज्जाज के मैदान अरफात रवाना होने के बाद तबदील किया जाता था। 

नए हिज्री साल के आग़ाज़ के साथ ही गिलाफ़-ए-काअबा तबदील
file photo

    अख़बार 24 के मुताबिक़ ख़ाना-ए-काअबा के पुराने गिलाफ को उतार कर नया गिलाफ चढ़ाया गया। इसके लिए 159 अफ़राद पर मुश्तमिल तकनीकी माहिरीन और कारीगर मौजूद थे। नया गिलाफ़-ए-काअबा चार बराबर पटिटयों और सितार उल बाब पर मुश्तमिल है। गिलाफ-ए-काअबा तबदीली के तमाम अमल के दौरान हर एक हिस्से को अलैहदा अलैहदा काअबा के बालाई हिस्से पर लाया जाता है, जहां से फिर उन्हें उतारा जाता है। इस तरह पिछ्ला गिलाफ उतार लिया जाता है। ये अमल चार मर्तबा बारी-बारी से दुहराया जाता है जब तक कि नया गिलाफ़ चढ़ा ना दिया जाए और पुराना उतर ना जाए। 
    गिलाफ-ए-काअबा के कपड़े की पाँच मुख़्तलिफ़ हिस्सों में सिलाई के बाद उसके जरीं हिस्से को सोने का पानी चढ़े ताँबे के 60 कड़ों के ज़रीये जोड़ा जाता है। गिलाफ-ए-काअबा का वज़न 1350 किलो ग्राम है। ये 98 सेंटीमीटर चौड़ा और 14 मीटर ऊंचा है। शाह अबदुल अज़ीज़ काम्प्लेक्स में गिलाफ-ए-काअबा की तैयारी के लिए लगभग 670 किलोग्राम रेशम को स्याह-रंग में रंगा जाता है फिर इसे कुरआनी आयात से सजाया जाता है जो सोने और चांदी के धागों से बने होते हैं। इसमें 120 किलोग्राम सोना और 100 किलोग्राम चांदी इस्तिमाल होती है।

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    किंग अबदुल अज़ीज़ किसवा काम्प्लेक्स में गिलाफ-ए-काअबा के गिलाफ़ की तैयारी में 200 से ज़्यादा अफ़राद काम करते हैं। यहां दुनिया की सबसे बड़ी सिलाई मशीन जो 16 मीटर तवील है और ये कम्पयूटर सिस्टम पर चलती है, इस्तिमाल होती है जिसके ज़रीये गिलाफ-ए-काअबा के दीगर काम अंजाम पाते हैं। गिलाफ-ए-काअबा की तैयारी के लिए एक हज़ार किलोग्राम ख़ाम रेशम इस्तिमाल होता है। कपड़े की तैयारी के हवाले से काम्प्लेक्स में जदीद तरीन जैकवार्ड मशीनें हैं। यहां दीगर मशीनें कुरआनी आयात की कढ़ाई, आयात और दुआओं के लिए काला रेशम तैयार करती हैं जबकि सादा रेशम भी तैयार होता है, जिन पर आयात प्रिंट की जाती हैं और सोने और चांदी के धागों से कशीदाकारी भी की जाती है। गिलाफ-ए-काअबा लिए 120 किलो ग्राम सोने और 100 किलोग्राम चांदी का धागा इस्तिमाल होता है। गिलाफ की तैयारी के हर अमल में इस्तिमाल होने वाले मवाद की जांच भरपूर तरीक़े से होती है। इसके लिए काम्प्लेक्स में एक खुसूसी लेबारेटरी भी है।

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