मोहर्रम-उल-हराम - 1446 हिजरी
हदीस-ए-नबवी ﷺ
बाप की खुशनूदी में अल्लाह की रजा और बाप की नाराजगी में अल्लाह का गजब है।
- मिश्कवात
✅ ग़ज़ा : आईएनएस, इंडिया
गर्मी की शिद्दत ग़ज़ा के हालात को ख़राब तर कर रही है जहां 2.3 मिलियन बाशिंदों में से तक़रीबन तमाम इसराईल की फ़ौजी मुहिम की वजह से बे-घर हैं और जहां बिजली तक़रीबन ना होने के बराबर है और साफ़ पानी तो बहुत ही कम है।
ख़ेमों में रहने वाले, अक़्वाम-ए-मुत्तहदा के स्कूलों में पुर हजूम पनाहगाहों में या निजी घरों में फंसे हुए ख़ानदानों और लोगों को ग़िज़ाई क़िल्लत और बढ़ती बीमारीयों के साथ मौसम-ए-गर्मा के बढ़ते दर्जा हरारत का सामना करना पड़ रहा है जहां वो किसी एसी, पंखे, ग़ुसल करने या सेहत के फ़आल निज़ाम के बग़ैर रहने पर मजबूर हैं। जुनूबी ग़ज़ा की पट्टी के ख़ान यूनुस में स्कूल के एक कमरा जमात को मुख़्तलिफ़ ख़ानदान मिलकर पनाह-गाह के तौर पर इस्तिमाल कर रहे हैं। वहां एक 38 साला माँ अमल नासिर को ये फ़िक्र लाहक़ है कि बढ़ती गर्मी और नमी और मच्छरों और दीगर हशरात की तादाद में इज़ाफे़ से उनकी सेहत को नुक़्सान पहुँचेगा। उनका बेटा सो नहीं सकता और उसे ठंडक पहुंचाने के लिए उनके पास गत्ते से बने दस्ती पंखे के अलावा कुछ नहीं है। लड़ाई से पहले ये ख़ानदान शुमाली ग़ज़ा की पट्टी के हानून में रह रहा था जहां से वो तनाज़े की इबतिदा में ही भाग आए थे। उन्होंने कहा कि मेरे बेटे का जिस्म बहुत गर्म है। पहले मैं उसे नहला देती थी लेकिन अब पानी की किल्लत की वजह से ऐसा नहीं कर पा रही हूं। में अपने शौहर की सेहत के बारे में भी बहुत परेशान हूँ। उनका वज़न आधा रह गया है। हालिया बरसों में मौसम-ए-गर्मा अपने साथ बहीरा रुम में गर्मी की मोहलिक (जानलेवा) लहरों का एक सिलसिला साथ लाता है। ग़ज़ा की बिजली ज़्यादा-तर इसराईल से फ़राहम की जाती थी लेकिन जंग शुरू होते ही इलाक़े की बिजली मुनक़ते कर दी गई और साथ ही वाहिद बिजली घर के लिए ईंधन भी नहीं है।
प्राईवेट जनरेटर्ज़ की फ़राहमी के लिए डीज़ल भी ख़त्म हो गया। अमल नासिर ने कहा कि हशरात और मच्छर रात भर हमें काटते रहते हैं। मैं सोती नहीं हूँ ताकि अपने बच्चे पर क्रीम या किसी किस्म का मरहम लगा सकूं ताकि उसे मच्छर ना काटे। वो सारी रात ख़ारिश करते रहते हैं।
उधर फ़लस्तीन के इलाक़े ग़ज़ा में बरसर-ए-पैकर दो मुसल्लह मुज़ाहमती तन्ज़ीमों हम्मास और इस्लामी जिहाद ने अपने बयानात में इस बात का इशारा किया है कि उनके जंगजू शुजा आया के इलाक़े में इसराईली फ़ौज पर कारी ज़र्ब लगा रहे हैं। इलाक़े से मुसलसल धमाकों की आवाज़ें आ रही हैं जिसके बाद सड़कों पर इन्सानी लाशे बिखरी दिखाई दे रही है।
नोबेल ईनामयाफ़्ता मलाला का एक-बार फिर जंग बंदी का मुतालिबा
न्यूयार्क : नोबेल ईनामयाफ़्ता मलाला यूसुफ़ ज़ई ने एक बार फिर ग़ज़ा में जंग बंदी का मुतालिबा किया है। मलाला ने इससे पहले गुजिशता बरस अक्तूबर में भी जंग बंदी का मुतालिबा किया था। उन्होंने मलाला फ़ंड के तहत फ़लस्तीनी बच्चों के रीलीफ़ फ़ंड की हिमायत करते हुए कहा कि इस वक़्त ग़ज़ा में छः लाख से ज़्यादा बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं।
मलाला का कहना था कि ग़ज़ा में बच्चे ख़ौफ़नाक हालात का सामना कर रहे हैं, मुसलसल बमबारी के डर में रहना बच्चों की जिस्मानी और ज़हनी तंदरुस्ती पर तबाहकुन असर डालता है, हमें तशद्दुद ख़त्म करने के लिए फ़ौरी और देरपा जंग बंदी का मुतालिबा जारी रखना चाहिए। ख़्याल रहे कि इससे क़बल मलाला यूसुफ़ ज़ई ने फ़लस्तीनी तलबा के लिए ऑक्सफ़ोर्ड यूनीवर्सिटी में स्कॉलरशिप का ऐलान किया था। वाजेह रहे कि ग़ज़ा में 7 अक्तूबर से जारी इसराईली जंग के नतीजे में अब तक 37 हज़ार से ज़ाइद फ़लस्तीनी हलाक हो चुके हैं जिनमें अक्सरीयत ख़वातीन और बच्चों की है जबकि 86 हज़ार से ज़ाइद ज़ख़मी और लाखों बे-घर हो चुके हैं।
ख़ेमों में रहने वाले, अक़्वाम-ए-मुत्तहदा के स्कूलों में पुर हजूम पनाहगाहों में या निजी घरों में फंसे हुए ख़ानदानों और लोगों को ग़िज़ाई क़िल्लत और बढ़ती बीमारीयों के साथ मौसम-ए-गर्मा के बढ़ते दर्जा हरारत का सामना करना पड़ रहा है जहां वो किसी एसी, पंखे, ग़ुसल करने या सेहत के फ़आल निज़ाम के बग़ैर रहने पर मजबूर हैं। जुनूबी ग़ज़ा की पट्टी के ख़ान यूनुस में स्कूल के एक कमरा जमात को मुख़्तलिफ़ ख़ानदान मिलकर पनाह-गाह के तौर पर इस्तिमाल कर रहे हैं। वहां एक 38 साला माँ अमल नासिर को ये फ़िक्र लाहक़ है कि बढ़ती गर्मी और नमी और मच्छरों और दीगर हशरात की तादाद में इज़ाफे़ से उनकी सेहत को नुक़्सान पहुँचेगा। उनका बेटा सो नहीं सकता और उसे ठंडक पहुंचाने के लिए उनके पास गत्ते से बने दस्ती पंखे के अलावा कुछ नहीं है। लड़ाई से पहले ये ख़ानदान शुमाली ग़ज़ा की पट्टी के हानून में रह रहा था जहां से वो तनाज़े की इबतिदा में ही भाग आए थे। उन्होंने कहा कि मेरे बेटे का जिस्म बहुत गर्म है। पहले मैं उसे नहला देती थी लेकिन अब पानी की किल्लत की वजह से ऐसा नहीं कर पा रही हूं। में अपने शौहर की सेहत के बारे में भी बहुत परेशान हूँ। उनका वज़न आधा रह गया है। हालिया बरसों में मौसम-ए-गर्मा अपने साथ बहीरा रुम में गर्मी की मोहलिक (जानलेवा) लहरों का एक सिलसिला साथ लाता है। ग़ज़ा की बिजली ज़्यादा-तर इसराईल से फ़राहम की जाती थी लेकिन जंग शुरू होते ही इलाक़े की बिजली मुनक़ते कर दी गई और साथ ही वाहिद बिजली घर के लिए ईंधन भी नहीं है।
प्राईवेट जनरेटर्ज़ की फ़राहमी के लिए डीज़ल भी ख़त्म हो गया। अमल नासिर ने कहा कि हशरात और मच्छर रात भर हमें काटते रहते हैं। मैं सोती नहीं हूँ ताकि अपने बच्चे पर क्रीम या किसी किस्म का मरहम लगा सकूं ताकि उसे मच्छर ना काटे। वो सारी रात ख़ारिश करते रहते हैं।
उधर फ़लस्तीन के इलाक़े ग़ज़ा में बरसर-ए-पैकर दो मुसल्लह मुज़ाहमती तन्ज़ीमों हम्मास और इस्लामी जिहाद ने अपने बयानात में इस बात का इशारा किया है कि उनके जंगजू शुजा आया के इलाक़े में इसराईली फ़ौज पर कारी ज़र्ब लगा रहे हैं। इलाक़े से मुसलसल धमाकों की आवाज़ें आ रही हैं जिसके बाद सड़कों पर इन्सानी लाशे बिखरी दिखाई दे रही है।
नोबेल ईनामयाफ़्ता मलाला का एक-बार फिर जंग बंदी का मुतालिबा
न्यूयार्क : नोबेल ईनामयाफ़्ता मलाला यूसुफ़ ज़ई ने एक बार फिर ग़ज़ा में जंग बंदी का मुतालिबा किया है। मलाला ने इससे पहले गुजिशता बरस अक्तूबर में भी जंग बंदी का मुतालिबा किया था। उन्होंने मलाला फ़ंड के तहत फ़लस्तीनी बच्चों के रीलीफ़ फ़ंड की हिमायत करते हुए कहा कि इस वक़्त ग़ज़ा में छः लाख से ज़्यादा बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं।
मलाला का कहना था कि ग़ज़ा में बच्चे ख़ौफ़नाक हालात का सामना कर रहे हैं, मुसलसल बमबारी के डर में रहना बच्चों की जिस्मानी और ज़हनी तंदरुस्ती पर तबाहकुन असर डालता है, हमें तशद्दुद ख़त्म करने के लिए फ़ौरी और देरपा जंग बंदी का मुतालिबा जारी रखना चाहिए। ख़्याल रहे कि इससे क़बल मलाला यूसुफ़ ज़ई ने फ़लस्तीनी तलबा के लिए ऑक्सफ़ोर्ड यूनीवर्सिटी में स्कॉलरशिप का ऐलान किया था। वाजेह रहे कि ग़ज़ा में 7 अक्तूबर से जारी इसराईली जंग के नतीजे में अब तक 37 हज़ार से ज़ाइद फ़लस्तीनी हलाक हो चुके हैं जिनमें अक्सरीयत ख़वातीन और बच्चों की है जबकि 86 हज़ार से ज़ाइद ज़ख़मी और लाखों बे-घर हो चुके हैं।