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मुस्लमानों को हिक्मत-ए-अमली के साथ काम करने की ज़रूरत चाहिए : अबु आसिम आज़मी

शअबान उल मोअज्जम -1445 हिजरी

अकवाल-ए-जरीं

'' हजरत अब्दुलाह बिन उमर रदिअल्लाहो ताअला अन्हुमा से रिवायत है कि मैंने रसूल अल्लाह (सल्लललाहो अलैहे वसल्लम) 
से सुना, आप (सल्लललाहो अलैहे वसल्लम) फरमाते हैं कि जब तुम्हारा कोई आदमी इंतेकाल कर जाए तो उसे ज्यादा देर तक घर पर मत रखो और उसे कब्र तक पहुंचाने और दफनाने में जल्दी करो ''
- बैहकी शुअबुल ईमान
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मुसलमान नहीं लेकिन मुसलमानों का वोट जरूर चाहिए
सियासी शऊर और बसीरत नहीं होगी तो आइन्दा रोका जा सकता है नमाज़ पढ़ने से भी 
नफ़रती मुहिम में अब औरंगज़ेब का नाम लेने पर भी जेल भेज दिए जाने का खौफ
दस्तूर के तहफ़्फ़ुज़ के लिए तालीम का दामन थामने पर ज़ोर 

✅ मुंबई : आईएनएस, इंडिया

मुल्क के हालात इंतिहाई ख़राब हैं, ऐसे में मुसलमानों को अपने दस्तावेज़ात और सरकारी दस्तावेज़ात दुरुस्त कर लेना चाहिए। इसके अलावा अपना नाम वोटर लिस्ट में इंदराज करवा लेना चाहिए। ऐसे भी होता है कि वोटर लिस्ट से नाम गायब हो जाता है। इस किस्म का इज़हार सेकूलर समाज के सालाना यौम तासीस पर रुक्न असेंबली और एसपी रहनुमा अबु आसिम आज़मी ने किया। 
    उन्होंने कहा कि मुल्क में अब कोई पार्टी ऐसी नहीं है, जो मुस्लमानों को साथ लेने को तैयार हो। पार्टी के स्टेज पर मुस्लमानों को बुलाना भी उन्हें गवारा नहीं है। हालांकि सभी पार्टी को मुस्लमानों के वोट ज़रूर चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह से माहौल तैयार किया गया है, इससे अच्छे और सेकूलर हिंदू भी मुस्लमान से दूर हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि नफ़रत के सबब मुल्क में मुस्लमानों और अक़ल्लीयतों के लिए अरसा हयात तंग है। उन्होंने आगे कहा कि हालात को देखते हुए मुस्लमानों को हिक्मत-ए-अमली के साथ काम करने की ज़रूरत है। दस्तूर की बका के लिए और जमहूरी इक़दार के लिए हर मुस्लमान को वोट देना लाज़िमी है और ऐसे उम्मीदवार को वोट देना ज़रूरी है जो सेकूलर हो और ज़ात-पात के नाम पर फ़साद बरपा नहीं करता हो। एक अच्छे मुआशरे और जमहूरी इक़दार के लिए हमें जमहूरीयत के क़ियाम के लिए आगे आना चाहीए। 
    उन्होंने कहा कि आज हिंदू और मुस्लमानों के नाम पर नफ़रत पैदा कर वोट लेने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि मुस्लमानों की तरक़्क़ी उस वक़्त ही मुम्किन है, जब वो तालीम के ज़ेवर से आरास्ता हो, नस्ल-ए-नौ को तालीम से आरास्ता करना हमारी ज़िम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि ये मुल़्क सोने की चिड़िया कहा जाता था। इस मुल्क पर 52 साल तक औरंगज़ेब ने हुक्मरानी की और अदल-ओ-इन्साफ़ किया लेकिन नफ़रती मुहिम में अब औरंगज़ेब का नाम लेने पर भी जेल में जाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि दस्तूर के तहफ़्फ़ुज़ के लिए हमें तालीम का दामन थामने पर ज़ोर देना चाहिए। जब हम आला तालीम याफ़ता रहेंगे तो इस मुल्क-ओ-क़ौम का नाम रोशन करेंगे। उन्हों ने कहा कि अगर मुस्लमान पंजवक्ता नमाज़ी और तहज्जुद गुज़ार होगा लेकिन उसमें सियासी शऊर और सियासी बसीरत नहीं होगी तो उसे आइन्दा नमाज़ पढ़ने से भी रोका जा सकता है। इसलिए मुस्लमानों में सियासी शऊर इंतिहाई ज़रूरी है। दीन के साथ सियासी शऊर भी मुसलमानों के लिए लाज़िमी है और यही वक़्त का तक़ाज़ा है।

मुसलमानों को नजरअंदाज़ करने का इल्ज़ाम, समाजवादी पार्टी से सलीम शेरवानी ने दिया इस्तीफा
मुसलमानों को नजरअंदाज़ करने का इल्ज़ाम, समाजवादी पार्टी से सलीम शेरवानी ने दिया इस्तीफा
सलीम शेरवानी

नई दिल्ली : राज्य सभा इंतिख़ाबात के लिए अपने उम्मीदवारों के ऐलान के बाद एसपी की मुश्किलात कम नहीं हो रही हैं। इतवार को पार्टी के एक और क़ौमी जनरल सेक्रेटरी सलीम शेरवानी ने अपने ओहदे से इस्तीफ़ा दे दिया। बताया जा रहा है कि वो राज्य सभा का टिकट ना मिलने पर नाराज़ थे। 
    इस्तीफे के सिलसिले में अखिलेश यादव को लिखे ख़त में उन्होंने मुस्लमानों को नज़रअंदाज करने का इल्ज़ाम लगाया और कहा कि एसपी मुसलमानों का एतिमाद खो रही है। उन्होंने कहा कि पार्टी में मुस्लमानों को नज़रअंदाज किए जाने से नाराज़ होकर वो जनरल सेक्रेटरी के ओहदे से इस्तीफ़ा दे रहे हैं। उन्होंने मुस्तक़बिल के हवाले से जल्द फ़ैसला करने की बात भी कही है। उन्होंने कहा कि मुस्लमान मुसलसल नज़रअंदाज किए जा रहे हैं। राज्य सभा के इंतिख़ाबात में भी किसी मुस्लमान को नहीं भेजा गया। उन्होंने कहा कि बे-शक मेरे नाम पर ग़ौर नहीं किया गया लेकिन किसी मुस्लमान को भी ये सीट मिलनी चाहिए थी। मुस्लमान एक हक़ीक़ी लीडर की तलाश में हैं। मुझे लगता है कि एसपी में रहते हुए में मुस्लमानों की हालत में ज़्यादा तबदीली नहीं ला सकता।
 


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