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दरख़्त लगाना सदका-ए जारिया (रूहानी इलाज)


नई तहरीक : रायपुर 

दरख्त लगाना एक ऐसा अमल है जिसका सवाब मौत बाद भी जारी रहता है। दरख़्त के फलों से मख़्लूक (इंसान, जानवर व परिन्दों) को रिज्क मिलता है तो दरख़्त लगने वाले को सदके का सवाब मिलता है। दरख्तों में जानवर व परिन्दे बसेरा करते हैं, इंसान इसकी छांव में आराम करता है, इसकी सूखी लकड़ियां जला कर गरीब आदमी खाना पकाता है, सर्दी में हाथ तापता है तो दरख़्त लगने वाले को सवाब मिलता है। दरख़्तों की टहनियां, फूल पत्तियां कब्रों पे गिरती हैं (जबतक वे सूख न जाएं) कब्र वालों के अजाब में तखफीफ (कमी) होती है। इसलिए सभी को चाहिए कि अपने घर के पास, दूर, खाली जमीन पर और कब्रिस्तान में खूब दरख़्त लगाएं।

जहरीले कीड़ों से हिफाजत

रात को सोते वक़्त कोई जहरीला जानवर व कीड़ा काटने पर उसके जहर के असर से बदन में तेज दर्द, जलन, सूजन, खुजली व चर्म रोग हो जाता है और मौत तक हो सकती है। जो शख़्स शाम (या रात) के वक्त ‘अऊजु बि कलिमातिल्लाहित्ताम्माति मिनशर्रि मा खलक’ तीन बार पढ़ लिया करे, तो कोई जहरीला जानवर व कीड़ा काटने पर इन शा अल्लाह जहर असर न करेगा।

कब्रों पर आग जलाना गलत 

कब्रों पर आग (चिराग या मोमबत्ती) जलाना जायज नहीं। चुनांचे सहाबी ए रसूल हजरत अम्र बिन आ़स (रजियल्लाहु अन्हु) से मरवी है, उन्होंने दमे मर्ग (यानी अपनी वफात के वक़्त) अपने फरजन्द (यानी बेटे) से फरमाया : जब मैं मर जाऊं तो मेरे साथ न कोई नौहा करने वाली जाए, न आग जाए। (सहीह मुस्लिम)
- पेशकश : मोहम्मद शमीम, रायपुर 


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