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मुआवजा

 - सईद खान 


किसानों का आक्रोश चरम पर था। गांव के नुक्कड़ पर किसानों का मजमा लगा था और कई ने अपने हाथों में घासलेट से भरा डिब्बा ले रखा था। सड़क पर दोनों ओर जाम की स्थिति निर्मित हो गई थी। पुलिस बल के साथ शासन के सभी आला अधिकारी कलेक्टर, कमिश्नर, पटवारी, डीएम और आरआई वगैरह वहां मौजूद थे। लेकिन किसान किसी की नही सुन रहे थे। उनका कहना था, मंत्री जी आएं और वे ही उनके मामले का फैसला करें। किसानों ने कह रखा था कि यदि आधे घंटे में मंत्री जी यहां नहीं आए तो वे आत्मदाह कर लेंगे। 

मंत्री जी को जब बताया गया तो वे बड़बड़ाए-‘क्या मुसीबत है यार।’

‘सर, वो आपसे बात करने की जिद कर रहे हैं।’ पीए बोला।

‘कलेक्टर से कहो, वे उनसे चर्चा कर लें।’ 

‘सर, कलेक्टर, कमिश्नर सभी वहां मौजूद हैं।  लेकिन किसान किसी की नहीं सुन रहे हैं।’

‘आखिर वो चाहते क्या हैं।’

‘सर, वो मुआवजा चाहते हैं।’

‘मुआवजा...किस बात का।’

‘इस बार बारिश नहीं हुई, इस बात का।’ 

‘पिछली बार ज्यादा बारिश हो गई थी, तब भी उन्हें मुआवजा चाहिए था।’ 

‘यस सर।’

‘इस बार बारिश नहीं हुई तो भी उन्हें मुआवजा चाहिए।’

‘यस सर।’

‘तो दे दो मुआवजा।’

‘सर, मुआवजा देने के लिए सर्वे कराना पड़ेगा।’

‘तो करवा लो सर्वे। क्या परेशानी है।’ 

‘सर्वे हो गया है सर, लेकिन उससे वो संतुष्ट नहीं है। कहते हैं, आरआई ने भेदभाव किया है। इसलिए वे दोबारा सर्वे कराने की बात कह रहे हैं।’ 

‘क्या मुसीबत है यार।’  मंत्री जी आदतन बोले और कार में जा बैठे। थोड़ी देर बाद वे किसानों के पास जा पहुंचे। उन्होंने किसानों का अभिवादन किया। जैसा अक्सर वे वोट मांगने के दौरान करते हंै। बोले-‘सब कुशल मंगल तो है।’

‘कुछ भी कुशल मंगल नहीं है मंत्री जी।’ सरपंच ने कहा- ‘हमारी फसल सूख गई है। हम बर्बाद हो गए हैं। हमारे सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है। कर्ज के बोझ तले दब गए हैं हम। हमारे सामने आत्मदाह के अलावा और काई रास्ता नहीं है।’ 

‘अरे। नहीं...नहीं... मरने की बात तो कायर करते हैं। तुम तो अन्नदाता हो। तुम मरने की बात करोगे तो जनता का क्या होगा। हमें बताओ क्या परेशानी है।’ 

किसानों की परेशानी सुनकर कुछ देर वे चिंता में डूबे रहे। फिर बोले-‘ऐसा क्यों होता है कि बारिश कभी कम कभी ज्यादा हो जाती है। क्या ऐसा कोई सिस्टम नहीं है कि बारिश हर साल एक समान हो। जितनी हमें चाहिए, उतनी ही, न ज्यादा न कम।’

उन्होंने सवालिया नजरों से कलेक्टर की ओर देखा।

कलेक्टर बोले-‘ऐसा तो कोई सिस्टम नहीं है सर।’

‘होगा। कोइ तो सिस्टम होगा।’ किसानों की भीड़ के साथ खेतों की मेढ़ पर चलते हुए वे कहे जा रहे थे-‘हम चांद पर पहुंच गए हैं, तो ऐसा कोई सिस्टम भी बना सकते हैं जिससे बारिश हमारी मर्जी से हो। पता करो।’

‘यस सर।’ कलेक्टर के मुंह से यंत्रचलित सा निकला।

खेतों की मेढ़ पर चलते हुए बीच-बीच में वे किसी खेत में घुस जाते। सूखी फसल हाथ में लेकर उसे उलट-पुलट कर देखते, सूंघते और उसे वापस वहीं छोड़कर आगे बढ़ जाते। 

उनके पीछे चल रही किसानों की भीड़ में से एक युवा किसान ने कहा-‘ये क्या हो रहा है दद्दा। मुआवजे पर तो कोई बात ही नहीं हो रही...।’

‘मुझे लगता है, मंत्री जी हमारी फसल का सर्वे खुद ही कर रहे हंै।’ युवा किसान ने जिन्हें दद्दा कहा था, उन्होंने उससे कहा-‘लगता है, अब हमें न्याय मिलेगा।’

चलते-चलते एक खेत में रुककर किसानों से वे बोले-‘एक बात समझ में नहीं आती। बारिश कम हो या ज्यादा, नुकसान तुम गरीबों का ही क्यों होता है। बारिश कम हुई तो फसल सूख जाती है। ज्यादा हुई तो डूबकर सड़ जाती है। ज्यादा बारिश होने पर मकान भी तुम गरीबों का ही ढहता है।’ 

किसान एक-दूसरे का मुंह तकने लगे थे। इस ओर तो उनका ध्यान नहीं गया था। उन्हें लगा, वाकई बारिश कम हो या ज्यादा, नुकसान तो उनका ही होता है। अमीरों के न घर ढहते हैं न उनके खाद्यान्न का नुकसान होता है। वे सोचने लगे, इसका मतलब कि भगवान उनके साथ न्याय नहीं कर रहा। 

किसानों की मन:स्थिति भांपकर मंत्री जी ने अपनी बात जारी रखी। बोले- ‘बात को समझने की कोशिश करो। बारिश कम हो तो भी तुम्हारा नुकसान और ज्यादा हो तो भी तुम्हारा नुकसान। इसका समाधान मुआवजा नहीं है। जब तक बारिश एक समान न हो, तुम्हारी समस्या बनी रहेगी। इसलिए पहली जरूरत है, बारिश एक समान हो। जितनी हमें चाहिए उतनी ही। न कम न ज्यादा। इसके लिए हम देखते हैं कि क्या हो सकता है। अगर ऐसा कोई सिस्टम नहीं बन सका तो किसी दूसरे विकल्प पर विचार किया जाएगा।’ उन्होंने कलेक्टर को मुखातिब किया। बोले- ‘क्या हम खेतों को तिरपाल से कवर नहीं कर सकते।’ 

‘कर सकते हैं सर। जब हमें लगे कि खेतों को पर्याप्त पानी मिल गया है, हम खेतों को तिरपाल से कवर कर देंगे। ताकि जरूरत से ज्यादा पानी खेतों में न जाए। लेकिन सर...।’ 

‘लेकिन क्या।’ 

‘और अगर बारिश ही न हो तो।’

‘हर खेत के पास तालाब खुदवाए जाएं, जिसमें तिरपाल का पानी जमा हो। इस पानी को सूखे के दिनों में इस्तेमाल किया जाए।’

‘गुड आयडिया सर।’

‘सर्वे करवाओ।’ वे बोले। ‘कितने खेत हैं, कितनी तिरपाल लगेगी, कितने तालाब खुदवाने पड़ेंगे।’ 

‘यस सर।’

अचानक आरआई की ओर देखकर वे बोले-‘फसल का सर्वे आपने ही किया था।’

‘यस सर।’

‘रिपोर्ट कहां है।’ 

‘सर, वो मैंने पटवारी साहब को दे दिया है।’

पटवारी बोले -‘रिपोर्ट में कुछ बिंदुओं पर आरआई से आवश्यक जानकारी मांगी गई थी। इसलिए थोड़े विलंब से वो रिपोर्ट मैंने कलेक्टर साहब को सौंप दी है।’ 

कलेक्टर ने कहा -‘आवश्यक कार्यवाई की टीप के साथ रिपोर्ट मैंने फारवर्ड कर दी है।’ 

‘गुड।’ वे किसानों से मुखातिब हुए। बोले- ‘हम आपके लिए बेहतर करने की सोच रहे हैं। हमें देखना है कि हम आपके लिए और बेहतर क्या सकते हैं। आप अन्नदाता हैं। आत्मदाह का विचार त्यागें और अन्न उगाने के अपने कर्म में जुट जाएं। अपनी चिंता आप सरकार पर छोड़ दें। आपकी चिंता हमारी यानी सरकार की चिंता है। सरकार भगवान की तरह बारिश को कम या ज्यादा गिराकर आपका नुकसान नहीं होने देगी। बल्कि एक समान बारिश का विकल्प तलाश कर सरकार आपको हर साल भरपूर अन्न उगाने के अवसर उपलब्ध कराएगी। आप देखते जाएं और हमें देखने दें कि हम क्या कर सकते हैं। जयहिंद।’ कहकर वे कार में जा बैठें। 

‘दद्दा।’ मंत्री जी का काफिला जब आगे बढ़ गया तो युवा किसान बोला-‘वो मुआवजा ...।’

‘अबे चुप कर।’ जिन्हें उसने दद्दा कहा था, उन्होंने उसे डपटकर कहा-‘मंत्री जी हमारी परेशानी के स्थाई समाधान की बात कर रहे हैं और तुझे क्षणिक राहत की पड़ी है।’ 


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