छत्तीसगढ़ उर्दू तंज़ीम का दीवाली मिलन मुनाकिद
कुल सूबाई शेरी नशिस्त में शायरों ने पढ़े कलाम
गुजिश्ता दिनों वृंदावन मिटिंग हाल, सिविल लाइन में छत्तीसगढ़ उर्दू तंज़ीम के ज़ेरे एहतिमाम पूरन जासवाल, सबा ख़ान दुर्गवी व अरूणा चौहान के तआवुन से कुल सूबाई शेरी नशिस्त का इनइक़ाद किया गया।
मेहमाने खुसूसी जयंत थोरात, सीनियर कवि व साबिक डीआईजी, मेहमाने एजाजी धनवेंद्र जायसवाल, साबिक राज्य सूचना आयुक्त, रायपुर और प्रोफ़ेसर चितरंजन कर, सीनियर अदीब, रायपुर थे। प्रोग्राम की सदारत बस्तर बोलता है के मुसन्निफ, हर्बल वैज्ञानिक व मां दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप के बानी राजाराम त्रिपाठी ने व निजामत सबा ख़ान दुर्गवी ने की। इस मौके पर मेहमानों के दस्ते मुबारक से अरूणा चैहान के उपन्यास कविता की औरत का रस्मे इजरा अमल में आया। प्रोग्राम की निजामत करते हुए सबा ख़ान ने नावेल "कविता की औरत" का मुख्तसर ताअरुफ़ पेश किया।
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अरूणा चैहान के उपन्यास कविता की औरत का इजरा करते मेहमाने खुसूसी |
प्रोग्राम से खिताब करते हुए मेहमाने खुसूसी प्रोफेसर कर ने वक्त पर प्रोग्राम शुरू होने, खुशबू लगाकर मेहमानों का इस्तकबाल करने और प्रोग्राम की इब्तेदा खवातीन की जानिब से कौमी तराना पेश किए जाने की सताईश की। वहीं, मेहमाने एजाजी धनवेंद्र जायसवाल ने कहा कि प्रोग्रम के बहाने क़ौमी यकजहती का बेहतरीन नमूना देखने को मिला। जबकि जयंत थोरात ने गौहर जमाली के उर्दू और हिंदी शायरी की खिदमात को सराहा। प्रोग्राम की सदारत कर रहे राजाराम त्रिपाठी ने अपना इजहारे ख्याल कुछ इस तरह बयां किया-
अपना दिल, अपनी भावनाओं को फ़र्श ए अदब पर
लफ़्ज़ों की चांदनी फैला कर मुझे आत्म विभोर कर दिए।
उन्होंने कहा, आज सियासत इंसान और इंसान के बीच नफ़रत की दीवारें खड़ी कर रही है, जबकि भाषा, संस्कृति और उत्सव हमें जोड़ने के लिए हैं। हिंदी से उर्दू को अलग करना ऐसे ही है, जैसे फूल से खुशबू छीन लेना। उन्होंने कहा कि उर्दू तंजीम हिंदी-उर्दू के बीच एक पुल की तरह समाज की अमूल्य धरोहर है। इस मौके पर उन्होंने छत्तीसगढ़ उर्दू तंज़ीम की हिफ़ाज़त के लिए हर मुमकिन कोशिश करने का भरोसा दिलाया। उन्होंने यहां तक कहा कि जरूरत पड़ने पर उर्दू तंजीम की हिफाजत के लिए अगर उन्हें अपनी कुछ ज़मीन बेचनी पड़ी तो भी वे पीछे नहीं हटेंगे।
उन्होंने असरी अदब से किसान के गायब हो जाने को लम्हा-ए-फिक्र बताते हुए किसानों को भारत की रूह बताया। उन्होंने कहा कि आज जब किसान को अन्नदाता की बजाय अनपढ़ समझा जा रहा है, तब समाज और अदब दोनों को खुद शनासी की जरूरत है।
अपने कलाम से शायरों, कवियों ने बटोरी वाहवाही
देखिए किसको सज़ा देते हैं देने वाले
उनका दामन भी फटा है मेरे दामन की तरह।
- हबीब खान 'समर'
मन के दर्पण से हम संवर जाते हैं
याद में तेरी हम तो महक जाते हैं।
- मयूराक्षी मिश्रा
जो जनहित में सृजन हो बस वही पुरनूर होता है,
सृजक का लेख हो या गीत, वही मशहूर होता है।
- रामेश्वर शर्मा, रायपुर
जिस्म तो है खाक का इसको सुपुर्दे-खाक कर,
हो सके तो काम अच्छा करके रूह को पाक कर।
- मोहम्मद हुसैन मजाहिर
जो सदाकत के उसूलों से भटक जाएंगे
वो मेरे साथ ना चल पाएंगे, थक जाएंगे।
इस जमाने की कयादत भी है मेरे ज़िम्मे
मैं जो बहका तो कई लोग बहक जाएंगे।
- इरफानुद्दीन इरफान
अदाकारी बड़ा दुख दे रही अब,
अदाकारी ये सारी भूल जाना चाहता हूं।
कभी मुझसे भी कोई झूठ बोलो,
मैं हां मैं हां मिलाना चाहता हूं।
- वीरेंद्र शर्मा अनुज
खयाल जिसका सदा आशिकाना रहता है,
मिजाज उसका फ़क़त शायराना रहता है।
जो इल्म से है मुअय्यन जमाने में "आलिम"
तसव्वुर उसका हर एक आलिमाना रहता है।
- आलिम नकवी
घर के लोगों से जिसे प्यार नहीं हो सकता,
वह कहीं और वफ़ादार नहीं हो सकता।
लूट, चोरी ना डकैती की ख़बर है, इसमें,
यह मेरे शहर का अख़बार नहीं हो सकता।
- आरडी अहिरवार
जल रहा है सभी का नशेमन, शख़्स कोई सलामत नहीं है,
उस पे महंगाई का दौर देखो, क्या यह जनता की आफ़त नहीं है।
- रामचंद्र श्रीवास्तव
खामोश ही रहे जिसे खोने के डर से हम,
अब तक निकल सके, नहीं उसके असर से हम।
हमको यक़ीन नहीं कि सलामत रहेंगे ख़्वाब,
फिर भी इन्हें तराशते हैं, शीशा-गर से हम।
- शिज्जू शकूर
लब पे मुस्कानें मिलेंगी और छाले पांव में,
देखनी हो जो तुझे जन्नत तो आना गांव में।
- पूरन जायसवाल
रातों को जागने का बहाना ही नहीं था,
इक चांद से दिल अपना लगाना ही नहीं था।
- अब्दुस्सलाम "कौसर"
दौलतें, शोहरतें, रुतबे सभी हैं इक छलावा,
जो न छूटे मौत तक वो मुहब्बत-ए-वालिदैन हैं।
- फरीदा शाहीन, भिलाई
तुम्हारे पास सब होगा. मगर इक दिल नहीं होगा,
गड़े मुर्दे उखाड़ोगे तो कुछ हासिल नहीं होगा।
- अरुणा चौहान
उम्र बढ़ना तो महज़ एक कहानी है,
महसूस न करो तो उम्र भर जवानी है।
सुबह शाम, दिन रात बदलती है ऋतुएं,
रफ्तां-रफ़्तां जिंदगी बहुत सुहानी है।
- डॉ. कोमल प्रसाद राठौर
लाल, हरे रंगों में हम को मत बांटो,
घर की छत पर मेरे तिरंगा रहने दो।
- सफदर रायपुरी
शोख़, चंचल हसीन चेहरों की,
वक़्त रंगत उतार देता है।
- सबा खान, दुर्ग
रिश्त़ों का परीवार में, बहुत बड़ा है मोल,
मां सौतेली ही सही, राम की भाषा बोल
- गौहर जमाली
इनके अलावा माधुरी कर, राहुल माही, राज कुमार मसंद, विवेक कुमार, अपूर्वा त्रिपाठी, महेन्द्र कुमार पटेल, पारस नाथ, तुलसी साहू, विकास कुमार और प्रीति वगैरह ने भी अपने कलाम पेश किए।
आखिर में छत्तीसगढ़ उर्दू तंज़ीम की जानिब से गौहर जमाली ने इजहारे तशक्कुर किया।