जमादी उल ऊला 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
तुम में सबसे ज़्यादा अज़ीज़ मुझे वो शख्स है, जिसके आदात व अखलाक सबसे उमदा हो।
- बुखारी
✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
इहानत (अपमान) रिसालत ﷺ के हस्सास मसले के ख़िलाफ़ मुल्क की मुअज़्ज़िज़ इलमी शख़्सियात ने सदर जमहूरीया द्रौपदी मुर्मू को मैमोरंडम सौंपकर कहा कि हम समाज के अमन पसंद लोग और मुतनव्वे पस मंज़र के शहरियों की नुमाइंदगी करने वाले पैग़ंबर इस्लाम ﷺ के ख़िलाफ़ किए गए हालिया गुस्ताख़ाना तबसरों की शदीद मुज़म्मत करते हैं। इस तरह के नफ़रतअंगेज़ बयानात ना सिर्फ मुस्लिम कम्यूनिटी की तौहीन है बल्कि शाइस्तगी, बाहमी एहतिराम और बकाए बाहमी के ताने-बाने पर हमला हैं। मेमोरेंडम में उन्होंने ये भी कहा कि किसी भी मुहज़्ज़ब क़ौम में ऐसी हरकतों के लिए कोई जगह नहीं है। ऐसे नाज़ेबा अलफ़ाज़, जो काबिल-ए-एहतिराम शख़्सियात की तौहीन और बेइज़्ज़ती करते हैं, उनके लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। खासतौर पर पैग़ंबर-ए-इस्लाम ﷺ जैसी हस्ती के लिए, जिनकी तालीमात अमन, हमदर्दी और इन्साफ़ पर ज़ोर देती हैं। हम पुरज़ोर तौर पर ऐलान करते हैं कि मुक़द्दस शख़्सियात या देवताओं की किसी भी किस्म की बेइज़्ज़ती, तज़हीक या तौहीन रिसालत के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
सऊदी अरब : सोशल मीडिया में अश्लील पोस्ट करने एक ख़ातून गिरफ़्तारउन्होंने कहा कि दुनियाभर के अरबों मुस्लमानों के जज़बात पैग़ंबर-ए- इस्लाम ﷺ के साथ जड़े हुए हैं और उनके ख़िलाफ़ किसी भी किस्म की तौहीन को ज़ाती और इजतिमाई जुर्म समझा जाता है। ये याददाश्त इज़हार राय की आज़ादी से मुताल्लिक़ बहस में हिस्सा लेने की कोशिश नहीं करती है, क्योंकि हम पुख़्ता यक़ीन रखते हैं कि कोई भी आज़ादी किसी दूसरे के अक़ाइद को मजरूह करने की इजाज़त नहीं देती। इस तरह के घटिया बयानात के ज़रीये नफ़रत का प्रचार मुआशरती हम-आहंगी में ख़लल डालता है, दुश्मनी को फ़रोग़ देता है और तक़सीम को जन्म देता है।
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उन्होंने कहा, हम वाजेह तौर पर मुतालिबा करते हैं कि नफ़रत की ऐसी कार्यवाईयों से क़ानून की पूरी ताक़त से निमटा जाए, ताकि ये यक़ीनी बनाया जा सके कि ज़हर उगलने वालों को उनके आमाल के लिए जवाबदेह ठहराया जाए। हम तमाम ज़िम्मेदार शहरियों, मुख़्तलिफ़ मज़ाहिब के रहनुमाओं और हुकमरान इदारों से भी अपील करते हैं कि वो इकट्ठे हों और एक आवाज़ में इसकी मुज़म्मत करें। हमें इस बात को यक़ीनी बनाना चाहिए कि एहतिराम, वक़ार और बाहमी इफ़हाम-ओ-तफ़हीम के मुआशरती उसूलों को हर क़ीमत पर बरक़रार रखा जाए।
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सैफ अली नक़वी, आदित्य मेनन, मुहम्मद ज़ुबैर (सहाफ़ी) मौलाना अमीन उलहक़, उसामा, राकेश भट्ट, डाक्टर जावेद इक़बाल वाणी, डाक्टर जावेद आलम ख़ान, नकीता चतुर्वेदी (समाजी कारकुन) रिचा शर्मा, कमल मोर्य, प्रोफेसर रीतू प्रिया, ख़ुशबू अख़तर, अबू बकर सबॉक् वग़ैर के दस्तखतशुदा मेमोरेंडम में आगे कहा गया कि हम मज़ीद दरख़ास्त करते हैं कि ज़्यादा से ज़्यादा बैन उल मज़ाहिब मकालमे और तमाम मज़हबी जज़बात के एहतिराम को फ़रोग़ देने के लिए इक़दामात किए जाएं।
हम बहैसीयत मुत्तहिद उम्मत अपने प्यारे नबी ﷺ या किसी भी मुक़द्दस मज़हबी हस्ती की तौहीन या बे-अदबी को हरगिज़ बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम उनकी इज़्ज़त के दिफ़ा में पुरअज़म हैं और उनके नाम को दागदार करने की कोशिश करने वाली किसी भी तौहीन आमेज़ बयानबाज़ी को फ़ौरी तौर पर बंद करने का मुतालिबा करते हैं।