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विकसित भारत- 2047 की संकल्पना और मुस्लिम युवा

✅ रेशमा फातिमा : रायपुर 

मुस्लिम युवाओं के लिए आवश्यक है कि वे अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखते हुए भारत की धर्मनिरपेक्ष और विविधतापूर्ण संस्कृति के साथ संतुलन स्थापित करें। देश की सामाजिक और सांस्कृतिक एकता में योगदान देना विकसित भारत की दिशा में एक मजबूत कदम होगा। 
    मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण में योगदान करना भी मुस्लिम युवाओं की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी हो सकती है। शिक्षा, रोजगार और सामाजिक अधिकारों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने से एक समृद्ध और समावेशी समाज का निर्माण होगा।


भारतीय मुस्लिम युवा विकसित भारत की संकल्पना में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। शिक्षा, आर्थिक सशक्तिकरण, तकनीकी क्रांति, और सामाजिक नेतृत्व में उनकी सक्रिय भागीदारी न केवल उनके समुदाय के लिए, बल्कि पूरे देश के विकास के लिए अत्यधिक आवश्यक है। यदि वे अवसरों का सही उपयोग करते हैं और राष्ट्र निर्माण की इस यात्रा में सकारात्मक भूमिका निभाते हैं, तो 2047 का विकसित भारत निश्चित रूप से एक समावेशी और सशक्त राष्ट्र होगा।
    "विकसित भारत @2047" भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना और दृष्टिकोण है, जिसका उद्देश्य 2047 तक भारत को एक विकसित और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाना है। 2047 का वर्ष भारत की स्वतंत्रता के 100 साल पूरे होने का प्रतीक होगा, और इस समय सीमा तक देश को विभिन्न क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाने का लक्ष्य रखा गया है। विकसित भारत की यात्रा अनेक पड़ावों से होकर गुजरती है, जिनमें पहली है, भारत को एक मजबूत आर्थिक शक्ति बनाना, जिसमें सभी क्षेत्रों में संतुलित और समावेशी विकास हो। इस क्रम में "मेक इन इंडिया", "स्टार्टअप इंडिया", और "आत्मनिर्भर भारत" जैसे अभियानों के तहत भारत को वैश्विक विनिर्माण और नवाचार का केंद्र बनाना है। "विकसित भारत @2047" की ये योजना भारत को न केवल आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की है, बल्कि हर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और विकास की ओर ले जाने का दृष्टिकोण है। यह संकल्पना न केवल आर्थिक और तकनीकी विकास को बढ़ावा देती है, बल्कि एक समावेशी समाज के निर्माण पर भी केंद्रित है, जहां हर नागरिक- धार्मिक, जातीय, और सामाजिक पृष्ठभूमि से परे विकास की इस यात्रा में सहभागी हो सके।
    भारतीय मुस्लिम युवा इस विकसित भारत की संकल्पना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना विकास और समावेशिता की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। कुछ मुख्य क्षेत्र हैं, जिन पर भारतीय मुस्लिम युवाओं का योगदान इस योजना में विशेष हो सकता है। शिक्षा और कौशल विकास के क्षेत्र में मुस्लिम युवाओं को अभिप्रेरित करना, इस दिशा में अहम हो सकता है। उच्च शिक्षा में उनकी भागीदारी बढ़ाकर, विशेषकर एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) क्षेत्रों में, वे देश की तकनीकी उन्नति में प्रमुख योगदान दे सकते हैं। 
    इसके लिए मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए विभिन्न योजनाओं, "राष्ट्रीय शिक्षा नीति" और "स्किल इंडिया" के तहत विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। भारतीय मुस्लिम युवाओं को इन अवसरों का लाभ उठाना चाहिए। मुस्लिम युवा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर रहकर स्वयं का और अपने समुदाय का उत्थान करने के साथ ही राष्ट्र के विकास में अहम भूमिका निभा सकते हैं, अतः मुस्लिम युवाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए उद्यमिता को बढ़ावा देना, भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। 
    स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे अभियानों में भागीदारी बढ़ाने से न केवल उनकी आर्थिक स्थिति सशक्त होगी, बल्कि वे देश की आर्थिक प्रगति में योगदान दे सकते हैं। इसी क्रम में मुकुल युवा स्वरोजगार और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों में सक्रियता से योगदान कर सकते हैं, जो देश की आर्थिक रीढ़ हैं। मुस्लिम युवा सामाजिक एकता और समावेशिता को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। विभिन्न क्षेत्रों राजनीति, सामाजिक संगठनों और सामुदायिक नेतृत्व में उनकी भागीदारी से समावेशी विकास को बल मिलेगा। सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भागीदारी और समाज के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण से सांप्रदायिक सौहार्द और आपसी विश्वास का वातावरण तैयार किया जा सकता है। 
    भारतीय मुस्लिम युवाओं को डिजिटल इंडिया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकी पहल में अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। डिजिटल साक्षरता बढ़ाने और डिजिटल अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनने से उनके लिए रोजगार के अवसरों का विस्तार होगा और वे देश की तकनीकी प्रगति में भागीदार बन सकेंगे। 
    मुस्लिम युवाओं के लिए आवश्यक है कि वे अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखते हुए, भारत की धर्मनिरपेक्ष और विविधतापूर्ण संस्कृति के साथ संतुलन स्थापित करें। देश की सामाजिक और सांस्कृतिक एकता में योगदान देना विकसित भारत की दिशा में एक मजबूत कदम होगा। मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण में योगदान करना भी मुस्लिम युवाओं की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी हो सकती है। शिक्षा, रोजगार और सामाजिक अधिकारों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने से एक समृद्ध और समावेशी समाज का निर्माण होगा।
    शिक्षा, आर्थिक सशक्तिकरण, तकनीकी क्रांति, और सामाजिक नेतृत्व में उनकी सक्रिय भागीदारी न केवल उनके समुदाय बल्कि पूरे देश के विकास के लिए अत्यधिक आवश्यक है। यदि वे अवसरों का सही उपयोग करते हैं और राष्ट्र निर्माण की इस यात्रा में सकारात्मक भूमिका निभाते हैं, तो 2047 का विकसित भारत निश्चित रूप से एक समावेशी और सशक्त राष्ट्र होगा।

-    जामिया मीलिया इस्लामिया


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