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यूपी : मुदर्रिसा एजूकेशन एक्ट बरक़रार रखने के फ़ैसले का जमात-ए-इस्लामी ने किया ख़ैर-मक़्दम

जमादी उल ऊला 1446 हिजरी 


फरमाने रसूल ﷺ

वो नौजवान, जिसकी जवानी अल्लाह की इबादत और फरमाबरदारी में गुज़री, अल्लाह ताअला उसे कयामत के दिन अपने अर्श का ठंडा साया नसीब फरमाएगा।
- बुख़ारी शरीफ
यूपी : मुदर्रिसा एजूकेशन एक्ट बरक़रार रखने के फ़ैसले का जमात-ए-इस्लामी ने किया ख़ैर-मक़्दम

✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया 

    मर्कज़ी तालीमी बोर्ड, जमात-ए-इस्लामी हिंद के सेक्रेटरी सय्यद तनवीर अहमद ने यूपी मुदर्रिसा एक्ट 2024 को बरक़रार रखने वाले सुप्रीमकोर्ट के फ़ैसले का ख़ैर-मक़्दम करते हुए मीडिया को जारी एक बयान में कहा कि 'सुप्रीमकोर्ट ने अपने फ़ैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के साबिक़ फ़ैसले को पलट दिया है, जिसने अपने फ़ैसले में मुदर्रिसा एक्ट को ग़ैर आईनी क़रार दिया था। 
    उन्होंने कहा कि सुप्रीमकोर्ट का ये फ़ैसला रियासत में अक़ल्लीयती बिरादरीयों के लिए हौसलाअफ़्ज़ा है। इससे उनके तालीमी हुक़ूक़ को बरक़रार रखने और आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। फ़ैसले से तलबा-ए- मदारिस के तालीमी हक़ और मज़हबी अक़ल्लीयतों और उनके तालीमी इदारों को तहफ़्फ़ुज़ हासिल होगा, नीज़ इस फ़ैसले से मज़हबी अक़ल्लीयतों के तालीमी इदारों को तहफ़्फ़ुज़ फ़राहम करने वाले आईनी उसूलों की भी तौसीक़ होती है। ये फ़ैसला रियास्ती सरकार को ये पैग़ाम भी देता है कि वो मज़हबी तालीमी इदारों को अपनी शिनाख़्त के साथ दीनी-ओ-असरी दोनों तरह की तालीम देने के हक़ का एहतिराम करे। 

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     हुकूमत इस मामले में मदारिस का मुनासिब तआवुन तो कर सकती है लेकिन उसे बेजा मुदाख़िलत से गुरेज़ करना चाहिए। चीफ़ जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ की सरबराही में जस्टिस जेबी पारदी वाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने जो फ़ैसला दिया है, हम उससे इत्तिफ़ाक़ करते हैं। बच्चों को दीनी तालीम-ओ-तर्बीयत देना गै़रक़ानूनी अमल नहीं है। इस मौक़ा पर सुप्रीमकोर्ट ने बड़ी वज़ाहत के साथ कहा कि सेक्यूलारिजम का मतलब है 'जियो और जीने दो', इससे हिन्दोस्तान के तकसीरी मुआशरे में मुतनव्वे तालीमी नुक़्ता-ए-नज़र के साथ बकाए बाहमी के उसूलों और हम-आहंगी को फ़रोग़ मिलता है। इस फ़ैसले से कई अहम नकात सामने आते। मिसाल के तौर अदालत ने इस बात की तसदीक़ कर दी कि मुदर्रिसा एक्ट, रियासत की ज़िम्मेदारीयों का एक हिस्सा है, लिहाज़ा इसमें तालीम को मेयारी बनाना और तलबा को इस काबिल बनाना कि उनमें समाजी और मआशी सतह पर शराकतदारी की अहलीयत पैदा हो, हुकूमत की ज़िम्मेदारीयों में शामिल है। 

    सुप्रीम कोट ने आर्टीकल 21 ए और राइट टू एजूकेशन को मज़हबी-ओ-लिसानी अक़ल्लीयतों के हुक़ूक़ से जोड़ते हुए कहा कि मदारिस अपने मज़हबी किरदार को बरक़रार रखते हुए सैकूलर तालीम दे सकते हैं। सुप्रीमकोर्ट के इस फ़ैसले पर तबसरा करते हुए मर्कज़ी तालीमी बोर्ड के सेक्रेटरी ने कहा कि यूपी मुदर्रिसा एक्ट को बरक़रार रखते हुए, सुप्रीमकोर्ट ने तौसीक़ कर दी है कि ऐसे इदारे हमारे मुआशरे में बा-मअअनी और मुसबत किरदार अदा करते हैं। ये फ़ैसला उन तमाम तालीमी इदारों के लिए इंतिहाई ख़ुश आइंद है, जो अपनी रिवायत और मज़हबी शिनाख़्त को महफ़ूज़ रखते हुए काम करना चाहते हैं।

उवैसी ने भी किया ख़ौरमक़दम, योगी हुकूमत पर तन्क़ीद

सुप्रीमकोर्ट ने मंगल, 5 नवंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले (22 मार्च 2024) को कुलअदम क़रार देते हुए यूपी मुदर्रिसा एक्ट की आईनी हैसियत को बरक़रार रखा है जिस पर मजलिस इत्तिहाद अलमुस्लिमीन के सरबराह और रुकन पार्लियामेंट असद उद्दीन उवैसी ने योगी हुकूमत पर हमला करते हुए कहा कि योगी हुकूमत मुसलसल मदारिस को बदनाम करने और उन्हें गै़रक़ानूनी क़रार देने की कोशिश कर रही है। 
    ख़्याल रहे कि 22 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी मुदर्रिसा एक्ट 2004 को ग़ैर आईनी क़रार दिया था। इस दौरान हाईकोर्ट ने एक्ट के बारे में कहा था कि ये एक्ट सेक्यूलारिजम के उसूल की ख़िलाफ़वरज़ी करता है। जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने यूपी हुकूमत को एक मन्सूबा बनाने की भी हिदायत दी थी, ताकि उस वक़्त मदारिस में ज़ेर-ए-ताअलीम तलबा को बाक़ायदा तालीमी निज़ाम में एडजस्ट किया जा सके जिस पर सुप्रीमकोर्ट ने 5 अप्रैल को उबूरी रोक लगा दी थी। सीजेआई डीवाई चन्द्रचूड़ की क़ियादत में सुप्रीमकोर्ट की तीन जजों की बेंच ने कहा कि ये ठीक नहीं है। बेंच ने मुआमला की तफ़सील से समाअत की और 22 अक्तूबर को फ़ैसला महफ़ूज़ कर लिया था।



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