सफर उल मुजफ्फर - 1446 हिजरी
हदीस-ए-नबवी ﷺ
जिसने अस्तग़फ़ार को अपने ऊपर लाज़िम कर लिया अल्लाह ताअला उसकी हर परेशानी दूर फरमाएगा और हर तंगी से उसे राहत अता फरमाएगा और ऐसी जगह से रिज़्क़ अता फरमाएगा जहाँ से उसे गुमान भी ना होगा।
- इब्ने माजाह
✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
सुप्रीमकोर्ट ने जुमा को मुंबई के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज के जारी करदा सर्कुलर पर रोक लगा दी, जिसमें कॉलेज के अहाते में हिजाब, नक़ाब, बुर्क़ा, टोपी और इस तरह के दीगर लिबास पहनने पर पाबंदी लगा दी गई थी। बेंच ने कॉलेज से कहा कि ये बदक़िस्मती की बात है कि आज़ादी के इतने सालों बाद इस तरह की हिदायात जारी की गई हैं।
अदालत ने मज़ीद कहा कि शायद कुछ अर्से बाद उन्हें एहसास हो जाएगा कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। जस्टिस संजीव खन्ना की क़ियादत वाली बेंच ने कॉलेज की तरफ़ से पेश होने वाले वकील से कहा कि उन्हें ऐसा कोई उसूल नहीं बनाना चाहिए था। बेंच ने कहा कि आप नहीं चाहते कि तलबा का मज़हब ज़ाहिर हो, जबकि मज़हब उनके नाम से जाना जाता है, क्या आप उनका नंबर पूछेंगे, बेंच में शामिल जस्टिस संजय कुमार ने कहा कि इस केस में एक क़ानूनी मसला पहले ही अदालत के सामने जेरे इल्तिवा है। अदालत ने तालीमी इदारों की तरफ़ से जारी करदा इस तरह की हिदायात के दुरुस्त होने के बारे में अभी फ़ैसला करना है।
आपको बताते चलें कि अक्तूबर 2022 में उस वक़्त की बीजेपी की क़ियादत वाली कर्नाटक हुकूमत ने वहां के स्कूलों में हिजाब पर पाबंदी लगा दी थी। उसके बाद सुप्रीमकोर्ट की दो जजों की बेंच ने कर्नाटक में हिजाब तनाज़ा (विवाद) में उल्टा फ़ैसला दिया था। समाअत के दौरान सुप्रीमकोर्ट को बताया गया कि कॉलेज में मुस्लिम कम्यूनिटी की 441 लड़कियां हैं जिनके नकाब पहनकर कालेज आन से मसाइल पैदा होते हैं कॉलेज की नुमाइंदगी करते हुए सीनीयर वकील माधवी दीवान ने कहा कि कॉलेज पहले से ही लाकर और चेंज रुम फ़राहम कर रहा है। इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा कि उन्हें इकट्ठे पढ़ना चाहिए। आप ठीक कह सकते हैं क्योंकि वो जिस बैक ग्राउंड से आए हैं, उनके ख़ानदान वाले कह सकते हैं कि उन्हें पहनना चाहिए। वकील ने कहा कि वो सिर्फ़ हिजाब पर नहीं बल्कि नकाब पर इसरार करते हैं और वो हमेशा उसे नहीं पहनते। इस पर बेंच ने कहा, क्या ये फ़ैसला लड़की पर नहीं छोड़ना चाहिए कि वो क्या पहनना पसंद करती है, इसके बाद दीवान ने कहा कि कल लोग ज़ाफ़रानी शालें पहन कर आएँगे और कॉलेज ऐसा नहीं चाहता और हम सियासी खेल का मैदान नहीं हैं।
इस पर बेंच ने पूछा कि अचानक क्या आपको एहसास हुआ कि मुल्क में मुख़्तलिफ़ मज़ाहिब हैं, कॉलेज की तरफ़ से जारी करदा हिदायात पर रोक लगाते हुए बेंच ने कहा कि ये बदक़िस्मती की बात है कि आप आज़ादी के इतने सालों बाद ऐसी हिदायात दे रहे हैं। इस पर दीवान ने इसरार किया कि इस पर रोक नहीं लगानी चाहिए और अदालत को इस मसले पर उनकी बात सुननी चाहिए। दीवान ने कहा कि चेहरे को ढांपने के बाद में निक़ाब पहनने की इजाज़त कैसे दे सकता हूँ, ये बातचीत की राह में रुकावटें हैं। उन्होंने कहा कि कॉलेज में 441 मुस्लिम लड़कीयां ज़ेर-ए-ताअलीम हैं, कोई मसला नहीं है और ये तीन लड़कियां इस तनाज़ा की ज़द में हैं।
बेंच ने दरख़ास्त पर नोटिस जारी किया जिसका जवाब 18 नवंबर से शुरू होने वाले हफ़्ते में देना है। बेंच ने हुक्म में वाज़िह किया कि हुक्म-ए-इमतिनाई (निषेधाज्ञा) का किसी के ज़रीया ग़लत इस्तिमाल नहीं होना चाहीए और अगर कोई ग़लत इस्तिमाल होता है तो कॉलेज हुक्काम हुक्म में तरमीम (सुधार) की अपील कर सकते हैं। ख़्याल रहे कि मुंबई के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज के हुक्काम ने अपने तालिब-ए-इल्मों को कैम्पस में हिजाब, निक़ाब, बुर्क़ा, स्टोल, टोपी वग़ैरा पहनने से रोकने के लिए एक ड्रैस कोड तजवीज़ किया था जिसे नौ तालिबात ने हाईकोर्ट में चैलेंज किया था।
बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले ने मुंबई के एक कॉलेज के कैम्पस में हिजाब, बुर्क़ा और निक़ाब पर पाबंदी के फ़ैसले को बरक़रार रखा था। उसके बाद कॉलेज के तलबा ने हाईकोर्ट के फ़ैसले को सुप्रीमकोर्ट में चैलेंज किया था। तालिबात की जानिब से अदालत में दायर दरख़ास्त में कहा गया है कि ड्रैस कोड मनमानी और इमतियाज़ी है और कॉलेज का ड्रैस कोड पर अमल दरआमद का हुक्म ग़लत है। दरख़ास्त में कहा गया है कि ये आर्टीकल 19 (1) (ए) के तहत उनके लिबास के इंतिख़ाब के हक़, राज़दारी के हक़ और आज़ादी इज़हार और आईन आर्टीकल 25 के तहत मज़हब की आज़ादी के हक़ की ख़िलाफ़वरज़ी करता है।
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