मोहर्रम-उल-हराम - 1446 हिजरी
हदीस-ए-नबवी ﷺ
बेवाओं और मिस्कीनों के काम आने वाला अल्लाह की राह में जेहाद करने वाले के बराबर है, या रातभर इबादात और दिन में रोज़ा रखने वाले के बराबर हैं।
- बुख़ारी शरीफ
✅ इलाहाबाद : आईएनएस, इंडिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जुमेरात को मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद तनाज़ा (विवाद) में दायर 18 दीवानी मुक़द्दमात को बरक़रार रखने पर अपना फ़ैसला सुनाया। अदालत ने मुस्लिम फ़रीक़ (पक्ष) की दरख़ास्त मुस्तर्द कर दी। केस की अगली समाअत 12 अगस्त को होगी।गौरतलब है कि मामले की समाअत (सुनवाई) पहले ही मुकम्मल हो चुकी थी। हाईकोर्ट ने अपना फ़ैसला महफ़ूज़ कर लिया था। जस्टिस मयंक कुमार जैन ने फ़ैसला सुनाते हुए मुस्लिम फ़रीक़ के उस इस्तिदलाल (तर्क) को मुस्तर्द कर दिया कि मुक़द्दमें में इबादत एक्ट और दीगर दफ़आत की वजह से रुकावट है और उसे बरक़रार रखने के काबिल नहीं है। अदालत ने तस्लीम किया कि सिविल सूट काबिल-ए-समाअत है। अदालत ने मुआमले में मुआमलात तै करने के लिए 12 अगस्त को समाअत का वक़्त दिया है।
आयोध्या तनाज़ा की तर्ज़ पर शाही ईदगाह केस में भी इलहाबाद हाईकोर्ट एक साथ मंदिर की तरफ़ से बराह-ए-रास्त दायर 18 मुक़द्दमात की समाअत कर रही है। जस्टिस मयंक कुमार जैन ने 31 मई को ही फ़ैसला महफ़ूज़ कर लिया था, लेकिन उसके बाद इंतिज़ामी कमेटी की जानिब से सीनीयर एडवोकेट महमूद पराचा ने समाअत का पूरा मौक़ा फ़राहम करने का मुतालिबा किया था, जिसके बाद दो दिन के लिए दुबारा समाअत हुई। गुजिश्ता मई तक 30 वर्किंड डे में होने वाली समाअत में, मस्जिद के फ़रीक़ ने इबादत-गाहों के एक्ट, हदबंदी एक्ट, वक़्फ़ एक्ट और 1991 के मख़सूस रीलीफ़ एक्ट का हवाला दिया और कहा कि तनाज़ा इन चार कामों की वजह से रुकावट में है। इसलिए मंदिर की जानिब से दायर डेढ़ दर्जन मुक़द्दमात की समाअत हाईकोर्ट में नहीं हो सकती।
हिंदू फ़रीक़ की जानिब से कहा गया कि मुतनाज़ा (विवादित) मुक़ाम को तारीख़ी विरसा क़रार दिया गया है। ये जगह क़ौमी एहमीयत की हामिल है इसलिए इससे मुताल्लिक़ मसला भी क़ौमी एहमीयत का हामिल होगा। ये भी कहा गया कि इमारत दरअसल मस्जिद नहीं है। उन्होंने कहा कि केशव देव मंदिर चार बीघा अराज़ी में बनाई गई थी। पहले यहां परिक्रमा हुआ करती थी, बाद में मंदिर को गिरा दिया गया। ईदगाह कमेटी के पास मिल्कियती हुक़ूक़ से मुताल्लिक़ कोई दस्तावेज़ नहीं है। मस्जिद की तरफ़ से सीपीसी के आर्डर 7 रोल 11 के तहत एक दरख़ास्त दायर की गई है, जिसमें उन मुक़द्दमात की बरक़रारी पर सवालात उठाए गए हैं और उनको ख़ारिज करने की अपील की गई है।
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