सफर उल मुजफ्फर - 1446 हिजरी
हदीस-ए-नबवी ﷺ
ह्य अल्लाह ताअला जिसके साथ खैर व भलाई करना चाहता है, उसे बीमारी की तकलीफ और दीगर मुसीबतों में मुब्तिला कर देता है।ह्य
- सहीह बुख़ारी
✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
मर्कज़ी हुकूमत ने साल 2025 की हज पालिसी जारी कर दी है जिसके मुताबिक़ हज कमेटी का कोटे में कमी करते हुए इसे 70 फ़ीसद कर दिया गया है। नई पालिसी के मुताबिक़ हिन्दोस्तान के लिए मुख़तस (रिजर्व) आज़मीन-ए-हज्ज के कुल कोटे का 70 फ़ीसद हिस्सा हज कमेटी आफ़ इंडिया सँभालेगी। बाकी 30 फ़ीसद कोटा प्राईवेट हज ग्रुप आर्गेनाईज़रज़ को दिया जाएगा। जबकि गुजिश्ता साल प्राईवेट हज कोटा 20 फीसद था।
अकेले सफर नहीं कर सकेंगे उम्र दराज आजमीन
नई पालिसी के तहत 65 साल से ज़्यादा उम्र के आज़मीन को सफ़र हज के लिए अपने किसी अज़ीज़ को साथ ले जाना होगा। साथ जाने वाले की उम्र 60 साल से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए। इसके साथ महरम के बग़ैर हज करने वाली ख़वातीन की उम्र की हद 45 से 60 साल के दरमयान होगी। एक ही वक़्त में, अब एक कोर नंबर पर ज़्यादा से ज़्यादा पाँच लोग दरख़ास्त दे सकते हैं। एक कोर नंबर पर दो नौज़ाईदा बच्चों को भी शामिल किया जा सकता है। मर्कज़ी अक़लीयती उमूर की वजारत (मंत्रालय) की जानिब से ये पालिसी पाँच साल के लिए जारी की गई है। नई पालिसी के तहत हज-2025 के लिए आज़मीन-ए-हज्ज की दरख़ास्तें भी जल्द तलब की जाएँगी।खादिमुल हुज्जाज अब स्टेट हज इंस्पेक्टर कहे जाएंगे
नई हज पालिसी में खादिमुल हुज्जाज के ओहदे का नाम भी तबदील कर दिया गया है। ऐसा खादिमुल हुज्जाज की शिकायत पर किया गया है। गौरतलब है कि खादिमुल हुज्जाज लंबे समय से अपने ओहदे का नाम बदलने का मुतालबा कर रहे थे। उनका कहना था कि उनके ओहदे के साथ जुड़े लफ्ज खादिम की वजह से आजमीन हज उनसे अपने जाती काम का भी मुतालबा करते थे। यही वजह है कि हज पालिसी 2025 खादिमुल हुज्जाज के ओहदे को अब स्टेट हज इंस्पेक्टर से तबदील कर दिया गया है।हज सहूलत एप
इसके साथ ही आज़मीन-ए-हज्ज की सहूलत के लिए हज सहूलत एप भी बनाया गया है। इस एप पर आज़मीन-ए-हज्ज को रिहायश, फ्लाइट, सामान, एमरजेंसी हेल्पलाइन, ज़बान को समझने में आसानी के लिए सहूलयात मयस्सर होंगी। काबिल-ए-ज़िक्र है कि हज इस्लाम का पांचवां बुनियादी रुकन है। सफ़र हज और ख़ाना-ए-काअबा का दीदार हर मुस्लमान की दिली ख़्वाहिश होती है। हालांकि हर साल महदूद तादाद में लोगों को हज की इजाज़त दी जाती है। इसकी बड़ी वजह दुनिया-भर से आने वाली बेशुमार दरख़ास्तें हैं। इसी के पेश-ए-नज़र हुकूमत की तरफ़ से हज पालिसी का ऐलान किया जाता है।ये भी पढ़ें :
दीवारों पर मुसलमानों को चाकू पर धार लगाते हुए की गई मुसव्विरी से नाराज़गी
मुंबई : जेजे अस्पताल की दीवारों पर हाल ही में एक मुसलमान को चाकू पर धार लगाने वाली तज़ईनकारी (चित्रकारी) की गई है। लोगों का कहना है कि इसमें मुस्लमान को छुरी में धार लगाते क्यों दिखाया गया है। आख़िर मुस्लमानों के ख़िलाफ़ ऐसी मनफ़ी (निगेटिव) सोच क्यों नहीं बदलती। बात फिल्मों की हो या किसी और शोबा की, मुस्लमानों को इसी मनफ़ी नज़र और किरदार में पेश किया जाता है।प्रोफेसर सईद ख़ान दीवारों पर उकेरी गई इन तस्वीरों की तारीफ करते हैं लेकिन वो भी उस सोच के ख़िलाफ़ हैं जो मुस्लमानों को मनफ़ी किरदार में अवाम के सामने पेश करती है। शुऐब ख़तीब, जो जामा मस्जिद के ट्रस्टी हैं, कहते हैं कि बीएमसी इलाक़ाई तहज़ीब-ओ-तमद्दुन, सक़ाफ़्त से अवाम को रोशनास करती है लेकिन क्या मुस्लमानों की शिनाख़्त के लिए सिर्फ यही एक पेशा था, क्या उन्हें ये नहीं पता कि मुस्लमानों ने किया कारहाए नुमायां अंजाम दिए हैं। इस तरह के मनफ़ी किरदार फिल्मों में भी दिखाए जाते हैं। बेशतर फिल्मों में विलेन के किरदार में किसी मुस्लिम शख़्स को ही दिखाया जाता है।
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