रमजान उल मुबारक-1445 हिजरी
बदफाली शिर्क है
'' अब्बास रदि अल्लाह अन्हू से रवायत है कि नबी-ए-करीम ﷺ ने फरमाया, मेरी उम्मत के सत्तर हजार लोग बिना हिसाब के जन्नत में जाएंगे। ये वो लोग होंगे, जो झाड़-फूंक नहीं करते हैं और न शगुन लेते हैं। यानी अच्छे-बुरे शगुन में यकीन नहीं करते और अपने रब पर भरोसा करते हैं। ''- सही बुखारी
(तशरीह : शगुन यानि फालतू बातों में यकीन करके उस काम को छोड़ देना। जैसे काली बिल्ली रास्ता काट जाने से काम खराब हो जाएगा या घर से दही पीकर निकलने से काम अच्छा होगा, ये सब शुगुन में आता है, ऐसी बातों का यकीन नहीं करना चाहिए, क्यूंकि होता वही है, जो अल्लाह चाहता है।)-----------------------------------
✅ दुबई : आईएनएस, इंडिया
यूक्रेन से ताल्लुक़ रखने वाली 29 साला ख़ातून का इस्लाम क़बूल करने के बाद 24 घंटों के अंदर ही इंतिक़ाल हो गया। अमीराती अख़बार 'ख़लीज टाईम्स के मुताबिक़ नव मुस्लिम ख़ातून को दिल का दौरा पड़ा जो जान-लेवा साबुत हुआ। ख़ातून रोज़े से थीं और इसी दौरान उन्होंने अपनी जान जान आफ़रीं के सपुर्द कर दी। जुमा के रोज़ उन्हें सपुर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया।अख़बारी रिपोर्ट के मुताबिक़ यूक्रेन से ताल्लुक़ रखने वाली ख़ातून दुबई में मुक़ीम थीं। सोशल मीडीया के मुताबिक़ उन्होंने यहीं महज चंद घंटे कब्ल इस्लाम को दीन के तौर पर क़बूल कर कलिमा शहादत पढ़ा था। ये वाक़िया चंद रोज़ कब्ल का है, जब एक तरफ़ उनके सोशल मीडीया पर इस्लाम क़बूल करने की रिपोर्टस आई और महज चंद घंटों बाद उनकी अचानक मौत ने सभों को सोगवार कर दिया। अमीरात में तारकीन-ए-वतन से मुताल्लिक़ ज़राइआ का कहना है कि नौ मुस्लिम ख़ातून को मुक़ामी मुस्लमानों ने अलक़िस्सा क़ब्रिस्तान में जनाज़े के बाद सपुर्द-ए-ख़ाक किया। मुशर्रफ़ ब इस्लाम होने वाली इस ख़ातून का नाम दार्या कोटसारेंकव बताया गया है। दार्या एक मसीही ख़ातून थीं, जो दुबई सयाहती सिलसिले में आई थी, मगर उन्हें ये जगह क़ियाम के लिए बेहतर लगी तो उन्होंने यहां रोज़गार के लिए रुकने का फ़ैसला कर लिया। इसी दौरान उन्हें यहां इस्लामी तालीमात से मुतआरिफ़ होने का मौक़ा मिला और उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया था।
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25 मार्च को एक सोशल मीडीया पोस्ट से मालूम हुआ कि उन्होंने इस्लाम क़बूल कर लिया है। मगर इस्लाम क़बूल करने के बाद वो महिज़ चंद घंटे ज़िंदा रही और दिल का दौरा उनके लिए जानलेवा साबित हो गया। बताया गया है कि उन्होंने इस्लाम क़बूल करने के बाद रोज़ा भी रखा मगर इफ़तार से बहुत पहले ही उन्हें दाई अजल को लब्बैक कहना पड़ा। उनके इस्लाम क़बूल करने की इस मुख़्तसर से कहानी ने बहुत सारे लोगों के दिलों में उनके लिए एहतिराम का जज़बा पैदा कर दिया। इसी तरह उनकी अचानक मौत ने बहुत सारों को सोगवार कर दिया। उनमें से सैंकड़ों उनकी नमाज़ जनाज़ा में शरीक हुए। नमाज़ जनाज़ा जुमा के रोज़ अदा की गई। किसी ग़ैर मुल्की और नौ मुस्लिम के साथ इज़हार-ए-यकजहती का ये अमल मुत्तहदा अरब अमीरात के रिहायशियों के लिए बिलकुल अजनबी है, नया नहीं है। माज़ी के बरसों में इस तरह की कई मिसालें मौजूद हैं, जब दीने इस्लाम इख़तियार करने वालों के जनाज़े में बड़ी तादाद में लोग शरीक होते रहे हैं।☑ मैंने पूरा क़ुरआन हर्फ़ ब हर्फ़ पढ़ा, ये आईने की तरफ़ शफ़्फ़ाफ़ है : हालीवुड स्टार विल स्मिथ
इस तरह का एक वाक़िया नवंबर 2022 में भी सामने आया था, जब लूइस जैन मचल नामी 93 साला ख़ातून, जिसे उमैया के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम क़बूल करने के फ़ौरन बाद इंतिक़ाल कर गईं थीं। उमैया ने अपने बेटे के साथ दीने इस्लाम क़बूल किया था। बादअज़ां उनका इंतिक़ाल मुत्तहदा अरब अमीरात में हुआ था। उनके नमाज़ जनाज़ा में भी बहुत बड़ी तादाद में लोग शरीक हुए थे। अब इस ताज़ा वाक़े की ख़बर ने भी अबू धाबी के रिहायशियों की तवज्जा मबज़ूल कराई है, जो बड़ी तादाद में नौ मुस्लिम ख़ातून के जनाज़े में शिरकत के लिए आए।नायब वज़ीर-ए-आज़म और वज़ीर-ए-दाख़िला लेफ़्टीनैंट जनरल शेख़ सैफ़ बिन ज़ाएद ने लोगों जनाज़े में बड़ी तादाद में शरीक होने के इस जज़बे की तारीफ़ की है और कहा है कि ये अमीराती इक़दार की एक बेहतरीन मिसाल है।
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