शअबान उल मोअज्जम-1445 हिजरी
अकवाल-ए-जरीं
'' हजरत अब्दुलाह बिन उमर रदिअल्लाहो ताअला अन्हुमा से रिवायत है कि मैंने रसूल अल्लाह ङ्घ.. से सुना, आप ङ्घ.फरमाते हैं कि जब तुम्हारा कोई आदमी इंतेकाल कर जाए तो उसे ज्यादा देर तक घर पर मत रखो और उसे कब्र तक पहुंचाने और दफनाने में जल्दी करो ''- बैहकी शुअबुल ईमान
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✅ काहिरा : आईएनएस, इंडिया
तुर्क सदर रजजब तय्यब अर्दगान गुजिश्ता बुध को मिस्र पहुंचे जहां वे अपने मिस्री हम मन्सब अब्दुल फताह अलसीसी के हमराह क़ाहिरा में मौजूद इमाम अलशाफ़ई (रहमतुल्लाह अलैह) मस्जिद का दौरा किया। मिस्त्र के सदर अलसीसी ने इस बात की तसदीक़ की कि वे अपने तुर्क हम मन्सब के साथ दार-उल-हकूमत में मस्जिद और इमाम अल शाफ़ई के मज़ार के दौरे पर गए, जबकि उर्दगान ने क़ाहिरा के तारीख़ी और इस्लामी मुक़ामात का दौरा करने पर अपनी ख़ुशी का इज़हार करते हुए क़दीम (प्राचीन) मिस्री अवाम की तहज़ीब पर अपने फ़ख़र पर ज़ोर दिया।मशरिक़ वुसता (मध्य पूर्व) के मुतालआत के प्रोफेसर डाक्टर ख़ीरी उम्र ने वज़ाहत की कि इमाम शाफ़ई (रहमतुल्लाह अलैह) के मज़ार पर उर्दगान के दौरे का मक़सद मिस्र के साथ मज़हबी और फिरकावाराना हम-आहंगी को गहरा करना है, हालाँकि तुर्कों ने हनफ़ी मसलक को क़बूल किया है। उन्होंने एक बयान में इस बात पर भी ग़ौर किया कि ये इशारा तुर्कों की मज़हबी गहराई और इस्लामी सक़ाफ़्त में उनके फ़ख़र की भी अक्कासी करता है। इसके अलावा उन्होंने मज़ीद कहा कि जून 2013 के इन्क़िलाब से पहले तुर्की इस्लामी विरसे और इस्लामी फ़न तामीर को महफ़ूज़ रखने के लिए मस्जिद और इमाम अलशाफ़ई (रहमतुल्लाह अलैह) के मज़ार की बहाली के लिए एक मंसूबे की माली इमदाद करना चाहता था। शायद ऐसा लगता है कि इस दौरे का यही मक़सद था।
तर्क सदर ने 11 साल से ज़ाइद अर्से के वक़फ़े के बाद मिस्र का दौरा किया और मिस्री सदर से ताल्लुक़ात, हम-आहंगी और मुशतर्का तआवुन को मज़बूत बनाने के बारे में बातचीत की। उन्होंने कई शोबों में तआवुन के मुतअद्दिद मुआहिदों और याददाश्तों पर दस्तख़त भी किए। दोनों सदूर ने दोनों ममालिक के दरमयान आला सतही स्ट्रैटजिक तआवुन काउंसिल के इजलासों की तंज़ीम नौ के मुशतर्का आलामीए पर भी दस्तख़त किए।
काबिल-ए-ज़िक्र है कि इमाम शाफ़ई (रहमतुल्लाह अलैह) मुहम्मद बिन इदरीस अलशाफ़ई हैं, जो इस्लाम में सुन्नी कम्यूनिटी के दरमयान चार फ़िक़ही मकातिब फ़िक्र के इमामों में से एक हैं और शाफ़ई मकतब फ़िक्र के बानी हैं। आपने इमाम मालिक बन अनस से इल्म हासिल करने के लिए मदीना हिज्रत की, फिर वो यमन गए वहां से बग़दाद और मिस्र गए जहां आपने अपने नए नज़रिए और इल्म को फैलाना शुरू किया।