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ग़ज़ा के जंग मुतासरीन की अशकबार रूदाद : हम फ़िज़ाई बमबारी से तो बच गए मगर भूख से मर रहे हैं

 शअबान उल मोअज्जम-1445 हिजरी

हदीसे नबवी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम
तकदीर का लिखा टलता नहीं

'' हजरत अबु हुरैरह रदि अल्लाहो अन्हुमा ने फरमाया-अपने नफे की चीज को कोशिश से हासिल कर और अल्लाह ताअला से मदद चाह, और हिम्मत मत हार और अगर तुझ पर कोई वक्त पड़ जाए तो यूं मत कह कि अगर मैं यूं करता तो ऐसा हो जाता, ऐसे वक्त में यूं कह कि अल्लाह ताअला ने यही मुकद्दर फरमाया था और जो उसके मंजूर हुआ, उसने वहीं किया। ''
- मुस्लिम शरीफ

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ग़ज़ा के जंग मुतासरीन की अशकबार रूदाद : हम फ़िज़ाई बमबारी से तो बच गए मगर भूख से मर रहे हैं

✅ ग़ज़ा : आईएनएस, इंडिया 

गुज़शता साल सात अक्तूबर से फ़लस्तीनी तंज़ीम हम्मास और इसराईल के दरमयान जंग का मर्कज़ बनने वाली ग़ज़ा की पट्टी में जारी इसराईली हमलों के नतीजे में ना सिर्फ बमबारी से हलाकतें हो रही हैं बल्कि ग़ज़ा की आबादी को क़हत (अकाल) और फ़ाक़ाकशी जैसे संगीन ख़तरात से सामना करना पड़ रहा है जो मौत से कम मोहलिक (जानलेवा) नहीं है। 
    ग़ज़ा में इमदाद (मदद) का दाख़िला इसराईली मंज़ूरी से मशरूत (सशर्त) है और क़लील इन्सानी इमदाद बुनियादी तौर पर मिस्र के साथ रफा क्रासिंग के ज़रीये पट्टी तक पहुँचती है, लेकिन उसे शुमाल की तरफ़ ले जाना तबाही और लड़ाई की वजह से ख़तरात से भरा हुआ है। इमदाद की आमद में ताख़ीर (देरी) ने ग़नजान आबाद इलाक़े बिलख़सूस जबालिया पनाह गज़ीन कैंप में फंसे फ़लस्तीनीयों की परेशानी और ग़म-ओ-ग़ुस्से की सतह को बढ़ा दिया है। दर्जनों लोगों ने गुज़शता चंद दिनों से अपनी अदम इतमीनान का इज़हार किया और एहितजाजी मुज़ाहिरे किए। उन्होंने कहा कि हम फ़िज़ाई हमलों और बमबारी से नहीं मरे मगर भूक से मर रहे हैं। 
    कैंप में अहमद आतिफ़ साफ़ी ने एएफ़पी को बताया कि हम क़हत की जंग में हैं। जबालिया कैंप के रिहायशियों में से एक ने तसदीक़ की कि यहां आटा, तेल और पीने का पानी नहीं है। बहुत से बच्चों को क़तारों में खड़े प्लास्टिक के कंटेनर और फटे हुए खाना पकाने के बर्तन उठाए हुए सड़कों पर देखा जा सकता है। उनके पास खाने को कुछ नहीं है। दरे अश्ना (उसी बीच) शुमाली ग़ज़ा के रिहायशियों को अपनी भूख मिटाने के लिए बचा हुआ चारा, गली सड़ी मकई, जानवरों की ख़ुराक और यहां तक कि दरख़्तों के पत्ते तक खाने पर मजबूर किया गया। ग़ज़ा में वज़ारत-ए-सेहत ने ऐलान किया है कि महमूद अलफ़तोह नामी दो माह के बच्चे की मौत ग़िज़ाई क़िल्लत से हुई। 
    बच्चों की बहबूद के लिए काम करने वाली तंज़ीम 'सेव दी चैरिटी' ने ख़बरदार किया कि जब तक इसराईली हुकूमत ग़ज़ा में इमदाद के दाख़िले में रुकावट डालती रहेगी, क़हत का ख़तरा बढ़ता रहेगा। पानी, सेहत की ख़िदमात और दीगर सहूलयात तक रसाई नामुमकिन हो जाएगी।

रफा और साबरा में इसराईली बमबारी, 11 फ़लस्तीनी शहीद

ग़ज़ा में रफा और साबरा में ताज़ा-तरीन इसराईली बमबारी के नतीजे में 11 फ़लस्तीनी शहीद हो गए। अरब मीडीया के मुताबिक़ ग़ज़ा के शहर रफा में इसराईल ने शदीद बमबारी की है जिससे 8 फ़लस्तीनी शहीद हो गए। वसती (मध्य) रफा में इसराईली बमबारी में रिहायशी इमारतों को निशाना बनाया गया है। उधर ग़ज़ा शहर के इलाक़े एलिसाब्रा में इसराईली बमबारी में 3 फ़लस्तीनी शहीद हो गए। दूसरी जानिब ग़ज़ा के अलशफ़ा अस्पताल में ग़िज़ाई क़िल्लत के बाइस 2 माह का बच्चा दम तोड़ गया। अलशफ़ा अस्पताल में दूध और बुनियादी इश्याय ना मिलने पर बच्चे की मौत हुई। 


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