◾10 अक्टूबर 1944 को आज ही के दिन 800 बच्चों को गैस चेंबर में डालकर हिटलर ने की थी हत्या
◾जंग के छह साल के दौरान नाजियों ने तकरीबन 60 लाख यहूदियों की हत्या की
✒ शाहनवाज हसन, नई दिल्ली
जंग के छह साल के दौरान नाजियों ने तकरीबन 60 लाख यहूदियों की हत्या कर दी, जिनमें 15 लाख बच्चे थे। यहूदियों को जड़ से मिटाने के अपने मकसद को हिटलर ने इतने मोअस्सर ढंग से अंजाम दिया कि दुनिया की एक तिहाई यहूदी आबादी खत्म हो गई। ये कत्ले आम तादाद, इंतजाम और नफाज (क्रियान्वयन) के लिहाज से गैर मामूली (विलक्षण) था।तब जर्मन तानाशाह हिटलर के खिलाफ जाने की हिम्मत किसी में नहीं थी। यहूदियों को अपना सर छुपाने के लिए कोई जगह मयस्सर नहीं थी। ऐसे में तुर्की के मुस्लिम खलीफा जिन्हें हम ओटोमन खलीफा के तौर पर जानते हैं, ने फिलिस्तीन में यहूदियों को पनाह दी। तब यह कोई नहीं जानता था कि पनाह लेने वाले यहूदी उन्हें पनाह लेने को मजबूर कर देंगे। ये एक ऐसी तारीखी भूल थी जिसने अरब दुनिया में अलगाववाद को जन्म दिया।
आज का दिन तारीख के अवराक में हमेशा काली स्याही से दर्ज किया जाएगा। आज ही के दिन 10 अक्टूबर 1944 को 800 रोमानी बच्चों का कत्ल कर दिया गया था। इनमें से 100 ऐसे बच्चे थे, जिनकी उम्र 9 से 14 साल के बीच थी।
1909 में ओटोमन खलीफा सुल्तान अब्दुल हमीद की मौत के बाद इजराइल के वजूद की नींव पड़ गई। उस्मानी सरकार में यहूदी हिमायती लोगों का एक वर्ग, जो यहूदियों को फिलिस्तीन जाने में मदद करता था, 1897 तक उनकी तादाद महज पचास हजार थी जो 1914 में बढ़कर 85 हजार हो गई। यहूदी बड़े व्यापारियों और साहूकारों के तौर पर हर मुल्क में थे, जिसके सबब मुल्कों की सियासत और मामलों पर उनका असर ताअज्जुबखेज नहीं होता था। उनकी कोशिश हर सतह पर दबाव बनाने और दुनिया को यह बावर (आश्वस्त) कराने की होती कि फिलिस्तीन का अधिग्रहण (इलहाक) यहूदियों के लिए जरूरी है, लेकिन ओटोमन खलीफा उनकी झूठे अज्म (महत्वाकांक्षा) और इरादों में बाधा साबित हो रहे थे। लेहाजा इसी गैर यकीन (अवास्तविक) मफरूजों (धारणा) की बिना पर मिस्र की सरकार ने एक बार यहूदियों को सिनाई रेगिस्तान में बसाने की कोशिश की, जिसमें वे नाकाम रहे। इसके बाद आलमी सियासत में कुछ ऐसे हालात बनें जिन्होंने फिलिस्तीन में बुराई के ’प्रतिनिधि राष्ट्र’ की सरकार के कयाम का राह आसान कर दी।
- इनमें हिटलर की जानिब से यहूदियों का नरसंहार, जिससे वे दुनिया के सामने खुद को उत्पीड़ित साबित कर सकें।
- आटोमन खलीफा का जवाल (पतन)
- फिलिस्तीन का ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अधीन आना
इस तरह 15 मई, 1948 को इजराइल रियासा के कयाम का ऐलान किया गया, जिसे कुछ ही लम्हों में मुत्तहदा रियासत अमेरिका, रूस और यूरोप ने मान्यता भी दे दी। मान्यता देने वालों में इस्लामिक मुल्कों में सिर्फ तुर्की और उस समय ईरान के शाह ही शामिल थे।