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क्या इस सदी में मिलेगा बत्तख मियां अंसारी के खानदान को महात्मा गांधी की जान बचाने का इनआम

12 सफर उल मुजफ्फर 1445 हिजरी
बुध, 30 अगस्त, 2023
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अकवाले जरीं
औरतों का मर्दों की मुशाबहत इख़्तियार करना, मर्दाना लिबास पहनना गुनाह व हराम है। उम्मुल मोमिनीन, हजरत आइशा सिद्दीका (रजिÞयल्लाहु अन्हा) से किसी ने अर्ज किया, एक औरत मर्दों की तरह जूते पहनती है। उम्मुल मोमिनीन (रजिÞयल्लाहु अन्हा) ने फरमाया, रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने मर्दानी औरतों पर लानत फरमाई है। 

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एमडब्ल्यू अंसारी : भोपाल

कहा जाता है कि बचाने वाला मारने वाले से बड़ा होता है और जो अपनी जान-ओ-माल की कुर्बानी देकर किसी की जान बचाता है, वो हमेशा के लिए अमर हो जाता है और जाहिर है, जो बड़ा होगा, वो हर मौकों पर याद किया जाएगा, लेकिन भारत में मुआमला इसके बरअक्स है।
 

    बाबाए कौम महात्मा गांधी और उनके कातिल को तो पूरी दुनिया जानती है लेकिन गांधी जी की जान बचाने वाले को शायद ही कोई जानता हो। वो शख़्सियत आज गुमनाम होकर रह गई है। जी हां, हम बात कर रहे हैं, बख़्त मियां अंसारी (उर्फ बत्तख अंसारी) की। 
    तारीख की किताबों में लिखा है कि किस तरह बत्तख मियां अंसारी ने गांधी जी की जान बचाई। अंग्रेज अफ़्सर ने गांधी जी को खाने पर मदऊ (आमंत्रित) किया और अपने बावर्ची बत्तख मियां से जहर-आलूद दूध उन्हें पेश करने कहा, लेकिन बत्तख मियां ने ये गवारा न किया और अंग्रेजों की साजिÞश को बे-नकाब कर गांधी जी की जान बचा ली। इसके लिए बत्तख मियां को अंग्रेजों के हाथों वहशियाना तशद्दुद का सामना भी करना पड़ा। यहां तक कि उन्हें उनकी सरजमीन से बेदखल कर दिया गया। उन्हें जेल की कोठरी में डाल दिया गया जहां उनके साथ वो सब कुछ हुआ, जो उस जमाने के तमाम मुजाहिदीन आजादी के साथ होता था। 

    बख़्त मियां के पोते चिराग अंसारी, कलाम अंसारी और दीगर खानदान वालों का कहना है कि उनके दादा ने गांधी जी को तो बचा लिया लेकिन उसकी पादाश में उन्हें सऊबतें बर्दाश्त करनी  पड़ी। हुब्ब-उल-वतनी के इस अमल की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी। उन्होंने मजीद कहा कि हकूमत-ए-हिन्द अपने खुद के सदर जमहूरीया हिंद के हुक्म को भूल गई। बत्तख मियां के खानदान के लोग दरबदर की ठोकरें खा रहे हैं हर तरह की मरवात से महरूम हैं। कई सरकारें आई-गई, सबने वाअदा किया कि इन्साफ होगा मगर अब तक ना तो बत्तख मियां अंसारी को और ना ही उनके खानदान वालों को इन्साफ मिल सका। 
    साबिक सदर जमहूरीया (राष्टÑपति) डाक्टर राजिंदर प्रसाद से लेकर अब तक कितने सदर जमहूरीया आए और इसी तरह से कई कौमी सरकारें आई और सूबे की कांग्रेस से लेकर लालू प्रसाद यादव और नितीश सरकार वगैरह सभी ने वाअदा किया लेकिन किसी ने भी अपने वादे पर अमल नहीं किया। इन्साफ को लेकर सूबा की असेंबली में कई बार सवाल-जवाब हुए लेकिन कोई फायदा न हुआ। 
    ये बात भी काबिल-ए-जिÞक्र है कि बत्तख मियां अंसारी के इस कारनामा से खुश होकर आजाद हिन्दोस्तान के पहले सदर जमहूरीया राजिंदर प्रसाद ने बत्तख मियां के खानदान वालों को जमीन देने का वाअदा किया था लेकिन इस पर भी अमल नहीं किया गया। बत्तख मियां के खानदान वालों को अब तक वो जमीन का टुकड़ा नसीब नहीं हुआ। अब हालत यह है कि उनके खानदान का कोई पुरसान-ए-हाल नहीं है। यहां तक कि उनके नाम पर बनी लाइब्रेरी, उनका मकबरा और उनके नाम का गेट वगैरह सब कुछ बेतवज्जुही का शिकार होकर रह गया है। बीजेपी की कौमी सरकार पसमांदा समाज की फलाह-ओ-बहबूद की बात करती है, उनके साथ होने वाली ना इंसाफी की बात करती है, सूबे में नितीश कुमार और तेजस्वी यादव की मिलीजुली सरकार है, लेकिन कोई भी बत्तख मियां के कारनामे और उनके खानदान की पसमांदगी पर नजरसानी नहीं कर रहा है। हाल ही में मुकामी एमएलए ने विधान सभा में ये मुद्दा जरूर लेकिन फिर वही, ढाक के तीन पात की तरह बत्तख मियां अंसारी के जां निसारी को बिसार दिया गया। अब देखना ये है कि इन्साफ की किरण कब तुलूअ होगाी।

- आईपीएस, रिटा. डीजीपी (छत्तीसगढ़)


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