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फूलों में ये महकी हुई खुशबू है कि तुम हो (गजल)

12 सफर उल मुजफ्फर 1445 हिजरी
बुध, 30 अगस्त, 2023
अकवाले जरीं
औरतों का मर्दों की मुशाबहत इख़्तियार करना, मर्दाना लिबास पहनना गुनाह व हराम है। उम्मुल मोमिनीन, हजरत आइशा सिद्दीका (रजिÞयल्लाहु अन्हा) से किसी ने अर्ज किया, एक औरत मर्दों की तरह जूते पहनती है। उम्मुल मोमिनीन (रजिÞयल्लाहु अन्हा) ने फरमाया, रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने मर्दानी औरतों पर लानत फरमाई है।
 
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अहमद फाखिर

फूलों में ये महकी हुई खुशबू है कि तुम हो,
मुझ पर कोई छाया हुआ जादू है कि तुम हो।
        अलफाज अदा हो कभी, लब से जो तुम्हारे,
        होता है गुमां मुझको कि उर्दू है कि तुम हो।
ए जान-ए-गजल मेरे तखय्युल के उफक पर, 
रोशन सा चमकता हुआ जुगनू है कि तुम हो।
        हाफिज की गजल हो कि असद का हो बयां तुम,
        बतलाओ कि बुलबुल की ये कूकू है कि तुम हो।
जुहरा हो, उतारिद हो कि महवश हो सरापा,
आफाक में ताबां कोई महरो है कि तुम हो।
        तुम राग हो दीपक का कि मल्हार की लै हो,
        हर साज में मखफी कोई जादू है कि तुम हो।
‘फाखिर’ का हो दुखड़ा कि कोई शाम-ए-हजीं हो, 
आँखों से ये टपका हुआ आँसू है कि तुम हो। 

- बटला हाउस, ओखला, नई दिल्ली
तखय्युल के उफक पर - कल्पना के क्षितिज पर, जुहरा - शुक्र, उतारिद - बुध, महवश - अचेतन, आफाक - क्षितिज, ताबां - तारा, मखफी - छिपा, शाम-ए-हजीं - गमगीन शाम

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