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मुहर्रम के मौका पर ढोल पीट-पीट कर सुकून गारत नहीं कर सकते : हाईकोर्ट

9 मुहर्रम-उल-हराम 1445 हिजरी
जुमा, 28 जुलाई, 2023
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अकवाले जरीं
‘जो चीज सबसे ज्यादा लोगों को जन्नत में दाखिल करेगी वह खौफ-ए-खुदा और हुस्ने अखलाख है।’
- तिर्मिजी
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कोलकाता : आईएनएस, इंडिया 
मुहर्रम के तेहवार से कब्ल कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुध के रोज मगरिबी बंगाल पुलिस और रियासत के आलूदगी कंट्रोल बोर्ड को मुबय्यना ढोल और खुली हवा में रसोई की वजह से अवामी परेशानी के वाकियात पर काबू पाने के लिए हिदायात जारी की है। 
मुहर्रम के मौका पर ढोल पीट-पीट कर सुकून गारत नहीं कर सकते : हाईकोर्ट

    चीफ जस्टिस टीएस जस्टिस शिवगणनम और भट्टाचार्य पर मुश्तमिल बेंच ने मुशाहिदा किया कि रियासत को आईन आर्टीकल 25 (1) के तहत मजहब से लुत्फ अंदोज होने के हक के साथ आर्टीकल 19 (1) (ए) के तहत जिंदगी गुजारने के हक में तवाजुन रखना चाहिए। कोर्ट ने जबानी तबसरा किया कि ये नहीं कहा जा सकता कि किसी शहरी को ऐसी बात सुनने पर मजबूर किया जाए जो उसे पसंद ना हो या उसकी जरूरत ना हो। अदालत ने मुशाहिदा किया कि मुसलसल ढोल बजाना नहीं चल सकता और पुलिस को हिदायत की कि वो ढोल बजाने के औकात को रेगूलेट करते हुए फौरी तौर पर पब्लिक नोटिस जारी करे। ढोल पीटने के मुताल्लिक तजवीज पेश की कि दो घंटे सुबह और दो घंटे शाम को ही वक्त मुकर्रर किए जाएं। ढोल सुबह 8 बजे से पहले नहीं बजाने दिया जाना चाहिए। स्कूल जाने वाले बच्चे, बूढ़े और बीमार लोगों को परेशानी हो सकती है। इसी तरह शाम 7 बजे के बाद ऐसा नहीं होना चाहिए। 
    दरखास्त गुजार की जानिब से मौकिफ इखतियार किया गया कि उनके इलाके में मुहर्रम के तहवार के बहाने मुकामी गुंडों की जानिब से रात गए तक मुसलसल ढोल पीटा जाता है। ये दलील दी गई कि जब दरखास्त गुजार ने मदद के लिए पुलिस से रुजू किया तो उसे वापिस ले लिया गया और पुलिस ने उसे अदालती हुक्म के साथ आने को कहा। चर्च आफ गॉड इंडिया ब मुकाबला केकेआर केस को दलील के तौर पर लिया गया, जिसमें सुप्रीमकोर्ट ने सूती आलूदगी से मुताल्लिक इसी तरह के मुआमले पर मजहब की बुनियाद पर गौर किया और कहा कि कोई भी मजहब ये नहीं बताता कि इबादत दूसरों के सुकून को खराब करते हुए की जाए। 

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    हाईकोर्ट ने जबानी रिमार्कस दिए कि सुप्रीमकोर्ट ने निशानदेही की है कि ये नहीं कहा जा सकता कि मजहबी रहनुमाओं ने मजहब की तशहीर के जरीया एम्प्लीफायर और लाऊड स्पीकर की खाहिश की थी। मजीद ये कि उसने निशानदेही की कि आईन आर्टीकल 25 (1) के तहत मजहब का हक इस्तिमाल नहीं किया जा सकता। अदालत ने ये भी नोट किया कि इस सिलसिले में आफिसरान में बेदारी की कमी है। इसमें कहा गया है कि रियासत कहती है कि ढोल बजाना 29 जुलाई को तेहवार का हिस्सा हो सकता है। हालांकि सुप्रीमकोर्ट के कवाइद-ओ-जवाबत की रोशनी में ढोल बजाने की इजाजत नहीं है। दरखास्त गुजार ने इससे कब्ल ये मुआमला सिंगल बेंच के सामने पेश किया था, जिसका हवाला दिया गया था। अदालत ने इस बात पर-जोर दिया कि रियास्ती आलूदगी कंट्रोल बोर्ड का फर्ज है कि वो किसी भी मजहबी तेहवार या रैली से पहले अवामी नोटिस जारी करे ताकि शहरीयों को इन कवानीन से आगाह किया जा सके जो अंधाधुंद सूती आलूदगी (ध्वनि प्रदूषण) पर पाबंदी लगाते हैं। 
    अदालत ने नोट किया कि ये वाजिह नहीं है कि ढोल बजाने के लिए ऐसा तरीका-ए-कार क्यों नहीं बनाया गया। अदालत ने हुक्म दिया कि रियासत को फौरी तौर पर एक नोटिस जारी करने की हिदायत दी जाती है, जिसमें कहा गया है कि जो मुनज्जम ग्रुप ढोल बजा कर इबादत करना चाहते हैं, उन्हें जरूरी इजाजत लेना होगी। जिस ग्रुप को ऐसी इजाजत दी जाएगी, उसकी निशानदेही की जाएगी और मुकाम का भी ताय्युन किया जाएगा। इसके अलावा, वक़्त की हद भी मुकर्रर कर दी गई है। मगरिबी बंगाल आलूदगी कंट्रोल बोर्ड अवामी नोटिस भी जारी करे और तशहीर करे कि शोर की सतह काबिल इजाजत डेसीबल से ज्यादा नहीं हो सकती है और ये भी वाजिह करेगा कि किसी भी खिलाफवरजी पर ताजीरी कार्रवाई की जाएगी।


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