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‘इसरा’ ने मनाया अरबी जबान का आलमी दिन, आर्ट आफ ‘मुशहत’

दुबई : आईएनएस, इंडिया 

अंदलुस के शाहकार क्लासिकी शायरी की गूंज के साथ शाह अब्दुल अजीज सेंटर फार वर्ल्ड कल्चर (इसरा) ने अरबी जबान का आलमी दिन मनाया। 

गौरतलब है कि अरबी जबान इंसानियत के सकाफ़्ती तनव्वो (सांस्कृतिक विविधता) का एक सतून है और दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली जबानों में से एक है। इसरा ने रवां साल के जश्न की एक नुमायां खुसूसीयत के तौर पर ‘मुशहत’ के फन को उजागर करने के लिए एक तकरीब मुनाकिद की जहां इस फन की इब्तिदा, उसकी तरक़्की की तारीख और उसकी जमालियाती तस्वीरों का जायजा लिया गया। इस अदबी फन से मुतास्सिर होने वाले वाकियात के एक ग्रुप के कियाम के जरीये जो मुस्तनद अरबी विरसे का हिस्सा है और उंदुलुसियों की ईजाद करदा शायरी की एक सिनफ है, पर रोशनी डाली गई। 

12 से 17 दिसंबर तक चलने वाली इस तकरीब (समारोह) में जाइरीन के साथ वर्कशॉप्स और एंटर एक्टिव प्रोग्रामज के साथ-साथ मुंतखब अरब और मुकामी अदीबों और मुसन्निफीन के लिए मकालमे के सेशंज और किताब पर दस्तखत करने के सेशंज और म्यूजीकल परफारमेंश शामिल हैं जो अंदलुस के मशहूर तरीन मुशहत को पेश करते हैं और इस फन को मुनज्जम (जमा) करने वाली अहम तरीन शख्सियात पर रोशनी डालते हैं। जाइरीन के पास प्रोग्राम में शिरकत के दौरान अरबी जबान की तरक़्की से आगाही के बारे में मालूमात हासिल करने का मौका होगा। क्योंकि अरबी जबान सिर्फ राबते का एक जरीया नहीं है, ये अपने आप में एक फन है और अरब शनाख़्त का एक लाजिÞमी हिस्सा है। ये कुरआन-ए-करीम की जबान है जिसने दुनिया-भर के मुस्लमानों में मजहबी एहमीयत हासिल कर ली है। 


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