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मां की ममता और पिता की क्षमता का कोई मोल नहीं : राष्ट्रसंत ललित प्रभजी

 संतों को सुनने के लिए बांधा तालाब में उमड़ा श्रद्धालुओं का हुजूम

नई तहरीक : दुर्ग 

‘राष्ट्र संत श्री ललित प्रभ जी महाराज साहब ने कहा कि आनंद और खुशियां जिंदगी की सबसे बड़ी दौलत है जो किस्मत वाले को ही मिलती है।’ ये बातें सोमवार को बांधा तालाब में श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्रवचन माला के समापन अवसर पर संत प्रवर ने हजारों लोगों को संबोधित करते हुए कही। 

अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, हर आदमी को अपने जीवन में अच्छे स्वभाव और अच्छी सोच का मालिक होना चाहिए। यही वे सद्गुण हैं, जो आदमी के वर्तमान को भी उज्जवल बनाते हैं और भविष्य भी तय करते हैं। उन्होंने कहा, जिंदगी अच्छे रंग के साथ नहीं अच्छे ढंग से जी जानी चाहिए। अच्छे नेचर का मालिक बनना चाहते हो तो अपने स्वभाव में पलने वाले गुस्से को गुड बाय कर दो। 


संत प्रवर ने कहा कि लोगों के साथ हमारे रिश्ते कैसे रहेंगे, ये भी हमारा स्वभाव और व्यवहार तय करता है। उन्होंने कहा, अगर आपको लगता है कि आपका चेहरा सुंदर नहीं है तो कोई दिक्कत नहीं, अपने स्वभाव को सुंदर बना लो। सुंदर चेहरा दो दिन अच्छा लगता है। ज्यादा धन दो महीने अच्छा लगता है पर आदमी का सुंदर स्वभाव, दूसरों को जिंदगीभर अच्छा लगता है। जिंदगी आनंद से जीने के लिए आत्मनिरीक्षण करें कि क्या मैं जिंदगी में छोटीे-छोटी बातों में क्रोध और कसाय में घिर जाता हूं, क्या मैं किसी के दो टेढ़े शब्द कहने पर अपने-आपको अपमानित महसूस करता हूं। 

संत प्रवर ने कहा कि जब पत्थर से भी प्रतिमा प्रकट की जा सकती है, मूर्ति तो पत्थर के अंदर है, आजू-बाजू का कचरा हटाओ तो मूर्ति अपने आप बाहर निकलकर आ जाती है। ऐसे ही फालतू का कचरा जो आपने भीतर में इक्ट्ठा कर रखा है उसे हटा दो तो आपको लगेगा कि मैं कितना बढ़िया क्वालिटी का इंसान बन गया।

तीन सांस की है जिंदगी

संत प्रवर ने आगे कहा कि जब हम दुनिया में आते हैं तो केवल तीन सांसों की जिंदगी लेकर आते हैं। लेकिन फिर भी इस छोटी-सी जिंदगी में वह न जाने कितने कलह के साधन अपने मन में पैदा कर लेता है। केवल तीन सांस की जिंदगी है। पहली सांस है जन्म की, दूसरी सांस लेता है जवानी की और तीसरी होती है बुढ़ापे की। एक चौथी सांस और होती है, जिसे चौथी नहीं अंतिम सांस कहते हैं। 

अच्छे नेचर के लिए जीवन से डिलीट करें ये पांच 

संत प्रवर ने कहा कि अच्छे नेचर का मालिक बनने और जिंदगी को स्वर्ग सरीखे आनंद और मिठासभरी बनाना चाहते हो तो अपने जीवन से इन पांच दोषों को हमेशा के लिए डिलिट कर दो। वे हैं- स्वभाव में पलने वाला गुस्सा, भीतर में पलने वाला अहंकार-अभिमान या ईगो, छल, प्रपंच या माया, लोभ और ईर्ष्या। अपने गुस्से को जीवन से हटाने के लिए भीतर में पे्रम और क्षमा को सेव कर लो। अभिमान को हटाने विनम्रता को अपना लो। माया को हटाने मित्रता को अपना लो। लोभ को हटाने संतोष को अपना लो। संतोष से बड़ा सुख और धन दुनिया में और कुछ होता नहीं है। ईर्ष्या को हटाने सबको अपना मान लो। औरों की खुशी में खुश होना और औरों के दुख को बांटना सीख लो। 

संत श्री ने कहा कि जीवन से क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कसायों को दूर करने के लिए तीन गुणों को अपना लें। पहला अपने दिल को बड़ा रखें, दूसरा अपने दिमाग को हमेशा ठंडा रखें और तीसरा अपनी जुबान को हमेशा मीठी बनाए रखें। जिसके पास इन सद्गुणों की दौलत है।

चेहरे की खुशी और मन की प्रसन्नता से बड़ी कोई दौलत नहीं: डॉ. मुनि शांति प्रिय 

दिव्य सत्संग के पूर्वार्ध में डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागर जी ने कहा कि जीवन में स्वस्थ रहने के लिए जितनी जरूरत ध्यान, योग और प्राणायाम की होती है, उतनी ही जहरूरत हंसी और खुशी की भी होती है। अक्सर आदमी बाहर से कम, भीतर से ज्यादा बीमार होता है। अन्तरमन को जो प्रसन्न और खुश रखते हैं, उन पर बीमारियां हावी नहीं होती। चिंता और तनाव को दूर करने की एक ही औषधि है, हर हाल में आनंदित और प्रसन्न रहो। अन्तरमन की खुशियां परमानेंट होती हैं। स्वयं खुश रहो और दूसरों को खुशियां बांटते रहो। जो हर सुबह एक मिनट मुस्कुरा लेता है, उसके जीवन में कभी हार्ट अटैक की नौबत नहीं आती। सभा को साध्वी जिन वर्षा श्री ने भी संबोधित किया।

धर्म सभा में सभा मंडप प्रदान करने के लिए श्रमण संघ परिवार के सदस्यों का भी अभिनंदन किया गया जिनमें निर्मल बाफना, प्रवीण श्रीश्रीमाल, सुरेश श्रीश्रीमाल, टीकम छाजेड़ प्रमुख थे। संचालन मनीष दुग्गड ने किया। 

राष्ट्रसंत ने किया राजनांदगांव की ओर विहार

संत प्रवर मैत्री डेंटल कॉलेज होते हुए 22 नवंबर शाम 5 बजे सनसिटी राजनांदगांव में मंगल प्रवेश करेंगे जहां उनके प्रवचन आयोजित होंगे।

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