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दिल्ली : सराय काले खां चौक अब बिरसा मुंडा के नाम से जाना जाएगा

दिल्ली : सराय काले खां चौक अब बिरसा मुंडा के नाम से जाना जाएगा

 जमादी उल ऊला 1446 हिजरी 


फरमाने रसूल ﷺ 

आदमी को झूठा होने के लिए यही काफी है कि वह हर सुनी-सुनाई बात बिना तहकिक किए बयान कर दे।
- मिशकवत 

बिरसा मुंडा की 150वीं सालगिरह मनाई गई

✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया 

अज़ीम मुजाहिद आज़ादी और अवामी रहनुमा बिरसा मुँडा की150 वीं यौम-ए-पैदाइश के मौक़ा पर मर्कज़ी हुकूमत ने दिल्ली के सराय काले ख़ान आईएसबीटी चौक का नाम बदल कर बिरसा मुँडा चौक करने का ऐलान किया है। ये ऐलान मर्कज़ी शहरी तरक्कयाती के वज़ीर मनोहर लाल खट्टर ने किया है। 

दिल्ली : सराय काले खां चौक अब बिरसा मुंडा के नाम से जाना जाएगा
गुंबद सराय काले खां (image google)


    इस मौके पर दिल्ली में एक ख़ुसूसी तक़रीब का एहतिमाम किया गया जिसमें वज़ीर-ए-दाख़िला अमित शाह और मनोहर लाल खट्टर ने शिरकत की। तक़रीब से खिताब करते हुए मनोहर लाल खट्टर ने चौक के नाम को बदलने का ऐलान किया जिसके बाद अमित शाह ने अपने ख़िताब में इस फ़ैसले को बिरसा मुँडा के लिए ख़िराज-ए-अक़ीदत के तौर पर पेश किया। 

दिल्ली : सराय काले खां चौक अब बिरसा मुंडा के नाम से जाना जाएगा



ख़्याल रहे कि मुल्क बिरसा मुंडा की यौम-ए-पैदाइश को क़बाइली फ़ख़र के दिन (आदिवासी गुरू दिवस) के तौर पर मना रहा है। बरसा मुँडा 15 नवंबर 1875 को रांची और आज के खुंटी ज़िला के अलैहातो गांव में एक क़बाइली ख़ानदान में पैदा हुए। बिरसा के वालिद का नाम सौगाना मुँडा और वालिदा का नाम कर्मी मुँडा था। बिरसा मुँडा ने अपनी इबतिदाई तालीम एक मिशनरी स्कूल में हासिल की। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने देखा कि अंग्रेज़ हिंदूस्तानियों पर जुल्म कर रहे हैं। साल 1894 में जब छोटा नागपुर के इलाक़े में एक साथ क़हत और वबा फैली तो बरसा मुँडा ने दिल-ओ-जान से लोगों की ख़िदमत की। साल 1934 में बिरसा मुँडा ने टैक्सों की माफ़ी के लिए अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ तहरीक शुरू की। 1895 में बिरसा मुँडा को गिरफ़्तार कर हज़ारी बाग़ जेल भेज दिया गया। उसके बाद अंग्रेज़ों के साथ 1897 से 1900 तक होने वाली मुठभेड़ों में वे शामिल रहे। 

कौन हैं काले खां

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काले खां 14 वीं सदी में बादशाह शेरशाह सूरी के वक्त के एक अजीम सूफी थे। आगे चलकर मुगल काल में दिल्ली में वाके सराय के साथ उनका नाम काले खां जुड़ गया और इस तरह काले खां सराय काले खां हो गया। दिल्ली में इंदिरा गांधी एयरपोर्ट के इलाके में सूफी काले खां की मजार भी है। जुनूब-मशरिक (दक्षिण पूर्व) दिल्ली जिले में वाके सराय काले खां तारीखी नजरिये से भी काफी अहम है। यहां की सकाफत में सूफी रवायत की गहरी छाप देखने को मिलती है। 
    एक रवायत के मुताबिक इलाके का नाम सराय काले खां एक पुराने गांव के नाम पर पड़ा है जहां गुर्जर समाज के लोग रहा करते थे। वक्त के साथ यह इलाका शहरी हिस्से में शामिल हो गया लेकिन इलाके का नाम सराय काले खां ही रहा।

कई तारीखी मुकाम से जुड़ा है सराय काले खां

सराय काले खां चौक के आसपास कई तारीखी और सकाफती मुकाम है। यहां से कुछ दूरी पर ही हुमायूं का मकबरा और निजामुद्दीन दरगाह हैं। जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम भी इसके पास ही है। यमुना नदी का किनारा भी काफी नजदीक है।

मथुरा रोड और रिंग रोड जंक्शन

दिल्ली : सराय काले खां चौक अब बिरसा मुंडा के नाम से जाना जाएगा

सराय काले खां इलाका दिल्ली के मशहूर मुकामात में से एक है। सराय काले खां चौक दर हकीकत मथुरा रोड और रिंग रोड जंक्शन पर पड़ता है जो कौमी दारुल हुकूमत दिल्ली और एनसीआर के कई इलाकों को जोड़ता है। यहीं बैनुल अकवामी बस अड्डा (आईएसबीटी) है। मुगलिया सल्तनत के दौर में दिल्ली आने जाने के लिए यह खास मुकाम था। 
काले खां का गुबंद भी है दिल्ली में 
    दिल्ली के साउथ एक्सटेंशन इलाके में साउथ एक्सटेंशन मार्केट के पीछे काले खां का एक गुंबद भी है। गुंबद पर इसकी तामीर का साल सन 1481 लिखा हुआ है। गुंबद के करीब कोटला मुबारकपुर है। 

इसलिए बनाया था सराय

शेरशाह सूरी के दौरे हुकूमत के दौरान बादशाह शेरशाह सूरी ने मुल्कभर में सड़कों का जाल बिछवाया था। खासकर चटगांव (अब बांग्लादेश में) से लाहौर (पाकिस्तान) तक एक लंबी सड़क बनवाई थी। इसे ही आज ग्रांड ट्रंक रोड (जीटी रोड) के नाम से जाना जाता है। उसी दौर में सबसे पहले सराय लफ्ज का इस्तेमाल हुआ। शेरशाह सूरी ने सड़कें बनवाने के साथ ही मुसाफिरों के रुकने के लिए हर 12 मील पर एक सराय भी तामीर करवाया था। 



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