सफर उल मुजफ्फर - 1446 हिजरी
हदीस-ए-नबवी ﷺ
'जो शख्स ये चाहता है कि उसके रिज्क में इजाफा हो, और उसकी उम्र दराज हो, उसे चाहिए कि रिश्तेदारों के साथ हुस्न सुलूक और एहसान करे।'
- मिश्कवात शरीफ
✅ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
वक़्फ़ तरमीमी बिल 7 अगस्त को पार्लियामेंट में पेश कर दिया गया है। हुकूमत के मुताबिक बिल का मक़सद रियास्ती वक़्फ़ बोर्ड के इख़्तयारात, वक़्फ़ इमलाक के रजिस्ट्रेशन, सर्वे और तजावुज़ात को हटाने से मुताल्लिक़ मसाइल को मूसिर (मूसिर) तरीक़े से हल करना है। जबकि अक़लीयती रहनुमाओं का इल्ज़ाम है कि हुकूमत इस बिल के जरिये वक़्फ़ बोर्ड के इख़्तयारात को ख़त्म करना चाहती है और इसकी मदद से वो अपने भगवा एजंडे को आगे बढ़ाना चाहती है।एनडीए हुकूमत ने वक़्फ़ इमलाक (ग़ैर मजाज़ काबिज़ीन (अनाधिकृत कब्जाधारियों) की बेदख़ली) बिल 2014 को वापिस लेने का फ़ैसला किया है, जिसे फरवरी 2014 में राज्य सभा में पेश किया गया था, जब कांग्रेस की क़ियादत वाली यूपीए हुकूमत बरसर-ए-इक़तिदार थी। आज हुकूमत वक़्फ़ बोर्ड को दिए गए इख़्तयारात को कम करने और उसके निज़ाम को शफ़्फ़ाफ़ (पारदर्शी) बनाने के लिए बिल में तरमीम करने जा रही है। इसमें मुस्लिम समाज के दीगर पसमांदा तबक़ात ब शमूल मुस्लिम ख़वातीन, शीया, सुन्नी, बोहरा और आग़ा ख़ानी जैसे तबक़ात को भी नुमाइंदगी देने की बात की गई है। तरमीमी बिल 2024 और मुस्लिम वक़्फ़ (मंसूख़ बिल 2024) जिन्हें लोकसभा में पेश कर दिया है। पहले बिल के ज़रीये वक़्फ़ एक्ट 1955 में अहम तरमीम की जाएँगी जबकि दूसरे बिल के ज़रीये मुस्लिम वक़्फ़ एक्ट जो कि हिन्दोस्तान की आज़ादी से पहले 1923 में बनाया गया था, उसको ख़त्म कर देने का मन्सूबा है।
वक़्फ़ इमलाक से मुताल्लिक़ क़ानून को वापिस लेने के लिए राज्य सभा में पेश बिल जिसे मनमोहन सिंह की यूपीए हुकूमत के दौर में 18 फरवरी 2014 को राज्य सभा में पेश किया गया था, में ग़ैर मुस्लिम रहनुमाओं को भी शामिल किया जाएगा। हुकूमत का कहना है कि ये लीडरान अवाम के ज़रीया मुंतख़ब होकर आते हैं इसलिए उनका मज़हब से ज़्यादा अवाम की भलाई के लिए काम करना मक़सद होता है। हुकूमत का कहना है कि वक़्फ़ के पास ज़मीन बहुत है मगर उस पर कुछ ख़ास लोगों का कब्जा है। बिल का मक़सद वक़्फ़ इमलाक को नाजायज़ क़ब्ज़ों से आज़ाद कराना है। मुल्क में डीफ़ैंस और इंडियन रेलवे के बाद सबसे ज़्यादा जमीन वक़्फ़ बोर्ड के पास ही है। फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि ये दोनों आराज़ीयात सरकारी हैं जबकि वक़्फ़ बोर्ड ग़ैर सरकारी है।
वक्फ बोर्ड तरमीमी बिल : किसने क्या कहा ?