सफर उल मुजफ्फर - 1446 हिजरी
हदीस-ए-नबवी ﷺ
ह्यजो शख्स ये चाहता है कि उसके रिज्क में इजाफा हो, और उसकी उम्र दराज हो, उसे चाहिए कि रिश्तेदारों के साथ हुस्न सुलूक और एहसान करे।ह्ण
- मिश्कवात शरीफ
✅ लखनऊ : आईएनएस, इंडिया
मौलाना जव्वाद ने मिल्लत-ए-इस्लामीया हिंद के साथ मुल्क की सेक्यूलर ताक़तों और एनडीए में शामिल नितीश और नायडू से भी अपील की है कि वो वक्फ तरमीमी बिल के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करें क्योंकि ये वक़्फ़ के साथ-साथ मुल्क को तबाह करने वाला बिल है।यहां कर्बला बाग़ में मुनाक़िदा प्रेस कान्फ्रेंस में मौलाना कल्बे जव्वाद के साथ अंजुमन हैदरी के जनरल सेक्रेटरी एडवोकेट बहादुर अब्बास, सेक्रेटरी जामई रिज़वी, दीगर उलमा और ज़िम्मा दारान शामिल रहे और अपने ख़्यालात पेश किए। मौलाना जव्वाद ने प्रेस कान्फेंस से ख़िताब करते हुए कहा कि मर्कज़ी हुकूमत की जानिब से पेश बिल का मुताला के बाद अंदाज़ा हुआ कि इसके ज़रीया औक़ाफ़ को तबाह करने का मन्सूबा बनाया गया है। ये जो कहा जा रहा है कि रेलवे और वज़ारत-ए-दिफ़ा के बाद सबसे ज़्यादा ज़मीन वक़्फ़ बोर्ड के पास है, और ये दूसरों की ज़मीन पर कब्जा है, ये सबसे बड़ा झूट है। वक़्फ़ बोर्ड जमीन का मालिक नहीं, सिर्फ चौकीदार है।
हक़ीक़त ये है कि अल्लाह के नाम पर मुस्लमानों ने अपनी जो जायदाद दी है, वो है वक़्फ़, ना उसका मालिक हुकूमत हो सकती है और ना वक़्फ़ बोर्ड। ये ज़मीन अच्छे कामों के लिए वक़्फ़ की गई है। ये सिर्फ़ अब अल्लाह की जायदाद है। अल्लाह की ज़मीन पर तुम कैसे क़बज़ा कर सकते हो, जो भगवान के नाम पर ज़मीन दे दी गई है इस पर कोई कैसे क़बज़ा कर सकता है। ये वक़्फ़ तरमीमी बिल बहुत बड़ा धोखा है। इसमें हुकूमत की नीयत साफ़ नहीं है। बिल में कहा गया है कि हम वक़्फ़ तब मानेंगे जब वक़्फ़ डीड होगी। पाँच सौ साल पुरानी दरगाह है तो क्या उसकी डीड होगी। आसफी इमाम बाड़ा है, जहां पूरी दुनिया से लोग आते हैं तो क्या उसकी वक़्फ़ डीड मिल जाएगी। शाही जामा मस्जिद दिल्ली की क्या वक़्फ़ डीड मिल जाएगी और अगर नहीं मिलेगी तो क्या ये हुकूमत की ज़मीन हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि लोगों को बेवक़ूफ़ बनाया जा रहा है और जो दूसरी इबादत गाहैं हैं उनके लिए किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है, सिर्फ पूजा ही काफ़ी है। कहीं मूर्ती है तो मंदिर माना जाएगा लेकिन पाँच सौ साल से अगर कहीं नमाज़ हो रही है तो उसको मस्जिद नहीं माना जाएगा। मंदिरों, गुरूद्वारा और चर्च के लिए डीड नही मांगी जा रही, मस्जिदों, दरगाहों की डीड मांगी जा रही है।
कल्बे जव्वाद ने कहा कि मस्जिद पाँच सौ साल पुरानी और वक़्फ़ बोर्ड सौ साल पुराना तो कैसे वक़्फ़ डीड मिलेगी। पहले ज़बानी वक़्फ़ होता था, सिर्फ सीग़ा पढ़ दिया जाता था। बिल में कहा जा रहा है कि वक़्फ़ बाई यूज़र नहीं और ये सिर्फ़ मुस्लमानों के लिए बनाया जा रहा है कि वक़्फ़ बाई यूज़र नहीं। अब कलेक्टर फ़ैसला करेगा कि वक़्फ़ है या नहीं है। तीन से चार लाख वक़्फ़ डीड हैं, ज्यादातर फ़ारसी या उर्दू में हैं, सभी का तर्जुमा कराने में दस साल लग जाएंगे वो भी तब, जब सौ आदमी इस काम को करेंगे। उसके बाद तर्जुमा होगा, फिर कलेक्टर पढ़ेंगे और फ़ैसला देंगे, वक़्त दिया है 6 महीने का। उन्होंने कहा कि कलेक्टर कोई अदालत या कोर्ट नहीं है लेकिन कलेक्टर ने फ़ैसला कर दिया कि वक़्फ़ नहीं है तो नहीं है। इसलिए मैं कहता हूँ कि ये बिल नहीं धोखा है। इससे ख़बरदार रहने की ज़रूरत है। ये बहुत बड़ी साज़िश है, और ऐसा लग रहा है कि फिर हिन्दोस्तान को तक़सीम करना चाहते है। ये चाहते हैं कि 1947 वाला माहौल पैदा हो। पहले कहा, सड़क पर नहीं मस्जिद में नमाज़ पढ़ो। और अब मस्जिद हुकूमत की हो जाएगी तो कहाँ नमाज़ पढ़ेंगे।
मौलाना जव्वाद ने कहा कि तमाम मुस्लमान और सेकूलर लोग मुत्तहिद हों। वक़्फ़ पर जो कब्जे शुरू हुए हैं, वो कांग्रेस के दौर में ही हुए और वही उसकी ज़िम्मेदार है। कांग्रेस और बीजेपी में कोई फ़र्क़ नहीं है। जो कांग्रेस ने ज़्यादती की वही आज बीजेपी कर रही है। अब ये सोचना होगा कि कौन ज़्यादा बुरा है।