सफर उल मुजफ्फर - 1446 हिजरी
हदीस-ए-नबवी ﷺ
'जो शख्स ये चाहता है कि उसके रिज्क में इजाफा हो, और उसकी उम्र दराज हो, उसे चाहिए कि रिश्तेदारों के साथ हुस्न सुलूक और एहसान करे।'
- मिश्कवात शरीफ
लखनऊ : आईएनएस, इंडिया
वक़्फ़ तरमीमी एक्ट को लेकर सियासी रहनुमाओं जानिब से ज़बरदस्त मुख़ालिफ़त की जा रही है। उतर प्रदेश में के समाजी और मिल्ली रहनुमाओं ने भी अपने रद्द-ए-अमल का इज़हार करते हुए कहा कि मीडीया के ज़रीये एक ग़लत अफ़्वाह फैलाई जा रही है कि वक़्फ़ आईन (संविधान) के ख़िलाफ़ है और किसी भी इमलाक को वक़्फ़ बोर्ड में दर्ज करा दिया जाता है, वक़्फ़ बोर्ड के लोग उस पर क़ाबिज़ हो जाते हैं, जो सरासर ग़लत है। उन्होंने कहा कि वक़्फ़ बोर्ड आईन के बिलकुल ख़िलाफ़ नहीं है। आईन के अर्टीकल के मुताबिक़ ही वक़्फ़ एक्ट पार्लियामेंट से पास हुआ है। बोर्ड में इमलाक के रजिस्ट्रेशन का मुकम्मल मरहलावार कार्रवाई होती है, तमाम दस्तावेज देखे जाते हैं और मौके का जायजा लिया जाता है, उसके बाद ही जायदाद का रजिस्ट्रेशन किया जाता है।उतर प्रदेश के साबिक़ कारगुज़ार वज़ीर-ए-आला डाक्टर अम्मार रिज़वी ने कहा कि ये बहुत ही हस्सास (संवेदनशील) मसला है, इस पर वज़ीर-ए-आज़म को तमाम मज़हबी रहनुमाओं से बातचीत करनी चाहिए ताकि उनका एतिमाद बहाल रहे। उन्होंने कहा कि वैसे भी हमारे वज़ीर-ए-आज़म का नारा है सब का साथ, सब का विकास। इसलिए ज़रूरी है कि ऐसे हस्सास मसाइल में मज़हबी उल्मा फ़लाही और दीनी कारकुनान से भी बातचीत की जाए ताकि किसी किस्म की ग़लत-फ़हमियाँ पैदा ना हों।
उन्होंने कहा कि इस बात का हम इस्तिक़बाल करते हैं कि वक़्फ़ तरमीमी एक्ट में ग़ैर मुस्लिम के शामिल होने का रास्ता खोल दिया गया है लेकिन मेरा मुतालिबा ये है कि जितनी भी दीगर मज़ाहिब की कमेटियां हैं, उनमें भी मुस्लमानों को शामिल किया जाए, ताकि सब मिलकर मुल्क की तरक़्क़ी के लिए काम कर सकें।
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