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पशु-पक्षियों और पर्यावरण से प्रेम की अनूठी मिसाल कायम कर रहे रिटायर्ड प्राचार्य

डॉ. शर्मा को मिला जलपुरुष राजेंद्र का सानिध्य 



✅ नई तहरीक : दुर्ग 

साहित्याचार्य एवं शिक्षाविद् डा. महेश चन्द्र शर्मा सेवानिवृत्ति के उपरांत अपनी सृजनशीलता, बागवानी, क्रियाशीलता, गीत-संगीत और लेखन आदि में पूरी तरह सक्रिय हैं। इस श्रृखला में पिछले दिनों उन्हें पर्यावरण के संदर्भ में विश्व जल पुरुष और रेमन मैग्सेसे अवार्डी डा. राजेन्द्र सिंह का सान्निध्य लाभ मिला। डा. राजेन्द्र सिंह के साथ एक पर्यावरण कार्यक्रम में आचार्य डा. महेश चन्द्र शर्मा ने प्रकृति संतुलन पर सार्थक चर्चा की।
    उल्लेखनीय है कि उच्च शिक्षा की 42 वर्ष की सेवा से रिटायर होने के बाद डॉ. शर्मा साहित्य, समाज, प्रकृति, पर्यावरण और पशु पक्षियों की सेवा में और भी अधिक संलग्न हैं। प्राध्यापक और प्राचार्य रहते हुए भी उन्होंने कालेजों में "पर्यावरण अध्ययन" की कक्षाएं लीं। लगभग तीस वर्ष का इस अनिवार्य विषय के पठन-पाठन और लेखन-प्रकाशन का उनका अनुभव है। इस पर उनके धारावाहिक लेख भी पत्र-पत्रिकाओं में छपे और लोकप्रिय हुये। इटली के विश्व संस्कृत सम्मेलन में शोधालेख पढ़ा और प्रसिद्ध पाई। वे विद्यार्थियों को प्रोजेक्ट फाइल मटेरियल भी देते हैं। आज भी इस कार्य हेतु अनेक महाविद्यालयों में उन्हें ससम्मान आमंत्रित किया जाता है। हाल ही में अखिल भारतीय स्तर पर जयपुर से इस विषय पर प्रकाशित शोध निबंध ग्रंथ में पहला बीस पृष्ठीय शोध निबंध उन्हीं का है। 
    विशेष बात यह है कि साहित्याचार्य डा. शर्मा का यह प्रकृति, पशु-पक्षी या पर्यावरण प्रेम केवल भाषण, लेखन या उपदेशों में ही नहीं, अपितु व्यवहार में भी है और सेवानिवृत्ति पूर्व करोना काल से जारी है। घर के दरबाजे पर प्रतिदिन प्रातः कालीन दाना-पानी की व्यवस्था विगत तीन-चार साल, कोविड काल से अब तक जारी है। पक्षी-आवास, घोंसला भी है। छत पर और बाहर नाना प्रकार के पेड़-पौधे हैं। सपरिवार नियमित उनकी देखभाल और लालन-पालन किया जाता है जहां उन्हें फूलों-फलों और औषधियों के अलावा हरा-भर और शुद्ध स्वास्थ्यवर्धक पर्यावरण मिलता है। आचार्य डा. शर्मा के अनुसार इसी की बदौलत अर्थराइटिस, ब्रेन स्ट्रोक, कोरोना- कोविड और पैरालिसिस से काफी राहत मिली और मिलेगी। 
    राज्य अलंकरण आदि से सम्मानित डा. शर्मा को छत्तीसगढ़ी स्वाभिमान संस्थान, रायपुर एवं दाऊ उदयप्रसाद 'उदय' साहित्यशोध संस्थान, दुर्ग  आदि ने उनके भिलाई स्थित आवास जाकर उन्हें सम्मानित किया। 

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