रमजान उल मुबारक-1445 हिजरी
हदीस-ए-नबवी ﷺ
मेरी रहमत हर चीज को घेरे हुए है तो अनकरीब मैं अपनी रहमत उनके लिए लिख दूंगा जो मुझ से डरते और जकात देते हैं ओर जो हमारी आयतों पर ईमान लाते हैं।شهر رمضان الِذی ا اُنزل فيه ا لقرآنِ هدی ا لناس و بئینت من الھدیٰ الفرقان فمن شھد منکم الشھر فلیصم و من کان مریضآ او اعلیٰ سفر فعدتہ من ایامِ اُخر يرید اللہ یکم لیسرو ولا یر ید بكم العسرو و لنکملوا العد تہ ويتلبرو اللہ علی هد لکم و لعکم تشکورن (البقرہ 185)
( ये महीना रमज़ान का है, जिसमें कुरआन नाज़िल हुआ, जो लोगों के लिए हिदायत, राह पाने वालों के लिए रोशन दलायल और हक़ को बातिल से जुदा करने वाला क़ानून है। जो उसे पा ले, पूरे रोज़े रखे और जो कोई बीमार हो या सफ़र में हो तो दूसरे दिनों में गिनती पूरी करे। अल्लाह तुम्हारे लिए असानी चाहता है और नहीं चाहता दुशवारी और ये इसलिए कि तुम इस गिनती को पूरा करो और अल्लाह की बढ़ाई बयान करो, जिस तरह उसने तुमको हिदायत की ताकि तुम अल्लाह के शुक्रगुज़ार बंदे बनों। - सूरह अल बक़रा)----------------------------------
यहूद पर आशूरा और हर सनीचर के अलावा चंद दिन और भी फ़र्ज़ थे। हज़रत ईसा अलैहिस-सलाम एक दिन रोज़ा रखते और दो दिन इफ़तार करते थे। कुरान मजीद में रोज़े का हुक्म इन अलफ़ाज़ में है
یا ایھا ا لذين ا منوا کتب عليکم ا لصيام کما کتب علی الذ ين من قبلِكم لعلکم تتقون (البقرہ 183)
( ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो, फ़र्ज़ किए जाते हैं तुम पर रोज़े। जैसा कि जैसा कि फ़र्ज़ किए गए उन लोगों पर, जो तुमसे पहले थे, ताकि तुम मुत्तक़ी बन जाओ। सूरा अल बक़रा )
रोज़ों के ज़रीये अल्लाह की ज़ात से जो एक रुहानी निसबत पैदा होती है, इस आयत में उसका ज़िक्र है। रोज़ेदारी से रूह, नफ्स, जिस्म और मुआशरत-ओ-तमद्दुन पाक हो जाएंगे। उसके बाद, जब बंदा अल्लाह को पुकारेगा, तो पुकार यक़ीनन सुनी जाएगी।अल्लाह-तआला ने रोज़े दारों के तीन मक़सद बयान फ़रमाए हैं, पहला ये कि तुम मुत्तक़ी बन जाओ, यानी तुम्हारे अन्दर बदी की ताक़तें कमज़ोर और नाबूद हो जाएं और नेकी की ताक़तें नशो नुमा पाएं, क्योंकि इन्सान की हर एक क़ुव्वत अपने कमाल तक पहुंचने के लिए इस बात की मुहताज है कि उसे नशो नुमा दी जाए। रोजा में ख़ुदा के हुक्म की फ़रमांबर्दारी के लिए हलाल चीज़ों को भी तर्क कर दिया जाता है। इससे इन्सान अपने नफ्स पर हाकिम बन कर उसे आला से आला मुक़ाम पर पहुंचा सकता है। इस्लाम ने हर एक चीज़ को एक फ़ायदा और ज़ाबते के मातहत रखा है। वक़्त पर खाना ऐन तालीम इस्लाम के मुताबिक़ है। रोज़े में ज़ाबते को तोड़ना मक़सद नहीं, बल्कि इन्सान के अंदर कूव्वत पैदा करना है कि ख़ाहिशात हैवानी को तोड़ना, जो खाने-पीने और मौज की तरफ़ रुजू करने से ताल्लुक़ रखती हैं।
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रोज़े ने ख़ाहिशात हैवानी पर क़ाबू पाने की अमली राह बताई है और इस तरह इन्सान को तकवा यानी हर मुज़िर और नुक़्सान देने वाली आदत से महफ़ूज़ कर देने की राह दिखाई है।दूसरा ये कि तुम अल्लाह के शुक्रगुज़ार बंदे बन जाओ। शुक्र के मअनी ख़ुदा की दी हुई नेअमतों का सही इस्तिमाल। मतलब ये कि ख़ुदा की दी हुई ताक़तें उसकी अदा करदा अजा, उसकी बख्शी हुई तमाम वो चीज़ें, जो हमारे लिए बनाई गई हैं, उसकी मंशा के मुताबिक़ इस्तिमाल हो। तीसरा रशद यानी इन्सान ख़तरों, बदियों और अज़मायशों से बच कर अल्लाह की नेअमतों का सही इस्तिमाल कर के अपनी मंज़िलें मक़सूद पा लेता है। रोज़ेदार अगर तक़्वे शुक्रगुज़ार और रशद तीनों नेअमतें हासिल कर ले तो ये इन्सानी ज़िंदगी की मेराज है।
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अल्लाह की तरफ़ से इन्सान के हर नेक अमल का कई गुना अज्र मिलता है। अल्लाह-तआला ने फ़रमाया, रोज़ेदार के लिए दो खुशियां हैं, एक रोज़ा इफ़तार करते वक़्त और दूसरा अपने रब की मुलाक़ात के वक़्त।रोज़े की तकमील के लिए जहां खाना-पीना तर्क कर देने का हुक्म है, वहां उन बुराईयों से बचने का हुक्म है, जो इन्सान की अख़लाक़ी और इजतिमाई ज़िंदगी में असर डालती हैं। अल्लाह के नबी ﷺ ने फ़रमाया, जिस शख़्स ने झूट बोलना और इस पर अमल करना ना छोड़ा तो अल्लाह तआला को उसका खाना-पीना छोड़ने की कोई परवाह नहीं।
यानी इन्सान जब तक अपने करेक्टर बिल्डिंग को डेवलप करने की नहीं सोचेगा, तब तक उसका रोज़ा काबिल-ए-क़बूल नहीं होगा।
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रोज़ा एक इजतिमाई फ़र्ज़ है और पूरी मिल्लत पाबंद है कि ख़ल्क़-ए-ख़ुदा की मुहब्बत और अपनी इस्लाह-ओ-पाकीज़गी के लिए साल में पूरा एक महीना एक निज़ाम और पाबंदी के साथ रोज़े रखे। इस निज़ाम के अमली नताइज बड़े हैरत-अंगेज़ हो सकते हैंपरहेज़गारी
अब ग़ौर कीजीए कि जो शख़्स रोज़ा रखता है, सख़्त गर्मी की हालत में जबकि प्यास से हलक़ चटख़ा जाता हो, पानी का एक क़तरा हलक से नीचे नहीं उतारता। सख़्त भूख की हालत में भी कोई चीज़ खाने का इरादा नहीं करता, उस शख़्स का ख़ुदा पर कितना ईमान है, कितना ज़बरदस्त यक़ीन है, वो जानता है कि उसकी कोई हरकत, चाहे वो सारी दुनिया से छुप जाए, अल्लाह से नहीं छुप सकती। ऐसा पुख़्ता यक़ीन मज़बूत दिल इंसान को बेहतरीन इन्सान बनाने के लिए काफ़ी है।रोज़ा सेहत मंदी की निशानी
सालभर में एक महीने तक रोजा रखने से जिस्म और मादे की कई ज़ाहिद रतूबतें जल जाती हैं, दिमाग़, मैदा और तमाम मुख़्तलिफ़ किस्म के फुज़लात से पाक हो जाते हैं और इस तरह इन्सानी जिस्म बीमारी से महफ़ूज़ और बदपरहेज़ी के मर्ज़ से नजात हासिल कर तंदरुस्त हो जाता है। ज़बान का चसका शराबनोशी, सिगरेट, पान और चाय वग़ैरा की आदत, ज़्यादा खाना-पीना और इस किस्म के तमाम मस्नूई और ग़ैर फितरी तकल्लुफ़ात से इन्सान को रिहाई मिल जाती है। महीना भर तक परहेज़ की मश्क़ कर लेने से हर इन्सान इस काबिल हो सकता है कि सादा और बे-तकल्लुफ़ ज़िंदगी बसर कर सके।सेल्फ कंट्रोल और अमन आम्मा
मुसलसल कंट्रोल और पाबंदी से हैवानियत कमज़ोर हो जाती है। जुर्म, गुनाह और अय्याशी की ताक़तें दब जाती है और ख़ाहिशात पर क़ाबू हासिल हो जाता है। पेट और शहवत का जाल टूट जाता है और बेशुमार हुज्जतें और बंधन जो रूह की अज़ादी में हाइल हैं, पुर्ज़ा-पुर्ज़ा हो जाती है। जब हर एक इन्सान महीने भर तक बग़ैर किसी निगरानी के तमाम आज़ा का रोज़ा रखेगा और सुबह से शाम तक ज़बान, आंख, मुँह और दिल-ओ-दिमाग़ को बद ज़ुबानी, बद नज़री और बद ख़्याली से रोके रखेगा, और उससे हर शख़्स में दयानतदारी, पाबंदी, उसूल, ख़ुद-एतमादी और ज़बत नफ़स की खूबियां पैदा होंगी।हमदर्दी और मुसावात
जब अमीर व गरीब मुसलसल एक महीने तक नज़म-ओ-ज़बत की ज़िंदगी बसर करेंगे, उनकी मुआशरत में यकसानी पैदा होगी। अमीरों को गरीब के दुख-दर्द का तजुर्बा होगा। तमाम इन्सानियत एक रंग में रंग जाएगी और सब लोगों में मुसावात की रूह पैदा होगी। नेअमत और उसकी क़दर मालूम होने लगेगी।करेक्टर बिल्डिंग में मददगार रोज़ा
मुसलसल रोज़ेदारी से आराम तलबी, सुस्ती और काहिली हट जाएगी। सब्र और पाक दामनी से हौसलामंदी इस्तिक़लाल और जफ़ाकशी का ज़ौक़ पैदा होगा। इन्सानी ज़िंदगी सर से पांव तक बिलकुल एक नए साँचे में ढल जाएगी और तमाम बुनियादी कमज़ोरियाँ जो गुज़श्ता 11 महीने की मुसलसल बद एतिदालियों के बाइस इन्सान की उम्र, सेहत, कैरेक्टर और रूहानियत की बुनियादों को खोखला कर चुकी होती हैं, रोज़े की बरकत से ज़ाइल और नाबूद हो जाएंगे। तमाम रोज़ेदार अमल, ख़िदमत, क़ुर्बानी, परहेज़गारी और इस्लाह के लिए तैयार होंगे और ये इन्सानी ज़िंदगी का एक अज़ीम इन्क़िलाब है।मीडिया इंचार्ज, रायपुर (छत्तीसगढ़)
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