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तालिबान का फ़रमान : जानदार चीज़ों की तसावीर न बनाएं

शअबान उल मोअज्जम-1445 हिजरी

हदीसे नबवी 

तकदीर का लिखा टलता नहीं

'' हजरत अबु हुरैरह रदि अल्लाहो अन्हुमा ने फरमाया-अपने नफे की चीज को कोशिश से हासिल कर और अल्लाह ताअला से मदद चाह, और हिम्मत मत हार और अगर तुझ पर कोई वक्त पड़ जाए तो यूं मत कह कि अगर मैं यूं करता तो ऐसा हो जाता, ऐसे वक्त में यूं कह कि अल्लाह ताअला ने यही मुकद्दर फरमाया था और जो उसके मंजूर हुआ, उसने वहीं किया। '' 
- मुस्लिम शरीफ

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तालिबान का फ़रमान : जानदार चीज़ों की तसावीर न बनाएं

✅ क़ंधार : आईएनएस, इंडिया

अफ़्ग़ान के जुनूबी सूबे क़ंधार में हुक्काम ने ओहदेदारों को हुक्म दिया है कि वो जानदार चीज़ों की तसावीर या वीडीयोज़ ना बनाएं। फ़्रांसीसी न्यूज एजेंसी के मुताबिक़ इतवार को सिविल और अस्करी हुक्काम को लिखे एक ख़त में सुबाई महिकमा दाख़िला ने हिदायत की है कि अपनी रस्मी और ग़ैर रस्मी महफ़िलों में जानदार चीज़ों की तसावीर लेने से गुरेज़ करें क्योंकि इस से फ़ायदे के बजाय नुक़्सान ज़्यादा होता है। ख़त में कहा गया है कि ओहदेदारों की सरगर्मियों पर मतन या आडीयो मवाद की इजाज़त है। 
    गौरतलब है कि इस्लामी आर्ट में आम तौर पर इन्सानों और जानवरों की तसावीर से गुरेज़ किया जाता है। बाअज़ मुस्लमान जानदार चीज़ों की तसावीर को ना पसंदीदगी की निगाह से देखते हैं। क़ंधार के गवर्नर के तर्जुमान ने एएफ़पी को ख़त की तसदीक़ की है और कहा है कि इस की हिदायात का इतलाक़ (लागू) सिर्फ़ सुबाई हुक्काम पर होता है। महमूद आज़म ने कहा कि ख़त का इतलाक़ आम लोगों और आज़ाद मीडीया पर नहीं होता। तालिबान के साबिक़ा दौर-ए-हकूमत में 1996 से 2001 तक टैलीविज़न और जानदारों की तसावीर पर पाबंदी लगा दी गई थी। 2021 में तालिबान के इक़तिदार में आने के बाद से कई मीडीया इदारों ने लोगों और जानवरों की तसावीर इस्तिमाल करने से गुरेज़ किया। ताहम मर्कज़ी हुकूमत के महिकमे अक्सर ग़ैर मुल्की हुक्काम या वफ़ूद से मुलाक़ातों की तस्वीरें शेयर करते हैं। 
तालिबान का फ़रमान : जानदार चीज़ों की तसावीर न बनाएं

    ख़्याल रहे कि इस सिलसिले में फ़िकहाए इस्लाम और मुआसिर उलमाए दीन के अक़्वाल मुख़्तलिफ़ हैं। अरब उलमा इसके जवाज़ (औचित्य) के क़ाइल हैं, जबकि अजमी उल्मा का इसके जवाज़-ओ-अदम जवाज़ पर इख़तिलाफ़ है। बाअज़ हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी उल्मा मौजूदा वक़्त में कैमरे से फ़ोटो बनवाने को जायज़ क़रार देते हैं, जबकि बाज (कुछ) हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी उल्मा इसे हराम क़रार देते हैं।


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