शअबान उल मोअज्जम-1445 हिजरी
अकवाल-ए-जरीं
'' हजरत अब्दुलाह बिन उमर रदिअल्लाहो ताअला अन्हुमा से रिवायत है कि मैंने रसूल अल्लाह ﷺ से सुना, आप ﷺ फरमाते हैं कि जब तुम्हारा कोई आदमी इंतेकाल कर जाए तो उसे ज्यादा देर तक घर पर मत रखो और उसे कब्र तक पहुंचाने और दफनाने में जल्दी करो ''- बैहकी शुअबुल ईमान
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✅ क़ाहिरा : आईएनएस, इंडिया
इलाक़े की क़बाइली रसूमात पर अमल करते हुए मिस्र के सेवह नख़लिस्तान में एक मुक़ामी बाशिंदे की शादी की तकरीब (समारोह) हफ़्ताभर जारी रही जिसमें तक़रीबन 40 हज़ार अफ़राद ने शिरकत की। दुल्हा अहमद बिलाल के लिए ये तक़रीबात मिस्र और लीबिया की सरहद के क़रीब मत्रूह के इलाक़े में मुनाक़िद हुईं। सेवह के एक रहवासी महमूद, जिन्होंने इस तक़रीब में शिरकत की, ने बताया कि हमारे रिवाज और रवायात के मुताबिक़ तक़रीबात कई दिनों तक जारी रहती हैं, जिसमें सेवह से बाहर के मेहमानों के साथ हमारी पूरी नख़लिस्तानी बिरादरी शिरकत करती है।दूल्हा बिलाल की ख़ुशी की ख़ातिर सबसे अहम जश्न क़बीले के एक बुज़ुर्ग हाजी बिलाल अहमद बिलाल अलसेवी के घर मुनाक़िद किया गया। मिस्र और बाहर से मदऊ (आमंत्रित) किए गए लोगों के रहने के लिए एक ख़ेमा लगाया गया था। जानवरों की क़ुर्बानी और दीगर सहूलयात की फ़राहमी के लिए ख़ातिर-ख़्वाह इंतिज़ामात किए गए थे। नख़लिस्तान के एक 70 साला रिहायशी मुस्तफ़ा ने कहा कि यहां सेवह में तक़रीबात सात दिन और सात रातों तक जारी रहती है। अहमद की शादी के लिए हमारे पास मिस्र के तमाम जिलों, लीबिया और सऊदी अरब से मेहमान आए थे, और हमने कई रोज़ खुशी से भरपूर गुज़ारे। उन्होंने कहा कि यहां शादीयों मैं हज़ारों लोग शिरकत करते हैं, लेकिन अहमद की शादी में तक़रीबन 40 हज़ार मेहमानों ने शिरकत की, जिनमें मत्रूह के गवर्नर मेजर जनरल ख़ालिद शुऐब समेत मत्रूह के आला आफ़िसरान, अमाइदीन इलाक़ा और बहुत से क़बाइली नौजवान भी शामिल थे।
बछड़ों और भेड़ों को ज़बह किया गया और मेहमानों के लिए बड़ी ज़याफ़तें (दावत) तैयार की गईं जिनका इंतिज़ाम 50 बावर्चियों और मुआवनीन ने किया था। कई रोज़ तक सिर्फ खाना लगाने के लिए 750 कारकुन मामूर रहे। चाय, काफ़ी, गर्म और ठंडे मशरूबात (पेय) तैयार करने और पेश करने के काम में 200 अफ़राद ने हिस्सा लिया जबकि फल पेश करने के लिए सेवह के नौजवानों की मदद से 300 अफ़राद ने काम किया। मुस्तफ़ा ने कहा कि तक़रीबात के दौरान मुक़ाबले हुए जिनमें जीतने वालों को इनामात दिए गए। महमूद ने मज़ीद बताया कि ख़ानदानी और क़बाइली तक़रीबात में अमीर और ग़रीब, या ताक़तवर और कमज़ोर में कोई फ़र्क़ रवा नहीं रखा जाता। सब एक साथ बैठ कर जश्न मनाते हैं। यहां की तक़रीबात प्यार और दोस्ती की ख़सुसीआत की हामिल होती हैं। नमाज़ के वक़्त हर कोई क़तार में खड़ा होता है, और खाने के वक़्त, सब एक दूसरे के साथ बैठते हैं
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