शअबान उल मोअज्जम -1445 हिजरी
हदीसे नबवी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लमतकदीर का लिखा टलता नहीं
" हजरत अबु हुरैरह रदि अल्लाहो अन्हुमा ने फरमाया-अपने नफे की चीज को कोशिश से हासिल कर और अल्लाह ताअला से मदद चाह, और हिम्मत मत हार और अगर तुझ पर कोई वक्त पड़ जाए तो यूं मत कह कि अगर मैं यूं करता तो ऐसा हो जाता, ऐसे वक्त में यूं कह कि अल्लाह ताअला ने यही मुकद्दर फरमाया था और जो उसके मंजूर हुआ, उसने वहीं किया। '' - मुस्लिम शरीफ
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इलाहाबाद : आईएनएस, इंडिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक केस (जिसमें मुस्लिम ख़ातून ने ग़ैर मुस्लिम शख़्स के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए तहफ़्फ़ुज़ की फ़राहमी का मुआमला) की समाअत करते हुए पहले से शादीशुदा मुस्लिम ख़ातून के हिंदू मर्द के साथ लिव इन रिलेशनशिप को शरीयत के मुताबिक़ हराम क़रार दिया है। एक हिंदू मर्द के साथ रहने वाली शादीशुदा मुस्लिम ख़ातून को तहफ़्फ़ुज़ देने से इनकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि क़ानूनी तौर पर शादीशुदा मुस्लिम ख़ातून अज़दवाजी ज़िंदगी (वैवाहिक जीवन) से बाहर नहीं जा सकती और ना ही शरीयत के मुताबिक़ वो किसी दूसरे शख़्स के साथ रह सकती है। ऐसा रिश्ता 'जिना यानि 'हराम' समझा जाएगा। दरहक़ीक़त, ख़ातून ने अपने और अपने मर्द साथी की जान को ख़तरे का हवाला देते हुए अदालत से अपने वालिद और रिश्तेदारों से तहफ़्फ़ुज़ मांगा था, जिसे मुस्तर्द (रद्द) करते हुए जस्टिस रेणू अग्रवाल की बेंच ने कहा कि औरत के मुजरिमाना फे़अल (काम) की ये अदालत हिमायत नहीं कर सकती। अदालत ने कहा कि पहली दरख़ास्त गुज़ार मुस्लिम क़ानून शरीयत की दफ़आत के बरख़िलाफ़ दूसरे दरख़ास्त गुज़ार के साथ रह रही है। मुस्लिम क़ानून के तहत शादीशुदा औरत अज़दवाजी ज़िंदगी से बाहर नहीं जा सकती, लिहाज़ा मुस्लमान औरत के इस फे़अल का मतलब जिना और हराम काम है।
समाअत के दौरान अदालत ने कहा कि दरख़ास्त गुज़ार ख़ातून ने अपने शौहर से तलाक़ के हवाले से मुनासिब अथार्टी से कोई हुक्मनामा नहीं लिया है। इस केस के हक़ायक़ के मुताबिक़ दरख़ास्त गुज़ार की शादी मुहसिन नामी शख़्स से हुई थी, जिसने दो साल क़बल दूसरी शादी की थी और वो अपनी दूसरी बीवी के साथ रह रहा है। इसके बाद पहली बीवी (दरख़ास्त गुज़ार) अपने मैके चली गई लेकिन शौहर के नारवा सुलूक की वजह से वो एक हिंदू शख़्स के साथ रहने लगी।
अदालत ने 23 फरवरी को अपने फ़ैसले में कहा कि चूँकि मुस्लिम ख़ातून ने मज़हब की तबदीली के लिए मुताल्लिक़ा अथार्टी को कोई दरख़ास्त नहीं दी है और अपने शौहर से तलाक़ भी नहीं ली है, इसलिए वो किसी भी किस्म के तहफ़्फ़ुज़ की हक़दार नहीं है। दरख़ास्त गुज़ार मुस्लिम क़ानून (शरीयत) की इन दफ़आत की ख़िलाफ़वरज़ी करते हुए दरख़ास्त गुज़ार नंबर 2 के साथ रह रही है, जिसमें क़ानूनी तौर पर शादीशुदा बीवी बाहर जा कर शादी नहीं कर सकती और मुस्लिम ख़वातीन के इस फे़अल को जिना और हराम क़रार दिया गया है। अगर हम दरख़ास्त गुज़ार नंबर 1 के फे़अल के जुर्म की तरफ़ जाएं तो उसके ख़िलाफ़ आईपीसी की दफ़ा 494 और 495 के तहत मुक़द्दमा चलाया जा सकता है, क्योंकि इस तरह का रिश्ता लिव इन रिलेशनशिप या फ़ित्रत में ताल्लुक़ के दायरा में नहीं आता है।
यूपी के मुज़फ़्फ़र नगर ज़िला की ये ख़ातून अपने आशिक़ के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही है। औरत पहले ही शादीशुदा है। इसके बावजूद वो फ़िलहाल लिव इन रिलेशनशिप में रह रही हैं। ख़ानदान इस लिव इन रिलेशनशिप से नाख़ुश है। अहले ख़ाना के ख़ौफ़ के बाइस ख़ातून ने अपनी जान का ख़दशा ज़ाहिर करते हुए हाईकोर्ट से सिक्योरिटी की अपील की थी हालांकि केस के तमाम हक़ायक़ को समझने के बाद अदालत ने दरख़ास्त गुज़ार को सिक्योरिटी फ़राहम करने से इनकार कर दिया।