✒ नई दिल्ली : आईएनएस, इंडिया
जमई उल्मा हिंद ने जुमा को राजधानी में एक बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि ज्ञान वापी मस्जिद मुआमले पर सुप्रीमकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया जाएगा। याद रहे कि वाराणसी की जिला अदालत ने हिंदू फ़रीक़ को ज्ञान वापी मस्जिद में वाके तहख़ाने में पूजा करने का हक़ दे दिया है। वहां 31 साल बाद पूजा की गई। मुस्लिम फ़रीक़ अब इस पर रोक लगवाने का मुतालिबा करते हुए हाईकोर्ट पहुंच गया है। हाईकोर्ट ने तहख़ाने में इबादत पर पाबंदी लगाने से इनकार कर दिया है।प्रेस कान्फ्रेंस में मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि आज़ादी के बाद से मुस्लिम मआशरा मुख्तलिफ मसले से घिरा हुआ है। दिल्ली से लेकर यूपी तक इस तरह के कई मसाइल उठाए जा रहे हैं। अदालत की सुस्ती की वजह से इबादतगाहों पर कब्जा करने वालों के हौसले बुलंद हो गए हैं। मौलाना मदनी ने कहा कि मुल्क मज़हबी अक़ाइद की बुनियाद पर कैसे तरक्की कर सकता है। वहीं मौलाना सैफ उल्लाह रहमानी ने ज्ञान वापी मस्जिद के बारे में कहा कि ज्ञान वापी केस में जो वाक़िया सामने आया, उसने 20 करोड़ मुस्लमानों और तमाम इंसाफ़ पसंद शहरीयों को चौंका दिया है। मुस्लमानों की हालत अफ़सोसनाक है। ज्ञान वापी और किसी भी मस्जिद के बारे में जो कहा जाता है, कि मंदिर को गिरा कर मंदिर बनाया गया है, ग़लत है। इस्लाम में छीनी हुई ज़मीन पर मस्जिद नहीं बन सकती।
उन्होंने कहा कि अदालत का फ़ैसला दुख देता है। इससे 20 करोड़ मुस्लमानों को सदमा पहुंचा है। मौलाना सैफ-उल्लाह रहमानी ने कहा कि हमें तारीख़ की सच्चाई को समझना चाहिए। अंग्रेज़ों ने इस मुल्क में आकर तक़सीम करो और हुकूमत करो की पालिसी अपनाई। 1857 मैं उसने देखा कि मुल्क में हिंदु और मुस्लमान दोनों मुल्क के लिए मुत्तहिद हैं इसलिए उसने दोनों बिरादरीयों के दरमयान तफ़र्रुक़ा (भेद) पैदा का काम किया। मौलाना रहमानी का मज़ीद कहना था कि अगर मुस्लमान दूसरों की इबादत-गाहों पर ज़बरदस्ती कब्जा करने का सोचते तो क्या आज इतने मंदिर होते। मौलाना सय्यद महमूद मदनी ने कहा कि अदालत के इस फ़ैसले से हिन्दुस्तानी अदालती निज़ाम पर सवालिया निशान लग गया है। उन्होंने कहा कि ये यकतरफ़ा तौर पर किया जाने वाला फ़ैसला है। उन्होंने दावा किया कि हमारे साथ दुश्मनों जैसा सुलूक किया जा रहा है। उन्होंने मज़ीद कहा कि इन्साफ़ और इन्साफ़ के तक़ाज़े पूरे करना सबकी ज़िम्मेदारी है, लेकिन यहां जिसकी लाठी, उसकी भैंस का क़ानून चल रहा है।
जमई अहल-ए-हदीस के अमीर मौलाना असग़र इमाम मह्दी सलफ़ी ने कहा कि अदालत का फ़ैसला, किसी प्रोसीज़र पर अमल किए बग़ैर है, बल्कि 1991 इबादत-गाह क़ानून को पसेपुश्त डाल दिया गया है। उन्होंने मीडीया से अपील की कि वो इस मुआमला को अच्छी तरह उठाए अमन-ओ-क़ानून बरक़रार रखते हुए इस मसले को उजागर करे। प्रेस कान्फ्रेंस में मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के तर्जुमान डाक्टर क़ासिम रसूल इलयास और नायब तर्जुमान कमाल फ़ारूक़ी भी मौजूद थे।
हाईकोर्ट में दायर अपील में काशी विश्वनाथ मंदिर के बोर्ड आफ़ ट्रस्टीज़ और आचार्य वेद वयास पीठ मंदिर के चीफ़ पुजारी शेलेंद्र कुमार पाठक को फ़रीक़ बनाया गया था। वाराणसी की अदालत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर अपील में ये दलील दी गई थी कि इबादत-गाहों के कानूनन 1991 के तहत ये फ़ैसला दुरुस्त नहीं है। यहां तक कि वयास ख़ानदान की मिल्कियत या पूजा वग़ैरह के बारे में कोई बेहस नहीं हुई, जैसा कि मौजूदा फ़ैसले में कहा गया है।
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