✒ लंदन : आईएनएस, इंडिया नार्वे से ताल्लुक रखने वाले एक शख़्स को किसी मश्गले (शौक) की तलाश थी और यही जुस्तजू सदियों पुराने खजाने की दरयाफत का सबब बन गई। न्यूज एजेंसी के मुताबिक 51 साला अरलीन बोर को उनके डाक्टर ने कहा था कि घर में सोफे पर बेवजह बैठा रहने की बजाए वह अपने कोई मशगला (शौक) अपना ले ताकि अपनी बीमारी से जल्द शिफायाब हो सके।
डाक्टर के मश्वरे पर अमल करते हुए अरलीन ने एक मेटल डिटेक्टर खरीदा और पहाड़ों में निकल गया। इसी सिलसिले में एक दिन उन्होंने नार्वे के जुनूब मगरिबी (दक्षिण पश्चिमी) शहर स्तावेंजर के करीब वाके जजीरे का रुख किया जहां घूमते-फिरते उनके मेटल डिटेक्टर ने किसी धात की मौजूदगी का इशारा दिया। पहले तो अरलीन को लगा कि शायद चॉकलेट के सिक्के रेत में धंसे हुए हैं, जिनकी मौजूदगी पर डिटेक्टर ने अलर्ट भेजा है लेकिन खोज लगाने पर मालूम हुआ कि यहां सोने के जे़वरात दफन हैं। और सचमुच, वहां खुदाई करने पर भारी मिकदार में सोने के जेवरात मिले। हालांकि वो जेवरात अरलीन के काम नहीं आए।
यूनीवर्सिटी आफ सट्टावा नगर में आरक्योलोजी म्यूजीयम के डायरेक्टर वोले मेडिसिन का कहना है कि एक ही वक़्त में इतनी मिकदार में सोने की दरयाफत इंतिहाई गैरमामूली है। यूनीवर्सिटी के ख़्याल में सोने के जे़वरात का वजन एक सौ ग्राम से ज्यादा है। नार्वे के कानून के तहत 1537 से पहले की अश्या (चीजें) और 1650 से पहले के सिक्के रियासत की मिल्कियत हैं और उन्हें हुकूमत के हवाले करना चाहिए। आरक्योलोजी म्यूजीयम के प्रोफेसर हैकन रियरसन का कहना है कि सोने के लॉकेट 500 सदी ईसवी के हैं जब यूरोप ब शमोल नार्वे में बड़े पैमाने पर नक़्ल-ए-मकानी का सिलसिला जारी था। प्रोफेसर का कहना है कि ये जे़वरात इंतिहाई माहिर लेबर के बनाए हुए हैं। जिसे मुआशरे के ताकतवर अफराद पहनते थे। उन्होंने कहा कि 19 वीं सदी से नार्वे में किसी किस्म की अहम दरयाफत नहीं हुई और मौजूदा दरयाफत इंतिहाई गैरमामूली है। इसी किस्म के जे़वरात नार्वे के अलावा स्वीडन और डेनमार्क में भी मिले हंै। ये जे़वरात दार-उल-हकूमत ओस्लो से 300 किलो मीटर के फासले पर वाके सट्टावा नगर के आरक्योलोजी म्यूजीयम में रखे जाएंगे।